संन्यासी और शक्ति प्रदर्शन
लखनऊ। उत्तराखण्ड में कांग्रेस आपसी प्रतिद्वन्द्विता की बीमारी से ग्रस्त है। पार्टी के नेता अपनी-अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करते हैं। एक ही दिन जब दो नेता अलग-अलग कार्यक्रम रखते हैं तो संगठनात्मक एकता की तो पोल खुल ही जाती है, साथ ही यह भी पता चलता है कि उन पर नेतृत्व का कोई अंकुश नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो गुटबाजी के लिए विख्यात ही हैं। वे भी अपनी ताकत का समय-समय पर प्रदर्शन करते रहते हैं। मजे की बात है कि पिछले महीने अक्टूबर में उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी। अब 21 नवम्बर को हरीश रावत ने हरिद्वार में भारत जोड़ो यात्रा की घोषणा की है। उधर, हरीश रावत के प्रतिद्वन्द्वी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने उसी दिन पुष्कर सिंह धामी सरकार को घेरने के लिए सचिवालय कूच का ऐलान कर रखा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रीतम सिंह भाजपा सरकार को घेर रहे हैं अथवा अपनी पार्टी को घेर रहे हैं। एक ही दिन कांग्रेस के दो नेताओं के बड़े कार्यक्रम की राजनीतिक गलियारे में चर्चा हो रही है। इन दोनों के बीच कभी देवरानी-जेठानी का झगड़ा के नाम से चर्चा हुई थी।
उत्तराखण्ड में आगामी 21 नवंबर को कांग्रेस के दो बड़े नेता अपना-अपना प्रोग्राम करने जा रहे हैं। सीनियर नेता प्रीतम सिंह, सरकार को घेरने के लिए सचिवालय कूच करेंगे तो हरिद्वार में पूर्व सीएम हरीश रावत भारत जोड़ो यात्रा करेंगे। ऐसे में सवाल है कि क्या प्रीतम सिंह सचिवालय कूच से शक्ति प्रदर्शन करना चाहते हैं। वहीं, बड़ा सवाल यह भी कि क्या हरीश रावत, हरिद्वार में पद यात्रा करके लोकसभा चुनाव से पहले मौजूदगी का एहसास कराना चाहते हैं?
प्रीतम सिंह प्रदर्शन को सांकेतिक बता रहे हैं। वे कह रहे हैं कि कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं किया जा रहा। वहीं, हरीश रावत का कहना है कि मेरा प्रोग्राम पहले से तय था और दूसरे प्रोग्राम में न्योता देने कोई न कोई जरूर जाएगा। यहां यह बता दें कि प्रदेश कांग्रेस की कमान करन महारा के हाथों में है, जिन्होंने बद्रीनाथ और हर की पैड़ी से भारत जोड़ो यात्रा की थी लेकिन, इसमें हरीश रावत और प्रीतम सिंह में से कोई नहीं पहुंचे थे।
वहीं, जानकारी यह आ रही है कि पहले से तय प्राइवेट प्रोग्राम की वजह से करन महारा शामिल नहीं होंगे। यशपाल आर्य के मुताबिक वो हर जगह होंगे। इनका कहना है कि मंच भले अलग हों मगर मन एक है। बहरहाल, यहां यह बता दें कि प्रदेश कांग्रेस के प्रोग्राम हों तो अक्सर बड़े नेता दूरी बना लेते हैं। मगर, अब बड़े नेता खुद अपने प्रोग्राम करके अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं। लेकिन, जब पार्टी और नेताओं में भी तालमेल नहीं होगा तो प्रदर्शन, पद यात्रा, चाहे हरिद्वार में हो या देहरादून में, हालात नहीं सुधरने वाले हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सक्रिय राजनीति में ब्रेक लेने का ऐलान किया था हरीश रावत ने सोशल मीडिया में एक पोस्ट लिखा था जिसमें उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सफलता नहीं मिली। इसके लिए उन्होंने भाजपा और संघ पर निशाना साधा है। उन्होंने उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में विधानसभा और सचिवालय भवन बनाने का भी जिक्र किया है। उनका कहना कि कांग्रेस पार्टी के संगठन की बागडोर चाहे जिसके हाथ में हो, अब उसे अपने रास्ते पर चलना चाहिए। आखिर में उन्होंने अपने पोस्ट में कहा कि वह पार्टी के लिए हमेशा उपलब्ध रहेंगे। हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर जारी अपनी पोस्ट में कहा कि अब थोड़ा विश्राम अच्छा है। उन्होंने कहा कि कोई भी अस्त्र आधे-अधूरे प्रयासों से निर्णायक असर पैदा नहीं करता। मैं पार्टी को इस अस्त्र के साथ खड़ा नहीं कर पाया। यह मेरी विफलता थी। उन्होंने पोस्ट में बताया कि वह आशीर्वाद मांगने भगवान बद्रीनाथ के पास गए।
