ज़िन्दगी से कुश्ती हार गए पहलवान- शिक्षक से सियासी गुरू बने थे मुलायम
लखनऊ। वंशवादी और प्रभावशाली राजनीति ने जमीनी राजनेताओं के सामने दीवार खड़ी कर दी है। अब उन लोगों को राजनीतिक दल हाथो हाथ लपक लेते हैं जो चुनाव में जीत दिला सकते हैं । इनका जनाधार नहीं होता बल्कि धन और बल की दहशत होती है। ऐसे में किसी जमीन से जुड़े जनाधार वाले नेता का निधन अपूर्णीय छति के समान होता है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ऐसे ही नेता थे। वह पिछले कई दिनों से मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। उनका इलाज कर रहे चिकित्सक उनकी हालत को स्थिर बता रहे थे । देश भर में उनके स्वस्थ होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना और अल्लाह से दुआएं भी मांगी गयीं लेकिन सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव सोमवार 10 अक्टूबर को इस नश्वर संसार को छोड़ कर चले गये। उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में 82 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। पीछे रह गई मुलायम सिंह यादव से जुड़ी यादें। नेता जी का स्वभाव ही कुछ ऐसा था कि वो यारों के यार थे। पत्कारों के साथ उनके बहुत ही मधुर संबंध रहे। अपनों के चहेते थे। राजनीति में विरोधी भी उनके व्यक्तित्व की तारीफ करते थे। नेता जी के गृह जिले उत्तर प्रदेश के इटावा में बहुत लोगों से उनके मधुर रिश्ते रहे हैं। इन्ही में से हैं एक सिविल लाइन इलाके में रहले वाले अंग्रेजी के रिटायर्ड शिक्षक अवध किशोर वाजपेयी हैं। नेताजी के जिंदादिली के कुछ किस्से अखिलेश के शैक्षिक गुरु अवध किशोर बाजपेई जब बता रहे थे तब उनकी आंखे डबडबा आयीं। यहीं पर जन की तकलीफ देख मुलायम सिंह जनसेवा के छेत्र में उतर पड़े थे । उसी भावना से वह राजनीति तब भी कर रहे थे जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
मुलायम सिंह यादव का बचपन अभावों में बीता पर वे अपने साथियों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे। नेता जी को बचपन से ही पहलवानी का बड़ा शौक था। शाम को स्कूल से लौटने के बाद वे अखाड़े में जाकर कुश्ती लड़ते थे जहां पर वे अखाड़े में बड़े से बड़े पहलवान को चित कर देते थे। वह भले ही छोटे कद के थे, लेकिन उनमें गजब की फुर्ती थी। अक्सर वह पेड़ों पर चढ़ जाते थे और आम, अमरूद, जामुन बगैरह तोड़कर अपने साथियों को खिलाते थे। कई बार लोग उनकी शिकायत लेकर उनके घर पहुंच जाते थे. तब उन्हें पिताजी की डांट भी पड़ती थी। दूसरों की मदद करना और उनके दुख से दृवित होना मुलायम सिंह का स्वभाव बन गया था। वह जब उत्तर प्रदेश की बागडोर पहलीबार मुख्यमंत्री के रूप में संभाल रहे थे तब चुंगी समाप्त करने के पीछे की मार्मिक कहानी बतायी थी। उन्होंने पत्रकार वार्ता में बताया कि उनके गांव सैफई का एक किसान तीन लौकी तोड़ कर बाजार में बेचने गया। सोचा था लौकी बेचकर घर के लिए आटा दाल लाएगा। अभी वह बाजार से आधी दूर ही पहुंचा था कि हल्के का सिपाही मिल गया। उसने कहा अरे लौकी तो बहुत ताजी दिख रही है। किसान ने हामी में सिर हिलाया और बोला जी हुजूर। सिपाही ने एक लौकी उसके हाथ से छीन ली। किसान मन मसोस कर रह गया। फिर भी उसके पास दो लौकी थीं। इन्ही को बेचकर आटा दाल ले लेगा। यही सोचकर जा रहा था तभी चुंगी चौकी से आवाज आयी अरे बिना चुंगी दिये लौकी बेचने जा रहे हो। निकालो पैसे। किसान के पास पैसे थे नहीं सो मायूस होकर खड़ा हो गया। चुंगी वाले ने कहा चल पैसे नहीं हैं तो एक लौकी रख दे। किसान ने एक लौकी वहां रख दी और तीसरी लौकी बेचकर आटा खरीदा। दाल के लिए पैसे ही नहीं थे। मुलायम सिंह ने कहा हमारी सरकार ने इसी लिए चुंगी चौकी समाप्त कर दी है । सरकार को घाटा जरूर होगा लेकिन गरीब किसान सब्जी बेचकर आटा दाल तो खरीद सकेगा।
