नयी शिक्षा नीति फिर से विश्व गुरु के पद अधिष्ठित करेगी : तोमर
नयी दिल्ली। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आज कहा कि नयी शिक्षा नीति आने वाले कल में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देगी और जब देश की आजादी 100 वर्ष की होगी तब यही शिक्षा नीति पुन: भारत को विश्वगुरु के पद पर अधिष्ठित करने में भी सफल होगी।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित ज्ञानोत्सव एवं प्रदर्शनी का शुभारंभ आज पूसा में तोमर की अध्यक्षता तथा नोबल पुरस्कार विजेता-बाल अधिकार क्षेत्र के समाजसेवी कैलाश सत्यार्थी के मुख्य आतिथ्य में हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह अरूण कुमार, विनय सहस्त्रबुद्धे, डॉ. अतुल कोठारी, डॉ. पंकज मित्तल, ओमप्रकाश शर्मा, उपासना अग्रवाल एवं अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे।
तोमर ने कहा कि शिक्षा का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा प्रगति का उपकरण है, लेकिन अगर शिक्षा की दिशा ठीक न हो तो उसका नुकसान भी देश और समाज को उठाना पड़ता है। देश की आजादी के तत्काल बाद जो दिशा निश्चित करनी चाहिए थी, उसमें दुर्लक्ष्य हुआ। इस कारण हमारे निज गौरव, देशज पद्धतियां व परंपराएं प्रभावित हुईं। जिन लोगों को शिक्षित कहा जा सकता है, उनका भी बड़ा वर्ग इस पूरी दिशा को उपेक्षित करने में लगा हुआ था।
उन्होंने कहा कि हमारा अपना संस्कार हमें दूसरों की मदद करने के लिए पे्ररित करता है। हमारा संस्कार सबको साथ लेकर चलने की प्रेरणा देता है। पुरातन भारत में भी गांव में कोई पढ़ा लिखा नहीं होता था लेकिन गांव का संस्कार ऐसा था कि कोई परेशान भी नहीं था। उन्होंने कहा कि शिक्षा रोजगारोन्मुखी के साथ-साथ राष्ट्रोन्मुखी और संस्कारोन्मुखी भी होनी चाहिए। इस दिशा में मनीषियों ने समय-समय पर मंथन किया और जरूरी सुझाव दिए हैं। जब शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नहीं था तब शिक्षा बचाओ आंदोलन था। इसके माध्यम से निरंतर देश में काम हो रहा था। उस काल खंड में सरकारों की प्रतिकूलता थी, उसके बाद भी शिक्षा में संस्कार का दीप जलाया गया। बीच-बीच में अनेक सफलताएं भी मिलीं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सत्यार्थी ने कहा कि यह ज्ञानोत्सव नहीं, बल्कि ज्ञान यज्ञ है। यहां मौजूद लोग नई शिक्षा नीति को लोगों तक पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं। ये नए भारत के निर्माता है। आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, समावेशी, उद्यमी और जगतगुरु भारत के निर्माता हैं। यह शिक्षा पद्धति बड़े बदलाव वाली शिक्षा पद्धति है। हमारी शिक्षा सिर्फ जानकारी, सूचना, डेटा तक सीमित नहीं। हमारा शिक्षक गुरु है और गुरु का अर्थ अंधरे से उजाले की ओर ले जाने वाला। हमारी शिक्षा के साथ संस्कार जुड़े हैं। संस्कृति जुड़ी है, सांस्कृतिक मूल्य जुड़े हैं और धर्म जुड़ा है। यह किसी धर्म या मजहब की बात नहीं है। शिक्षा हमारे धर्म का हिस्सा है। धार्मिक होने के लिए शिक्षित होना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कार की विशेषता है कि अहं (मैं) की जगह हम वयं (हम सब) कहते हैं। हमारी पूरी यात्रा वैश्विक यात्रा है और इसमें शिक्षा का योगदान प्रमुख है। हमारी शिक्षा और संस्कार जोडऩे का काम करते हैं। हजारों साल पहले से यह परंपरा चली आ रही है। हजारों साल पहले हमारे ऋषियों ने यह ज्ञान दिया है। आज दुनिया में सब चीजों का वैश्वीकरण कर दिया गया है। लेकिन गंगा, यमुना, कावेरी, हिमालय, कन्याकुमारी वाला भारत वो भूमि है, जहां से करुणा का वैश्वीकरण होगा।
अपने उद्बोधन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाह अरुण कुमार ने भारत की 1000 वर्षों की यात्रा, स्वाधीनता से स्वतंत्रता की 75 वर्ष की यात्रा और देश में हो रहे परिवर्तन की चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की शिक्षा कैसी हो इसका चिंतन बहुत समय से चल रहा है। चिंतन समग्र हो यह सब चाहते हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया नहीं है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने यह काम किया। देशभर में घूमकर विभिन्न विषयों पर काम करने वाले लोगों को चिन्हित कर एकत्रित किया। दूसरे चरण में सभी ने एक साथ मिलकर सोचने का काम किया। यह तीसरा चरण है। सभी लोगों ने जब सोचना शुरू किया और जो निष्कर्ष निकले उसका अनुभव लेकर क्रियान्वयन करना। सरकार ने नीति बना दी, क्रियान्वयन समाज को करना है। इस दिशा में आगे बढऩा है तो प्रयोग करना पड़ेगा। आज का ज्ञानोत्सव इस दिशा में परिणीति की ओर पहुंचाते हुए परिणाम की ओर आगे बढ़ेगा। यह कार्यक्रम विशिष्ट पृष्टभूमि में हो रहा है। देश में निरंतरता है।
वार्ता