भगवान के दरबार में मेरे मन ने मुझसे स्पष्ट कहा कि आप उत्तराखंड के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर चुके हो। आगे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा की प्रशंसा भी की थी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भारत जोड़ो यात्रा के एक महीने बाद वह देश की राजनीतिक परिस्थिति का आकलन करने के बाद भविष्य की रणनीति तय करेंगे। हरीश रावत ने कहा था कि बहुत अधिक सक्रियता ईर्ष्या और अनावश्यक प्रतिद्वंद्विता पैदा करती है। अब मेरा मन कह रहा है कि जिनके हाथों में बागडोर है, उन्हें ही रास्ता बनाने दो। वह अपने घर, गांव और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा उपलब्ध रहेंगे। पार्टी की सेवा के लिए दिल्ली में एक छोटे से उत्तराखंडी बाहुल्य क्षेत्र में भी मैं सेवाएं दूंगा। उन्होंने कहा था कि पार्टी जब भी बुलाएगी, वह उत्तराखंड में भी सेवाएं देने को उत्सुक बने रहेंगे।
राजनीति ने हरीश रावत के कई चेहरे देखे हैं। कांग्रेस में कुछ दिन शांति के बाद आपसी खींचतान शुरू हो गई थी। इसे पूर्व सीएम हरीश रावत ने देवरानी-जेठानी के झगड़े की उपमा दी थी। उनका कहना था कि मैं तो जेठानी हूं जो लगातार अपना काम कर रही है, लेकिन अच्छी बात है, अब देवरानियां भी जाग गई हैं। हरीश का यह बयान उस वक्त सामने आया था, जब पार्टी का एक गुट लगातार बैठकें कर रहा था। इसे हरीश के खिलाफ मोर्चा खोलने के तौर पर देखा जा रहा था। पहले दिन देहरादून में पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के घर पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी समेत दो पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण, राजकुमार और महानगर कांग्रेस अध्यक्ष लाल चंद शर्मा पहुंचे थे। इस दौरान हरक सिंह रावत ने विपक्ष के कमजोर होने और हरीश रावत को टोटकों की राजनीति न करने की सलाह दी थी।इसके बाद अगले दिन यही सब नेता हरिद्वार में हरीश रावत के करीबी माने जाने वाले श्रीजयराम आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी से मिले और उनके आश्रम में बैठक की। इस दौरान हरक सिंह ने हरीश के गढ़ से लोकसभा के चुनाव के लिए खुद की दावेदारी पेश कर दी। उन्होंने कहा कि हरीश रावत पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, अब उन्हें दूसरों को मौका देना चाहिए। हरक सिंह रावत की अगुवाई में हुई इन दो बैठकों के बाद इसे हरीश रावत को उन्हीं के गढ़ में घेरने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा था। इस पर हरीश रावत ने कहा कि आज भी कुछ नेता भाजपा नेताओं की भाषा बोल रहे हैं।
प्रदेश में कांग्रेस संगठन बेहद मजबूत है। विपक्ष कमजोर है, निराश है, जैसी बातें भाजपा को करनी चाहिए, न कि कांग्रेस के नेताओं को। रही बात टोटकों की तो राजनीति में टोटकों के बिना काम नहीं चलता है। यदि किसी के पास नहीं है तो वह उनके पास से आकर ले जाएं।रावत ने कहा कि उन्होंने अग्निवीर योजना के विरोध में राजनीतिक टोटका किया था। कांग्रेस के भीतर अपने विरोध पर रावत ने कहा कि यह उनके टोटकों का ही कमाल है कि जो लोग थोड़ा झपकी लेने लगे थे, अब वह भी जाग गए हैं। पार्टी में उनकी भूमिका जेठानी की है जो साथी देवरानियों को जगाती रहती है। चलिए देवरानियां जागीं तो सही।पार्टी में गुटबाजी की खबरों के बीच पूर्व सीएलपी प्रीतम सिंह ने भी अपनी बात रखी थी। उन्होंने कहा कि कालिदास दो चीजों के लिए जाने जाते हैं। एक अपनी विद्वता और दूसरा जिस डाल पर बैठे थे, उसी को काटने के लिए। इसलिए प्रीतम सिंह कालिदास नहीं हैं, जो जिस डाल पर बैठे हैं, उसी को काट दें।उनके अनुसार, पार्टी में किसी तरह की कोई गुटबाजी नहीं है। (हिफी)