इस चुनाव में किसके हिस्से में जाएंगे दलित वोटर - इस बार बदलेगा समीकरण

इस चुनाव में किसके हिस्से में जाएंगे दलित वोटर - इस बार बदलेगा समीकरण

नयी दिल्ली। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में दलित वोटरों को लेकर इस बार चुनावी जंग में रस्साकशी तगड़ी रहेगी। पहले कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, इनोलो, जननायक जनता पार्टी और बसपा में बटे रहे दलित वोटरो को क्या इस बार जहा भाजपा व कांग्रेस अपने बलबूते पर दलित वोटर साधने की कोशिश रही है। वही जेजीपी के साथ आए युवा दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद और इंडियन नेशनल लोकदल के साथ मायावती के गठबंधन के चलते दलित वोटर किस तरफ जाएगा। यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन 17 सुरक्षित विधानसभा सीटों पर इस बार दलित वोटरों को लेकर कांटे की टक्कर भी होगी। 2014 और 2019 में दलित वोटर किसके पक्ष में गए, किसने कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा और कितनी सीट जीतीं,

हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर 5 अक्टूबर को चुनाव मतदान होगा और 8 अक्टूबर को नतीजा आएंगे। नतीजे आने के बाद ही तय होगा कि हरियाणा में किसकी सरकार बनेगी और दलित बहुल विधानसभा सीटों पर किसके पक्ष में दलित सबसे ज्यादा मतदान करेंगे। वैसे तो हरियाणा में 17 विधानसभा सीट सुरक्षित है लेकिन 35 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर्स चुनाव को प्रभावित करते हैं यानी जिनके हिस्से में दलित वोटर ज्यादा, उसकी इन विधानसभा सीटों पर जीत पक्की मानी जाती है। हरियाणा विधानसभा सीटों का जातीय समीकरण देखे तो सबसे ज्यादा जाट 25% है। वही दलित वोटर 21% संख्या को रखते हुए दूसरे नंबर पर आते हैं। हरियाणा में दलित वोटरों को लेकर सीधी सीधी लड़ाई भाजपा - कांग्रेस में चलती रही है लेकिन मायावती अगर 2019 की विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो उससे पहले के विधानसभा चुनाव में एक विधायक तो अपना जीत ही लेती थी लेकिन इससे ज्यादा मायावती हरियाणा विधानसभा चुनाव में कभी नहीं बढ़ पाई।

अगर बात करें 2014 के विधानसभा चुनाव की तो भारतीय जनता पार्टी ने 17 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसने सर्वाधिक सुरक्षित नौ विधानसभा सीट जीती थी। इसके साथ ही कांग्रेस के हिस्से में 4 सीटें आई थी जबकि इंडियन नेशनल लोकदल ने तीन और शिरोमणि अकाली दल ने एक जीती थी। इसके बाद 2019 में कांग्रेस ने दलितों में बेहतर काम किया। कांग्रेस में दलित नेता के तौर पर कुमारी शैलजा एक बहुत बड़ा नाम है। 2019 के जब विधानसभा चुनाव आए तब कांग्रेस ने 2014 के मुकाबले तीन सीटें अधिक जीती थे। मतलब कांग्रेस ने 2014 के मुकाबले 4 से बढ़ाकर विधानसभा में अपनी संख्या 7 कर ली थी जबकि भारतीय जनता पार्टी की संख्या 9 से घटकर पांच रह गई थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल, शिरोमणि अकाली दल और बसपा के हिस्से में शून्य आया था जबकि जननायक जनता पार्टी ( JJP ) ने चार सुरक्षित विधानसभा सीटों पर अपनी जीत दर्ज की थी।

अब 2024 के विधानसभा चुनाव में 21% की आबादी वाले दलित वोटरों पर कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी सहित सभी पार्टियों की निगाहें हैं। इस बार जहां भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ रही है तो वहीं कांग्रेस भी अपने बलबूते चुनावी मैदान में है जबकि मायावती ने इस बार इंडियन नेशनल लोकदल से हाथ मिलाया है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट से सांसद बनने वाले आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्र शेखर आज़ाद और जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला के बीच गठबंधन हुआ है। यानी क्या इस बार दलित वोटर कांग्रेस , भाजपा, जेजेपी - आज़ाद समाज पार्टी गठबंधन या बसपा - इनेलो गठबंधन मतलब चार जगह दलित वोटर बटेंगे या मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहेगा। दरअसल मायावती हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ती रही है लेकिन साल 2019 में वह कोई भी विधानसभा सीट नहीं जीत पाई थी। इसी को देखते हुए इस बार मायावती ने इंडियन नेशनल लोकदल से हाथ मिलाया और चुनावी मैदान में कूद पड़ी। इसके साथ ही आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर ने भी जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला से हाथ मिलाकर दलित वोटरों में अपनी एंट्री मारने की कोशिश की है।

90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा विधानसभा में जेजेपी ने जहां 70 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं वही दलित बाहुल्य सीटों पर इस बार चंद्रशेखर आजाद को 20 सीट देते हुए मौका दिया है। दूसरी तरफ अगर भारतीय जनता पार्टी की तैयारी की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी दलितों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए बड़े स्तर पर काम कर रही है। विधानसभा चुनाव से पहले ही भारतीय जनता पार्टी ने मनोहर लाल का परिवार नाम से एक मुहिम चलाई जिसमें दलित महिलाओं ने लोटा लाकर मनोहर लाल खट्टर को सौपा था यानी कहीं ना कहीं भाजपा दलितों को अपने साथ जोड़ने के लिए लगातार सक्रिय रही। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी ने जिला एवं विधानसभा स्तर पर दलित समाज के साथ सम्मेलन किया और उन सम्मेलनों में केंद्र और हरियाणा सरकार की दलितों के लिए किये जा रहे कार्यों को उपलब्धि के रूप में भी बताया।

वही दूसरी तरफ कांग्रेस के पास कुमारी शैलजा नाम का एक बहुत बड़ा दलित चेहरा है लेकिन विधानसभा चुनाव आते-आते कुमारी शैलजा कांग्रेस से नाराज हो गई थी हालांकि अब वो एक्टिव मोड़ में नजर आ रही है । कुमारी शैलजा मौजूदा लोकसभा सांसद है। वह पांच बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा की सांसद रही है। हरियाणा में दलितों के बीच में कुमारी शैलजा बहुत बड़ा नाम है। दरअसल कुमारी सैलजा चाहती थी कि कांग्रेस उनको मुख्यमंत्री के रूप में अपना चेहरा घोषित करें लेकिन कांग्रेस जाटों की बड़ी तादाद और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हरियाणा में कद को देखते हुए किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बना पाई है। तो क्या कांग्रेस को इस बार 2014 के मुकाबले 2019 में जो सुरक्षित सीटों पर बढ़त मिली थी क्या वह कम होगी या उसमे इस बार बढ़ोत्तरी होगी , क्या भारतीय जनता पार्टी ने अपने सम्मेलन के जरिए दलितों में जो पैठ बनाई है, उसका फायदा उसे 2014 जैसा मिलेगा या वह 2019 की तरह ही नुकसान में जाएगी। क्या दो दलित बड़े चेहरे मायावती और चंद्रशेखर आजाद दलितों में अपनी पैठ बनाकर कांग्रेस और भाजपा के लिए नुकसान पैदा करेंगे और खुद चुनाव जीतेंगे। यह तो 8 अक्टूबर को ही पता लगेगा जब चुनाव के नतीजे आएंगे लेकिन इतना जरूर है कि हरियाणा के चुनावी रण में दलित केंद्र बिंदु बना हुआ है।

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