पंजाब में 'शिअद' का शिअद को झटका

पंजाब में शिअद का शिअद को झटका
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पंजाब। नए राजनीतिक दल का पंजीकरण कराया जाएगा। यह दल पंजाब के विकास और इसकी शान को बहाल करने, पंजाबियों की खुशहाली, कृषि और इससे जुड़े मुद्दों, राज्य के किसानों की समस्याओं, उनके हितों और अधिकारों तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेट (एसजीपीसी) को बादल परिवार के चंगुल से मुक्त कराने के लिए काम करेगा।

सुखदेव सिंह ढींढसा पंजाब में 7 जुलाई को राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींढसा ने अपनी नई पार्टी शिरोमणि अकाली दल का ऐलान कर दिया। उन्हें सर्वसम्मति से पार्टी का प्रधान चुन लिया गया है। पूर्व सांसद परमजीत कौर गुलशन ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा। पंजाब में विपक्षी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को जबरदस्त झटका लगा। ढींडसा के नए राजनीतिक दल के गठन की घोषणा से जिसका नाम उन्होंने शिरोमणि अकाली दल ही रखा है। बैठक में ढींडसा के पुत्र और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) के पूर्व अध्यक्ष मजींत सिंह जीके और अखिल भारतीय सिख स्टूडेंट फेडरेशन के परमजीत सिंह खालसा भी मौजूद थे। सुखेदव सिंह ढींढसा ने कहा कि उनकी पार्टी का नाम शिरोमणि अकाली दल ही रहेगा। अगर पार्टी के नाम का रजिस्ट्रेशन करवाते समय कोई परेशानी होगी तो उस समय पार्टी के नाम में डेमोक्रेटिक शब्द जोड़ लिया जाएगा। फिलहाल उनकी पार्टी का नाम यही रहेगा। वह शिरोमणि अकाली दल को उसके पुराने रूप में लाने में पूरी मेहनत करेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चुनाव में खुलकर काम करेगी और इसमें जीत हासिल भी करेगी। इसके बाद बादल परिवार की तरफ से किए गए घपलों की जांच कर उन्हें सजा दिलाई जाएगी।

ढींडसा ने बाद में मीडिया से बातचीत में कहा कि उनके नये राजनीतिक दल का पंजीकरण कराया जाएगा। यह दल पंजाब के विकास और इसकी शान को बहाल करने, पंजाबियों की खुशहाली, कृषि और इससे जुड़े मुद्दों, राज्य के किसानों की समस्याओं, उनके हितों और अधिकारों तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेट (एसजीपीसी) को बादल परिवार के चंगुल से मुक्त कराने के लिये काम करेगा। इस सवाल पर कि उन्होंने नये दल का नाम शिरोमणि अकाली दल की क्यों रखा जबकि इस नाम से पहले ही एक राजनीतिक दल मौजूद है तो ढींडसा ने कहा कि वह मूल शिरोमणि अकाली दल की सोच को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं।

जहां एक तरफ टकसाली नेता जगदीश सिंह गरचा ने कहा कि उन्हें बादल साहब से कोई गिला नहीं है, सुखबीर बादल से परेशानी है। पंजाब को पूरी तरह से लूट लिया। युवाओं को नशे के दलदल में धकेल दिया। यह सब कुछ 10 साल के राज के दौरान हुआ है। 2022 चुनाव में सभी लोगों को साथ जोड़ा जाएगा। तो वहीं दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया ने कहा कि वह ढींढसा को बाहर से समर्थन करेंगे। उन्होंने कहा कि सुखबीर बादल ने अकाली दल को बिजनेस बनाकर रख दिया है। अब आर्बिट बस बिजनेस अकाली दल सुखबीर के पास रह गया है, असली अकाली दल ढींढसा के पास है। सुखबीर बादल ने लोगों के विश्वास का गलत इस्तेमाल किया है। ढींडसा के साथ आए वरिष्ठ नेता बीर दविंदर सिंह का कहना है कि सुखबीर बादल अकाली दल की नीतियों को तिलांजलि दे चुके हैं। हम पार्टी में लोकतांत्रिक मूल्यों को फिर से लाने का प्रयास करेंगे। नई पार्टी में हर कार्यकर्ता की सुनी जाएगी। अकाली दल को छोड़कर अभी कई नेता आएंगे।

