कौन है हरेंद्र मलिक, जिन्हें मुजफ्फरनगर से मिला टिकट- पढ़िए सियासी सफर

कौन है हरेंद्र मलिक, जिन्हें मुजफ्फरनगर से मिला टिकट- पढ़िए सियासी सफर

मुजफ्फरनगर। किसान परिवार में जन्मे हरेन्द्र मलिक की छात्र राजनीति में कदम रखकर सियासत की शुरूआत की है। सपा के राष्ट्रीय महासचिव हरेन्द्र मलिक ने अपनी लग्न और मेहनत से सियासत में बड़ा नाम स्थापित किया है। सियासत का शौंक रखने वाले हरेन्द्र मलिक चार बार विधायक और एक बार राज्यसभा सांसद रहे हैं। कद्दावर नेता हरेन्द्र मलिक ने विधानसभा और राज्यसभा में किसान, मजूदर और गरीब की आवाज उठाने का काम किया। सपा राष्ट्रीय महासचिव हरेन्द्र मलिक पश्चिमी यूपी के सर्वसमाज में पुख्ता पकड़ रखते हैं। लोकप्रिय नेता हरेन्द्र मलिक को सपा राष्ट्रीय महासचिव के साथ-साथ मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का प्रभारी बनाया गया था। अब समाजवादी पार्टी ने लोकसभा सीट पर प्रत्याशियों की घोषणा करते हुए कद्दावर नेता हरेन्द्र मलिक को मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है।

गौरतलब है कि हरेन्द्र मलिक ने शुरूआती पढ़ाई गांव किनौनी एक विद्यालय से की। उन्होंने बघरा से इंटरमीडिएट की परीक्षा पासआउट की। उसके बाद मुजफ्फरनगर कॉलेज का एडमिशन लिया। हरेन्द्र मलिक ने खोजी न्यूज से बात करते हुए बताया कि वह स्पोर्ट्स मैन थे। इसी वजह से उनकी खेल के मैदान में विभिन्न फिल्ड को देख रहे लोगों से मुलाकात होती थी। हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि जब छात्र राजनीति के चुनाव हुए तो देखने में आया कि छात्र राजनीति में बड़े नेताओं के ग्रुप थे। इसी दौरान लोगों में तय हुआ कि एक ऐसा ग्रुप बनाया जाये, जिसमें बड़े नेताओं का वर्चस्व ना हो। हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि उसमें हम लोगों ने अपने प्रत्याशी लड़ाये और खतौली, शामली और मुजफ्फरनगर तीनों डिग्री कॉलेजों में हमारे ग्रुप के लोग जीत गये। छात्र राजनीति से ही हरेन्द्र मलिक की सियासत में एंट्री हुई है। उनका कहना है कि जब राजनीति में साफ-सुथरी छवि के छात्र ही छात्र सियासत में आते थे, अपराधी छात्र राजनीति नहीं आते थे।

हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि छात्र राजनीति के बाद वह एनएसयूआई में एक्टिव हुए। एनएसयूआई में सक्रिय होने के बाद 1 मई 1978 के एनएसयूआई के आंदोलन में दिल्ली में जेल गये और 9 दिन तिहाड़ जेल में रहे। उस दौरान हरेन्द्र मलिक की उम्र 21-22 साल थी। दिसम्बर 1978 में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी हुई तो उस दौरान हरेन्द्र मलिक 13 दिन जिला कारागार में रहे। उसके बाद 1980 का चुनाव आया तो कांग्रेस पार्टी के बड़े लीडर संजय गांधी ने कहा कि हरेन्द्र मलिक तुम बघरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ो। हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि उस दौरान उनकी आयु नहीं थी। संजय गांधी वीरेन्द्र वर्मा जी के साथ पर उन्हें चुनाव लड़ाना चाहते थे, जो उन्हें स्वीकार नहीं था और ना उसे समाज स्वीकार करता। हरेन्द्र मलिक ने उन्हें विनम्रता से मना किया। इसके बाद उनका स्वर्गवास हो गया। उनके स्वर्गवास के बाद संजय गांधी के नजदीक लोगों को हासिए पर लाना शुरू कर दिया चूंकि मेनका गांधी जी और कांग्रेस नेतृत्व का रिश्ता अच्छा नहीं रहा था। हरेन्द्र मलिक भी उसका शिकार हुए। 1984 के लोकसभा चुनाव में हरेन्द्र मलिक चौधरी चरण सिंह के सम्पर्क में आये। हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि जब चौधरी चरण सिंह से उनकी पहली मुलाकात हुई तो उन्हें लगा कि यह आदमी नेता नहीं है, यह तो विशुद्ध किसान है और समाज सुधारक है। उनसे प्रभावित होकर 1984 में ही लोकदल की सदस्यता ग्रहण कर ली।

हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि 1982 में वह प्रमुखी का चुनाव लड़े लेकिन अंडर ऐज कहकर उनका पर्चा कैंसिल करा दिया। उनका कहना है कि 1982 में उनका नोमिनेशन पॉलटिक्लि प्रेशर की वजह से कैंसिल हुआ था। हरेन्द्र मलिक बीडीसी निर्वाचित हो चुके थे। ऐसी स्थिति में 1984 में चैधरी चरण सिंह की पार्टी दलित मजदूर किसान पार्टी से चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद से वह लगातार चार बार चुनाव जीतते रहे। हरेन्द्र मलिक खोजी न्यूज से कहते हैं कि चैधरी चरण सिंह का स्वर्गवास होने के बाद वर्ष 1996 में उन्होंने समाजवादी पार्टी की सदस्या ली। उसके बाद वर्ष 2001 में चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल का चुनाव लड़ने निर्णय हुआ और उसमें मुलायम सिंह जी की सहमति से आदरणीय नेताजी को विश्वास में लेकर चुनाव लड़ा। उसके बाद हरेन्द्र मलिक को राज्यसभा सासंद बनाकर उन्हें राज्यसभा भेज दिया गया।

हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि वर्ष 2004 के उपचुनाव में मेरा सुपुत्र पकंज मलिक जो उस समय एलएलबी का छात्र था। मेरा सुपुत्र पंकज मलिक उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा विधानसभा सीट बघरा से। उपचुनाव में पंकज मलिक का उतना ही वोट मिला, जितना हरेन्द्र मलिक को मिलता था। बिना गिनती के पंकज मलिक को घोषित कर दिया गया कि आप चुनाव हार गये और परमजीत सिंह चुनाव जीत गये। उसके बाद पंकज मलिक ने फिर तीन साल मेहनत की। वर्ष 2007 में पंकज मलिक पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वर्ष 2012 में फिर विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें फिर पंकज मलिक ने जीत हासिल की।

हरेन्द्र मलिक कहते है कि पंकज मलिक के कांग्रेस में जाने के बाद ही वह कांग्रेस में गये थे। हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि मेरे सुपुत्र पंकज मलिक ने मेरा नाम रोशन किया और बुराईयों से दूर रहा। हरेन्द्र मलिक सियासत में बहुत नेताओं से प्रभावित हुए हैं। हरेन्द्र मलिक इंदिरा गाँधी से, चौधरी चरण सिंह, चन्द्रशेखर के बोलने से, ओमप्रकाश चौटाला के काम करने से, मुलायम सिंह यादव के अपने लोगों के साथ खड़े होने से, वीरेन्द्र वर्मा की ईमानदारी से, ऐसे ही बहुत सारे लोगों के सम्पर्क में आये और वह किसी ना किसी फिल्ड में योग्यता रखते थे। उनसे निश्चित रूप से हरेन्द्र मलिक के जीवन उनका प्रभाव पड़ा है। हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी से उनकी विचार धारा कभी मेल नहीं खाती।

हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि बहुत सारे छात्र आंदोलन और किसान आंदोलन में शामिल रहे। वह कहते हैं कि यूपी विधानसभा या देश की राज्यसभा में जितना मैं किसानों के लिये बोला हूं शायद हमारे पश्चिमी यूपी का कोई दूसरा नेता बोला होगा। इसके बाद वह कहते हैं कि अगर कोई लड़ा भी होगा तो मैं भी कम नहीं लड़ा। हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि जितने सामजिक बुराईयों के खिलाफ लड़ा हूं मैं उससे संतुष्ट हूं। वह कहते हैं कि सियासत में मेरा शौक है। हरेन्द्र मलिक सुबह 6 बजे उठते हैं और सात बजे वह लोगों से मिलना शुरू कर देते हैं और उनकी समस्या सुनकर उनका समाधान कराने का प्रयास करते हैं। हरेन्द्र मलिक कहते हैं कि वह कभी मदद को नहीं गिनते। अगर कोई किसी की मदद करके उसे गिनता है तो वह मदद नही होती, वह एक प्रचार-प्रसार होता है।

वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले हरेन्द्र मलिक और उनके सुपुत्र पंकज मलिक ने कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। सपा में सदस्यात पाने के बाद पंकज मलिक को गठबंधन ने सपा के सिम्बल पर चुनाव लड़ाया। गठबंधन के भरोसे पर खरा उतरते हुए फिर चरथावल विधानसभा सीट पर जीत हासिल कर परचम लहराया।

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