बर्थडे स्पेशल: धोनी के आस पास के लोग उनकी कड़ी मेहनत और जुनून के कायल

बर्थडे स्पेशल: धोनी के आस पास के लोग उनकी कड़ी मेहनत और जुनून के कायल

रांची झारखंड के महानगर रांची का वह स्कूल और उस क्षेत्र में जहां माही पले-बढ़े, वहां के लोग उनके बचपन विषय में दिलचस्प बातें बताते हैं। स्कूली दिनों में धोनी फुटबॉल टीम में गोलकीपर थे और क्रिकेट में उनका कोई रुझान नहीं था। जब स्कूल की क्रिकेट टीम में एक विकेटकीपर की खोज थी और इस समय उनके टीचर की दृष्टि महेंद्र सिंह धोनी पर पड़ी। धोनी ने साफ तौर से अस्वीकार कर दिया लेकिन कुछ दिन बाद उन्होंने टीचर की बात स्वीकार ली। आज यह सुनकर किसी को भी विस्मय हो सकती है कि महेंद्र सिंह धोनी को विकेटकीपर बनाने के लिए तब उनके टीचर को उनकी विनती करनी पड़ी थी। एक बार जब धोनी ने अपना किरदार बदल लिया तो फिर पूरी तरह क्रिकेट की दुनिया में खो गए। सामान्य परिवेश में जन्मे महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी दिन और रात की मेहनत, लगन और जज्बे ने क्रिकेट जगत के इतिहास में अपना वो स्थान बनाया है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण बन गया है, परंतु खास बात यह है कि माही कभी क्रिकेटर नहीं बनना चाहते थे।




जिस फिल्ड में धोनी क्रिकेट खेला करते थे, वहां आज भी आस पास के लोग उनकी कड़ी मेहनत और जुनून का वर्णन करते हैं। धोनी की कामना क्रिकेट जगत में अपना अलग स्थान बनाने की थी, लेकिन ये मंजिल अभी बहुत लंबी और कठिन थी।

महेंद्र सिंह धोनी के क्रिकेट कौशल पर क्रिकेट के जानकारों की नजर पड़ चुकी थी। बहुत कम उम्र में उन्हें बिहार की तरफ से रणजी ट्रॉफी में खेलने का अवसर मिला। रणजी में अच्छा खेल दिखाया तो रेलवे ने धोनी को नौकरी ऑफर की। सामान्य परिवार के लिए सरकारी नौकरी का महत्व बडा था लिहाजा धोनी ने नौकरी ज्वाइन कर ली। लेकिन भाग्य ने धोनी को पश्चिम बंगाल के खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर टिकट कलेक्टर की नौकरी करने के लिए नहीं चुना था। खुद धोनी के भी ख्वाब अलग थे। एक दिन नौकरी छोड़कर लौट आए। फिर, रांची के एक मैदान पर क्रिकेट प्रैक्टिस शुरू हो गई।

ये वो समय था जब भारतीय क्रिकेट टीम को एक अच्छे विकेटकीपर की खोज थी। सौरव गांगुली कप्तान थे और कई अन्य पर विचार कर चुके थे। अड़चन ये भी थी कि टीम में लोअर ऑर्डर पर कोई ऐसा बल्लेबाज नहीं था जो धुंआधार बैटिंग के दम पर विपक्षी टीम के छक्के छुड़ा दे। धोनी को 2003 में जिम्‍बाब्‍वे और केन्‍या के दौरे पर इंडिया ए टीम में पहली बार जगह मिली थी। माही ने मौके का फायदा उठाया और 7 मैचों में 362 रन ठोक दिए। इस दौरान उन्‍होंने 7 कैच और 4 स्‍टंपिंग भी की। दादा यानी सौरव गांगुली की दृष्टि धोनी पर पड़ी और उन्होने माही पर दांव खेलने का फैसला कर लिया। साल 2004 में महेंद्र सिंह धोनी को टीम इंडिया में पहला मौका मिला।

बांग्लादेश के खिलाफ डेब्यू करते हुए अपने तीन मैचों में उन्होंने सिर्फ 19 रन बनाए। लेकिन गांगुली का उनपर भरोसा बना रहा। 2005 की शुरुआत में जब पाकिस्‍तानी टीम भारत दौरे पर आई तो उन्हें टीम में जगह मिली। पहले मैच में धोनी ने सिर्फ तीन रन ही बनाए थे । लेकिन विशाखापत्‍तनम के मैच में सौरव गांगुली ने एक अजीब फैसला किया। धोनी को प्रमोट करके तीसरे नंबर पर भेजा गया। यहां से नया इतिहास बन गया। धोनी ने इस मैच में 123 गेंदों पर 148 रन की पारी खेली और भारत को 58 रन से जीत दिलाई। इसके बाद धोनी की बल्लेबाजी और उनका हेयर स्टाइल एक साथ देश भर में चर्चा का विषय बन गया।

पाकिस्तान दौरे पर गए माही ने आतिशी बल्लेबाजी की थी। यहां तक कि पाकिस्तान में भी अपने फैन बन गए थे, उनके चाहने वालों में तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भी थे। अवॉर्ड सेरेमनी में मुशर्रफ ने धोनी की बल्लेबाजी के साथ-साथ उनके लंबे बालों की भी प्रशंसा की।

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