मुलायम सिंह यादव को दयालु स्वभाव का प्रतिफल भी मिला। बात 1967 के विधानसभा चुनाव की है. जब नेताजी (मुलायम सिंह यादव) चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पैसे नहीं थे। वो पैसे की व्यवस्था करने में लगे थे लेकिन व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। चुनाव प्रचार के दौरान एक दिन नेताजी के घर की छत पर पूरे गांववालों की बैठक हुई। उसमें सभी जाति के लोग शामिल हुए। बैठक में गांव के ही सोनेलाल शाक्य ने सुझाव दिया कि मुलायम सिंह यादव को चुनाव लड़ाने के लिए अगर हम गांववाले एक शाम का खाना नहीं खाएं तो आठ दिन तक मुलायम की गाड़ी चल जाएगी।
सभी गांववालों ने एकजुट हो सोनेलाल के प्रस्ताव का समर्थन कर दिया। सभी के साझा प्रयास का ही फल था कि मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़े और पहली बार इटावा जिले की जसवंतनगर सीट से विधायक चुने गये। जब मुलायम सिंह को पहली बार विधानसभा का टिकट मिला था तो सभी गांव वालों ने जनता के बीच जाकर वोट के साथ-साथ चुनाव लड़ने के लिए चंदा मांगा था। मुलायम अपने भाषणों में लोगों से एक वोट और एक नोट (एक रुपया) देने की अपील करते थे। वे कहते थे कि हम विधायक बन जाएंगे तो किसी न किसी तरह से आपका एक रुपया ब्याज सहित आपको लौटा देंगे। लोग मुलायम सिंह की बात सुनकर खूब ताली बजाते थे और दिल खोलकर चंदा देते थे।
नेता जी अपने दोस्त दर्शन सिंह के साथ साइकिल से चुनाव प्रचार करते थे। बाद में चंदे के पैसों से एक सेकेंड हैंड कार खरीदी, जिसमें अक्सर धक्का लगाना पड़ता था। मुलायम सिंह को राजनीति में बहुत संघर्ष करना पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने मैनपुरी के जिस कॉलेज में पढ़ाई की, बाद में उसी कॉलेज में अध्यापक भी बने।
मुलायम सिंह यादव को राजनीति में लाने का श्रेय उस समय के कद्दावर नेता नत्थू सिंह को जाता है जिन्होंने मुलायम सिंह के लिए अपनी सीट छोड़ दी थी। उन्हें चुनाव लड़वाया और सबसे कम उम्र में विधायक बनवाया। उस समय बहुत सारे लोग ऐसे थे जिन्होंने मुलायम सिंह को विधानसभा का टिकट दिए जाने का विरोध किया था, लेकिन नत्थू सिंह के आगे किसी की नहीं चली। नत्थू सिंह यादव कहते थे कि मुलायम सिंह पढ़े-लिखे हैं, इसलिए उन्हें विधानसभा में जाना चाहिए। मुलायम सिंह की एक बड़ी खासियत ये थी कि वे अपने लोगों को हमेशा याद रखते थे। अपनों को कभी भूलते नहीं थे. भले ही वो देश के इतने बड़े नेता बन गए. लेकिन जब भी पुराने लोगों से मिलते उनसे पुरानी बातें करते थे। आज इस प्रकार की कितनी ही समृतियां मन में उमड़ घुमड़ जाती है और मुलायम सिंह का चेहरा सामने आ जाता है।
विपक्ष में रहते हुए भी 2019 में मुलायम सिंह यादव ने नरेन्द्र मोदी को पीएम बनने का आशीर्वाद दिया था। उनके निधन का समाचार पाकर पीएम मोदी बहुत दुखी हुए । उन्होंने कहा कि आज मुलायम सिंह यादव जी का निधन हो गया है। मुलायम सिंह यादव जी का जाना देश के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। मुलायम सिंह यादव से अपनत्घ्व का भाव था। मुलायम सिंह के जाने से बड़ी राजनितिक क्षति हुई है। इसकी कभी भरपाई नहीं की जा सकेगी। मोदी ने उनके साथ अलग-अलग समय पर ली गई तस्घ्वीरों को भी साझा कघ्यिा है।पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा है-' श्री मुलायम सिंह यादव जी एक विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे। उन्हें एक विनम्र और जमीन से जुड़े नेता के रूप में व्यापक रूप से सराहा गया, जो लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील थे। उन्होंने लगन के साथ लोगों की सेवा की और लोकनायक जेपी और डॉ. लोहिया के आदर्शों को लोकप्रिय बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। मुलायम सिंह जैसे लोग कभी मरते नहीं दृश्य से अदृश्य हो जाते हैं। (हिफी)