कपिलदेव और नाहिद से पहले किन MLA ने लगाई विधानसभा में हैट्रिक - जानिए
लखनऊ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर मंडल में वैसे तो कई दिग्गज नेताओं का दखल राजनीति में रहा है। कई बड़े नेता ऐसे रहे, जिनका कद उत्तर प्रदेश की सियासत में काफी बड़ा भी रहा है। लोकसभा, राज्य सभा, विधान परिषद, विधानसभा में जाने वाले नेताओं की इस मंडल में कमी नहीं है लेकिन सहारनपुर मंडल में 6 ऐसे नेता अभी तक हुए हैं, जिन्होंने एक ही पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लगातार विधानसभा चुनाव में हैट्रिक लगाई है। ऐसे नेताओं पर खोजी न्यूज़ की स्पेशल रपट।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर मंडल में तीन जनपद सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली आते हैं। इन तीनों जनपदों में कुल 16 विधानसभा सीटें हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में इस मंडल में भाजपा, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल के सिंबल पर 16 विधायक चुने गए हैं लेकिन इनमें से दो ऐसे विधायक हैं जिन्होंने यूपी की विधानसभा में एक रिकॉर्ड कायम किया है। यह नाम है मुजफ्फरनगर की सदर विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक एवं वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री कपिल देव अग्रवाल तो दूसरे नेता हैं नाहिद हसन जो कैराना विधानसभा सीट से लगातार तीसरी बार समाजवादी पार्टी के सिंबल पर चुनाव जीतकर विधानसभा में हैट्रिक लगा चुके हैं।
जहां तक बात कपिल देव अग्रवाल की है। मुजफ्फरनगर सदर विधानसभा सीट पर कपिल देव अग्रवाल भाजपा के ऐसे पहले विधायक हैं जिन्होंने इस विधानसभा सीट पर लगातार तीसरी बार जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाई है। कपिल देव अग्रवाल सबसे पहले 2016 में तत्कालीन विधायक चितरंजन स्वरूप की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार होने के बावजूद तथा चितरंजन स्वरूप के पुत्र गौरव स्वरूप के समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मिल रही सहानुभूति लहर के बीच भी चुनाव जीत विजय हासिल कर ली थी। इसके बाद कपिल देव अग्रवाल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां उन्होंने चितरंजन स्वरूप के पुत्र गौरव स्वरूप को पराजित किया तो वहीं अब 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने चितरंजन स्वरूप की बेटे बंटी स्वरूप को चुनाव में पटखनी देकर मुजफ्फरनगर सदर विधानसभा सीट से भाजपा के सिंबल पर ही हैट्रिक लगाने का काम किया है।
ऐसा ही शामली जनपद की कैराना विधानसभा सीट पर नाहिद हसन ने किया है।सबसे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन विधायक बाबू हुकुम सिंह के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद हुए उपचुनाव में नाहिद हसन ने पहली बार कैराना सीट पर चुनाव जीत कर विधानसभा में एंट्री की थी। उसके बाद नाहिद हसन ने भी पलट कर नहीं देखा। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड लहर के बावजूद नाहिद हसन ने चुनाव जीता तो वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में जब कैराना पलायन के मुद्दे को लेकर भाजपा ने नाहिद हसन पूरी तरह से लिया था और नाहिद हसन को एक पुराने मामले में जेल भेज दिया था। उसके बावजूद भी नाहिद हसन 2022 का चुनाव जीत कर बाबू हुकुम सिंह के बाद विधानसभा में हैट्रिक लगाने वाले दूसरे नेता बन गए हैं।
इसके अलावा मुजफ्फरनगर जनपद की कभी विधानसभा सीट रही बघरा से वर्तमान में समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता हरेंद्र मलिक ने 1989 में पहली बार जनता दल के टिकट पर बघरा विधानसभा सीट से चुनाव जीता था, हालांकि हरेंद्र मलिक इससे पहले खतौली विधानसभा सीट पर चुनाव जीत चुके थे। इसके बाद 1991के विधानसभा चुनाव में जब राम मंदिर आंदोलन के चलते भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में लहर थी तब भी हरेंद्र मलिक ने जनता दल के टिकट पर चुनाव जीता था। इसके बाद 1993 में सपा बसपा गठबंधन की बड़ी लहर के बाद भी हरेंद्र मलिक ने बघरा विधानसभा सीट पर लगातार तीसरी बार जनता दल के टिकट पर जीत कर विधानसभा में हैट्रिक लगाई थी।
इसी तरह सहारनपुर जनपद की नकुड विधानसभा सीट पर भी एक ही पार्टी और एक ही सिंबल पर चौधरी यशपाल सिंह लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। यशपाल सिंह ने 1974 में नकुड विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता तो वहीं 1977 में जब उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की लहर थी तब भी चौधरी यशपाल सिंह कांग्रेस के टिकट पर लगातार दूसरी बार चुनाव जीतकर विधायक बने थे। इसके बाद 1980 के विधानसभा चुनाव में भी चौधरी यशपाल सिंह ने कांग्रेस के सिंबल पर लगातार तीसरी बार चुनाव जीतकर हैट्रिक लगाई थी। एक ही पार्टी और एक ही सिंबल पर चुनाव जीतने वाले 6 लोगों में से देवबंद की सहारनपुर जनपद की विधानसभा सीट से 1980 , 1985 और 1989 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर हैट्रिक लगाने वाले महावीर सिंह राणा का नाम भी शामिल है। हालांकि एक ही विधानसभा सीट पर लगातार तीन बार जीतने वालों मे कांधला विधानसभा सीट पर वीरेंद्र सिंह 1980, 1985 और 1989 में लगातार तीन बार जीत चुके हैं लेकिन हर बार उनकी पार्टी का नाम और चुनाव निशान बदल जाता था। 1980 में जहां वे जनता दल सेकुलर के टिकट पर चुनाव लड़े तो वहीं 1985 में उनकी पार्टी का नाम लोकदल हो चुका था, वीरेंद्र सिंह ने जब 1989 में हैट्रिक लगाई तब उनकी पार्टी का नाम जनता दल हो चुका था।