गोविंद सिंह डोटासरा को देनी है कड़ी परीक्षा

गोविंद सिंह डोटासरा को देनी है कड़ी परीक्षा

लखनऊ। गोविंद सिंह डोटासरा ने छात्र राजनीति के बाद युवा कांग्रेस में सक्रिय होकर कार्य किया था। वे युवक कांग्रेस में विभिन्न पदों पर रहे और 2005 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लक्ष्मणगढ़ जिले (सीकर) पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में गोविंद सिंह विजयी हुए और लक्ष्मणगढ़ पंचायत समिति के प्रधान भी चुने गए। गोविंद सिंह डोटासरा ने इसके बाद पलटकर पीछे नहीं देखा और सियासत में आगे बढ़ते गए।

सचिन पायलट ने राजस्थान में कांग्रेस को उस भाजपा से टकराने की ताकत दी थी जो नरेंद्र मोदी का अभेद्य कवच पहन अपराजेय बन गयी थी। विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस को मिली सफलता में अशोक गहलोत का पराक्रम नहीं था बल्कि सचिन पायलट की सूझबूझ थी। कांग्रेस के आपसी विवाद के चलते गोविंद डोटासरा को वही दायित्व सौंपा गया है जो कभी सचिन पायलट के पास था।

अगर हालात देखें तो इस समय चुनौतियां उससे ज्यादा कठिन हैं। डोटासरा इन चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं, यही उनकी परीक्षा है और यह परीक्षा निश्चित रूप से कठिन है। एक बात यह भी समझ में नहीं आ रही है कि एक तरफ सचिन को मनाने का प्रयास किया जा रहा है तो दूसरी तरफ उनको पार्टी अध्यक्ष पद से हटाते ही कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी जाती है। इस मामले को कुछ दिन टाला जा सकता था। इतने तक ही बात सीमित रहती तो सचिन को समझाया जा सकता था लेकिन समझौता प्रक्रिया के बीच ही गोविंद डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने गोविंद सिंह डोटासरा का नियुक्ति पत्र जारी कर दिया है। उन्हें 15 जुलाई की तारीख से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त करने का आदेश जारी हुआ है। बता दें कि सचिन पायलट को बर्खास्त करने के फौरन बाद ही डोटासरा की नियुक्ति की घोषणा कर दी गई थी। सचिन पायलट और उनके 18 समर्थक विधायकों को पार्टी व्हिप के उल्लंघन के मामले में विधानसभा स्पीकर की ओर से नोटिस जारी किया गया है। फिलहाल, हाईकोर्ट ने सुनवाई की तारीख टाल दी है। अब 20 जुलाई को फिर सुनवाई होगी। कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस पर कार्रवाई नहीं करने कहा है। वहीं, स्पीकर की ओर से भी कार्रवाई नहीं करने का होईकोर्ट को आश्वासन दिया गया है। कोर्ट में सत्ता पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सचिन पायलट ग्रुप की याचिका को प्री मैच्योर बताया है। दलील में उन्होंने कहा, याचिका मेंटिनेबल नहीं है, खारिज की जानी चाहिए। फिलहाल 20 जुलाई तक इंतजार करना चाहिए था। कांग्रेस हाई कमान ने ऐसा क्यों नहीं किया, यह समझ में नहीं आ रहा है। कांग्रेस ने सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत सरकार में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को पार्टी की कमान सौंप दी है। श्री डोटासरा राजस्थान के सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ विधानसभा से लगातार तीसरी बार विधायक हैं और गहलोत के करीबी नेताओं में माने जाते हैं। इसप्रकार राजस्थान में कांग्रेस के अंदर चल रही सियासी जंग में सचिन पायलट पर एक्शन ले लिया गया है। कांग्रेस ने सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत सरकार में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को पार्टी की कमान सौंपी है जो सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ विधानसभा से विधायक है। गोविंद सिंह डोटासरा का जन्म एक अक्टूबर 1964 को लक्ष्मणगढ़ के कृपाराम जी की ढाणी गांव में हुआ। इनके पिता मोहन सिंह डोटासरा सरकारी अध्यापक थे। डोटासरा ने राजस्थान विश्वविद्यालय से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई की है। गोविंद सिंह डोटासरा जाट समुदाय से आते हैं, जो राजस्थान की सियासत में काफी अहम माना जाता है। जाट मतदाता बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है, जिसे साधने के लिए कांग्रेस ने पायलट की जगह डोटासरा को पार्टी की कमान सौंपी है। गोविंद सिंह डोटासरा ने छात्र राजनीति के बाद युवा कांग्रेस में सक्रिय होकर कार्य किया था। वे युवक कांग्रेस में विभिन्न पदों पर रहे और 2005 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लक्ष्मणगढ़ जिले (सीकर) पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में गोविंद सिंह विजयी हुए और लक्ष्मणगढ़ पंचायत समिति के प्रधान भी चुने गए। गोविंद सिंह डोटासरा ने इसके बाद पलटकर पीछे नहीं देखा और सियासत में आगे बढ़ते गए। डोटासरा के राजनीतिक जीवन में उनके राजनीतिक गुरु और कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष चैधरी नारायण सिंह का भी बड़ा योगदान रहा। डोटासरा लगातार सात साल तक सीकर के कांग्रेस जिला अध्यक्ष रहे हैं। इस तरह से संगठन की बेहतर समझ रखते हैं। शायद यही कारण है कि लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट से वो लगातार तीन बार विधायक रहे हैं। उनके सामने कई बार विपरीत परिस्थितियाँ भी आयीं,लेकिन वे आगे बढते चले गये। मसलन 2008 के

विधानसभा चुनाव में डोटासरा को पहली बार विधानसभा का टिकट तो मिला। हालांकि, इस चुनाव में लक्ष्मणगढ़ की सीट परिसीमन में पहली बार सामान्य हुई थी इसलिए चुनाव लड़ने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त थी, लेकिन पार्टी ने उन पर भरोसा जताया। इस चुनाव में महज 34 वोट से जीतकर वो विधायक बने थे। इसके बाद 2013 में उन्होंने बीजेपी के सुभाष महारिया को करारी मात देकर अपना सियासी वर्चस्व कायम किया जबकि इस चुनाव में महज कांग्रेस के 20 विधायक ही जीत सके थे।

गोविंद सिंह डोटासरा ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सचिव की जिम्मेदारी निभाई थी और 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के मीडिया प्रभारी थे।इसके बाद 2018 के चुनाव में वह इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे। इसी का नतीजा है कि गहलोत ने उन्हें अपनी कैबिनेट में जगह दी और शिक्षा मंत्री बनाया है और अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है। सचिन पायलट और उनके 18 समर्थक विधायकों को पार्टी व्हिप के उल्लंघन के मामले में विधानसभा स्पीकर की ओर से नोटिस और हाईकोर्ट के फैसले के बाद राजस्थान में कांग्रेस के सामने गंभीर समस्याओं का आना तय है। भोपाल का नाटक जयपुर में भी खेले जाने की संभावनाएं प्रबल हो रही हैं। इसलिए गोविंद सिंह डोटासरा के सामने बहुत कठिन परीक्षा का समय है। कांग्रेस की सरकार बच जाती है तो वे उत्तीर्ण माने जाएंगे और सचिन पायलट भी पार्टी में पद संभाल लें तो डोटासरा को डिक्टेंशन मिलेगा।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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