क्या नीतिश करेंगे मोदी नमस्ते!

क्या नीतिश करेंगे मोदी नमस्ते!

लखनऊ। बिहार में 2020 में जब नीतिश कुमार ने सरकार बनायी, तब भी गठबंधन में तनाव था। यह चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही शुरू हो गया था जब भाजपा नहीं बल्कि उसके गुर्गो ने यह सवाल उछाल रहे थे कि जद(यू) को इतनी सीटें क्यों दी जानी चाहिए। राज्य में गठबंधन का चेहरा कौन हो, इस पर तो जद(यू) नेता बौखला गये थे और विवाद को आगे न बढ़ाते हुए भाजपा के नेतृत्व ने कह दिया कि चेहरा तो नीतिश होंगे। हालांकि जब विधान सभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो जनता ने मोदी को ही चेहरा साबित कर दिया। इस प्रकार गठबंधन में कसक अंदर ही अंदर चल रही है। राम चंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) के चलते यह कसक और बढ़ गयी थी। अब जद(यू) का आरोप है कि भाजपा उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रही है। खबरे तो यहां तक आ रही है कि नीतिश कुमार भाजपा का साथ छोड़कर राजद और कांग्रेस के साथ फिर सरकार बना सकते है।

बिहार में जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी का गठबंधन टूटने की कगार पर है। सूत्रों के अनुसार जल्दी ही जेडीयू बीजेपी से अलग होने की घोषणा कर सकती है। माना जा रहा है कि आरजेडी, बामपंथियों और कांग्रेस के साथ मिल कर नीतिश सरकार बनाएंगे। दरअसल पार्टी के अधिकांश विधायक मध्यावधि चुनाव नहीं चाहते हैं। इसलिए अन्य पार्टियों से सरकार बनाने को लेकर बातचीत चल रही है. जेडीयू का आरोप है कि बीजेपी उनकी पार्टी तोड़ने की कोशिश कर रही है और आरसीपी सिंह के जरिए जेडीयू को नुकसान पहुंचाने में लगी है। इसी संदर्भ में उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे और बिहार इकाई के अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल के नेतृत्व में बीजेपी के एक प्रतिनिधिमंडल ने वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और नीतीश कुमार के करीबी विजय कुमार चौधरी से मुलाकात की थी। कांग्रेस ने भी अपने विधायकों की एक बैठक पटना में की। हालांकि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने अपनी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ अनबन की अटकलों को खारिज किया था और सब कुछ ठीक होने का दावा किया था. लेकिन अब इन दोनों पार्टियों के गठबंधन टूटने की खबरें आ रही हैं। बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 243 सीटों में से एनडीए को 125 सीटें मिली थी। नीतीश की पार्टी जद(यू) ने 43 सीटें हासिल की थी. जबकि भाजपा ने 74 सीटों पर विजय हासिल की थी। जद(यू) के कम सीटें जीतने के बावजूद भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया था।

ये बात किसी से छिपी नहीं है कि नीतीश कुमार ने जिस उम्मीद से भाजपा के साथ हाथ मिलाया था उसका 20 फीसद लाभ भी वो अपने समर्थकों या जनता को गिना पाने में समर्थ नहीं हैं। बाढ़ राहत के मामले में केंद्र ने अनुशंसा की थी कि बिहार को नियमों को शिथिल कर अधिक केंद्रीय सहायता दी जाएगी, लेकिन जो मिला वह ऊंट के मुंह में जीरा जैसा ही था। इसके अलावा नदियों में गाद की समस्या हो या बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात, जिसका वादा खुद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पूर्व किया था, पूरा नहीं हुआ। इसके अलावा बिजली के क्षेत्र में बिहार में हुए काम को केंद्र सरकार अपनी उपलब्धि के तौर पर गिना रही है. इसके अलावा जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश ने लालू का साथ छोड़ा उस फ्रंट पर भी मोदी सरकार का रवैया ढीला रहा है। जैसे तेजस्वी यादव के खिलाफ आज तक कोर्ट ने एसआईटी का केवल इसलिए संज्ञान नहीं लिया है, क्योंकि रेल मंत्रालय ने अपने दो अधिकारियों के खिलाफ मामला चलाने की अनुमति नहीं दी। वही भाजपा को लगता है कि नीतीश अपनी मर्जी से गठबंधन चलाना चाहते हैं। उन्होंने योग दिवस में हिस्सा नहीं लिया और अक्सर सार्वजनिक मंचों पर उनका बयान केंद्र के प्रति आलोचक का होता है. जैसे- केंद्रीय किसान कृषि बीमा योजना को उन्होंने लागू करने से मना कर दिया। अल्पसंख्यकों के खिलाफ भाजपा नेताओं के बयान से नीतिश नाराज होते हैं। सूत्रों के मुताबिक सीएम नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद), वाम मोर्चा और कांग्रेस के साथ एक वैकल्पिक सरकार बनाने की योजना बना रहे हैं। दरअसल पार्टी के अधिकांश विधायक मध्यावधि चुनाव नहीं चाहते हैं. इसलिए अन्य पार्टियों से सरकार बनाने को लेकर बातचीत चल रही है।

जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन ने बीजेपी का नाम लिए बिना उनपर साजिश रचने का आरोप लगाया था और उन्हें उचित समय पर बेनकाब करने की धमकी दी थी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के सभी विधायकों और सांसदों की बैठक भी बुलाई है। इसी से गठबंधन टूटने की अटकलें तेज हो गई हैं। नीतीश के करीबी सूत्रों का कहना है कि जिस तरह से बिहार भाजपा नेताओं द्वारा उन पर हमला किया जा रहा है, उससे वह नाराज हैं. नीतीश कुमार चाहते हैं कि बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा को हटा दिया जाए. मुख्यमंत्री ने विजय कुमार सिन्हा पर कई बार अपना आपा खोया है, उन पर नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के खिलाफ सवाल उठाकर संविधान का खुले तौर पर उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। नीतीश कुमार इस बात से भी नाराज हैं कि जून 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार में केवल एक ही मंत्री पद की पेशकश उनकी पार्टी के लिए की गई थी। जेडीयू प्रमुख राज्य और राष्ट्रीय चुनाव एक साथ कराने के भी खिलाफ हैं। राज्यों और संसद के चुनाव एक साथ कराने का विचार पीएम मोदी ने किया था, जिसका विपक्ष ने कड़ा विरोध किया है. यह उन मुद्दों में से एक था, जहां जेडीयू को विपक्ष के साथ आम जमीन मिली।

नीतीश कुमार बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा सहयोगियों को केंद्रीय मंत्रियों के रूप में सांकेतिक प्रतिनिधित्व की पेशकश पर भी नाराज हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह, जिन्होंने गत 6 अगस्त को जेडीयू छोड़ दी थी, उन्होंने केंद्रीय मंत्री बनने के लिए नीतीश कुमार को दरकिनार करते हुए, बीजेपी नेतृत्व से सीधे तौर पर बातचीत की थी. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन (ललन) सिंह ने कहा, केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की क्या जरूरत है? मुख्यमंत्री ने 2019 में फैसला किया था कि हम केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं होंगे। यहां पर ध्यान देने की बात है कि जद(यू) से इस्तीफा देने वाले आरसीपी सिंह पूर्व में नीतिश के सेक्रेट्री रह चुके है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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