हालांकि, सुखबीर बादल के नेतृत्व वाली शिरोमणि अकाली दल ने इस कदम को अवैध और धोखाधड़ी करार दिया है। शिअद नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि सुखदेव सिंह ढींडसा ने कांग्रेस के इशारे पर शिअद के नाम का गैरकानूनी उपयोग करके बड़ी साजिश रची है जो कभी सफल नहीं होगी। ढींडसा अपने तरीके से लोकतंत्र की व्यवस्था करना चाहते हैं। शिअद की आपत्ति अकाली दल के नाम पर की जा रही धोखाधड़ी पर है। चीमा ने कहा कि ढींडसा ने शिअद (टकसाली) अध्यक्ष रंजीत सिंह ब्रहमपुरा के साथ भी गलत किया। दिग्गज नेता के अस्पताल से आने का भी इंतजार नहीं किया। अगर वह अध्यक्ष बनना चाहते थे तो शिअद (टकसाली) के अध्यक्ष बनने से क्यों इंकार किया था। मतलब साफ है कि वे शिअद के खिलाफ नहीं लड़ रहे, शिअद अध्यक्ष बनना चाहते थे। वहीं ढींडसा ने कहा- मेरा बेटा भी नए अकाली दल का हिस्सा है। शिअद अब केवल बादल परिवार की पार्टी बन गई है, जिसमें केवल बादल परिवार की ही चलती है।

गौरतलब है कि पिछले लंबे समय से शिरोमणी अकाली दल में बादल परिवार के खिलाफ बगावत उठती रही है। इस साल फरवरी में पार्टी के राज्यसभा सांसद और दिग्गज नेता सुखदेव सिंह ढींढसा और उनके विधायक पुत्र ने आरोप लगाया था कि पार्टी को अलोकतांत्रिक तरीके से और एक परिवार द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। इसके बाद बादल के नेतृत्व वाली अकाली दल ने दोनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। उन्हें निलंबित करने से एक दिन पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने संगरूर शहर में ढींढसा के गढ़ में एक रैली के दौरान कहा था कि पिता-पुत्र की जोड़ी ने पार्टी की पीठ में छुरा घोंपा है। इसके अलावा अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने सुखदेव ढींढसा को गद्दार तक कह दिया था।

1999 में जब शिरोमणि अकाली दल सत्ता में था तो जत्थेदार गुरचरन सिंह टोहड़ा पार्टी से बगावत करके अलग हो गए। अब सुखदेव सिंह ढींडसा ने वैसा ही कदम उठाया है। राजनीतिक हलकों में इन दोनों बगावतों की आपस में तुलना की जा रही है। कहा जा रहा है कि जब टोहड़ा जैसा बड़े कद का नेता बादल परिवार का कुछ नहीं बिगाड़ सका तो ढींडसा क्या कर लेंगे? राजनीतिक विश्लेषक मालविंदर सिंह का मानना है कि यह ठीक है कि टोहड़ा बड़े कद के नेता थे और वह बादल का कुछ नहीं बिगाड़ सके, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब पार्टी की कमान प्रकाश सिह बादल के हाथ में न होकर सुखबीर बादल के हाथ में है। सुखबीर पार्टी को लोकतांत्रिक ढंग से चलाने की बजाए तानाशाह की तरह चलाते हैं। वह कहते हैं, दूसरा पार्टी की अब स्थिति 1999 की तरह मजबूत भी नहीं है। पहले ही शिअद आइसोलेशन में है। बेअदबी कांड को लेकर अभी तक पंथक लोगों ने माफ नहीं किया है। 2017 के बाद 2019 के लोकसभा के नतीजे इसके उदाहरण हैं। विधानसभा में मात्र 13 और लोकसभा में मात्र दो सीटों पर पार्टी सिमटी हुई है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सुखदेव ढींडसा केंद्र सरकार के खिलाफ चल पाएंगे? पंजाब में अकाली दल क्षेत्रीय पार्टी है। पंजाबियों ने हमेशा उसी पार्टी का साथ दिया है जिसने दिल्ली से टकराव वाली स्थिति रखी है। ढींढसा और उनकी पार्टी ऐसा क्या करती है कि पंजाब के लोग सुखबीर का साथ छोड़ कर ढींडसा की पार्टी का सहयोग करें।

(केशव कान्त कटारा-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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