धार्मिक स्थलों व्यवस्था पर सवाल

धार्मिक स्थलों व्यवस्था पर सवाल

लखनऊ। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी की शाम मंगला आरती कुछ परिवारों के जीवन में अमंगल की वजह बन गयी जब सिरे से लापरवाह प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कोई बंदोबस्त नहीं किया और मंदिर के गर्भगृह के प्रांगण में वहां की क्षमता से दोगुना श्रद्धालु भीतर दाखिल हो गए जबकि कई गुना श्रद्धालु बाहर प्रवेश और एक्जिट दोनों रास्तों पर भीतर घुसने के लिए जोर आजमाइश कर रहे थे। शर्मनाक बात यह है कि मंदिर में लोग कुचले जा रहे थे और जिम्मेदार अधिकारी पहली मंजिल पर सपरिवार मंगला आरती के दर्शन के लिए मौजूद थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस हादसे पर दुख जताते हुए मामले को अति गंभीरता से लिया और जांच के निर्देश दिये। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह इसकी जांच कर रहे हैं।

वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में शुक्रवार और शनिवार की दरम्यानी रात मंगला आरती के बाद हुए हादसे में दो लोगों की मौत हो गई और दम घुटने से 6 लोग बुरी तरह जख्मी हो गए। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप है कि हादसे के लिए आला अफसरों की लापरवाही और वीआईपी कल्चर जिम्मेदार है। जिस वक्त मंदिर के आंगन में भीड़ बेकाबू हो रही थी, उस समय अफसर वीडियो बना रहे थे। अब जैसा कि आप जानते हैं वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां आम दिनों में भी औसतन पांच हजार लोग दर्शन के लिए देश भर से पहुंचते हैं। क्या प्रशासन को इस बात का पता नहीं था कि जन्माष्टमी को यहां मंदिर पर काफी तादाद में श्रद्धालुओं की भीड़ आएगी और उसकी प्रवेश व निकासी की व्यवस्था दुरुस्त करने की जरूरत है लेकिन आला अधिकारी इतने गैर जिम्मेदार व नितांत अनुभवहीन साबित हुए कि वह खुद सपरिवार दर्शन के लिए पहुंचे और व्यवस्था बनाने में लगे सिपाही दारोगा अपनी ड्यूटी पाइंट छोड़ कर साहब व उनके परिवार की हिफाजत में लग गए। साहब व परिवार पहली मंजिल से मंगला आरती में शामिल हो गए। पुलिस वाले ऊपर श्रद्धालुओं को जाने से रोकने के लिए खड़े हो गए। मंदिर के प्रांगण में प्रवेश व निकासी दोनों गेट से श्रद्धालु बेतादाद घुस गए निकासी अवरुद्ध हो गई भीड़ का दबाव दमघोटू होने लगा लेकिन कोई बाहर निकलना चाहे तो भी नही निकल सकता था। ऐसे हालात में दो श्रद्धालु दम घुट कर दम तोड़ गए जबकि कई की हालत बिगड़ गयी।

यहां बता दें कि जन्माष्टमी को इसी दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जन्माष्टमी पर वृंदावन आए थे। वे बांके बिहारी मंदिर तो नहीं गए, लेकिन उन्होंने श्रीकृष्ण जन्मभूमि में पूजा की। वृंदावन से योगी के जाते ही अधिकारी अपनी ड्यूटी के प्रति लगता है बेफिक्र हो गए। बांके बिहारी मंदिर के सेवायत और श्रद्धालुओं ने बताया कि सीएम के रवाना होने के बाद भीड़ कंट्रोल करने वाला कोई नहीं था। मंदिर के किसी भी प्रवेश द्वार पर कोई बैरिकेडिंग नहीं थी। इक्का दुक्का बैरिकेड लगे थे, तो वहां रोकने के लिए कोई पुलिसकर्मी मौजूद नहीं था। आरती के समय मंदिर के आंगन में हालात बेकाबू हो गए।

कई ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। तमाम घटनाओं का सबक यही है कि मंदिर परिसरों के आसपास की जगहें संकरी होने की वजह से हादसों पर काबू पाना कठिन होता है। देश के ज्यादातर मंदिरों के आसपास इस कदर दुकानों आदि का फैलाव होता है कि वहां लोगों के आने-जाने के लिए जगहें बहुत कम रह गई हैं। प्रसिद्ध मंदिरों पर त्योहारों और किन्हीं खास दिनों में खासी भीड़ उमड़ती है। लोगों को मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए घंटों कतार में खड़े रहना पड़ता है। याद रहे कि 2022 की शुरूआत ही दुखद धार्मिक दुर्घटना से हुई। नए साल पर जम्मू-कश्मीर स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर में लोग दर्शन के लिए पहुंचे थे लेकिन भवन में 31 दिसंबर शुक्रवार रात 2.45 पर भगदड़ मच गई। इस दुखद हादसे में 12 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी जबकि 20 लोग घायल हो गए थे।

यूं तो धर्म स्थलों पर जिस तरह विशेष अवसरों पर श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी है वह खुद में ही हादसों को खुला न्योता है। इन धार्मिक स्थलों के नगर शहर भी पर्व व त्योहार पर भीड़ की तादाद से चोक हो जाते हैं। तमाम व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं और लोग हादसों का शिकार बन रहे हैं चूंकि इन श्रद्धालुओं की भीड़ में सभी लोग संयमित अनुशासित व समझदार आचरण वाले नहीं होते हैं इनमे दो चार अक्खड़ व लड़कपन वाले परिणाम से बेखबर लोग भी शामिल होते हैं जिनकी जरा सी जिद्द भरा व्यवहार भगदड़ व दम घुटने की वजह बन जाता है।

इसी माह आठ अगस्त को राजस्थान के सीकर स्थित खाटू श्याम के मासिक मेले में सुबह पांच बजे भगदड़ मच गई। इस घटना में 3 महिला भक्तों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि तमाम लोग घायल हो गए थे। दरअसल एकादशी का दिन होने के कारण काफी भीड रही फिर जब मंदिर का प्रवेश द्वार खोला गया तो भीड़ का दबाव बढ़ने से भगदड़ मच गई थी।

पिछले कई दशकों में कई बड़े हादसे हो चुके हैं लेकिन न तो सरकारी तंत्र जागा न ही श्रद्धालुओं ने बीते हादसों से सबक लेकर कोई संयम बरता। बड़ी घटनाओं में महाराष्ट्र के मंधार देवी मंदिर में मची भगदड़ में 350 लोगों की मौत हो गई थी। महाराष्ट्र के नासिक में कुम्भ मेले में मची भगदड़ में 125 लोगों की जान चली गई थी। हरिद्वार में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई। इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान भगदड़ से लगभग 800 लोगों की मौत के अत्यंत हृदय विदारक हादसे को भी हम झेल चुके हैं। इस सबके बावजूद पुरी की जगन्नाथ यात्रा से लेकर तमाम मंदिरों कुंभ स्नान, मेलों-पर्वो आदि पर लाखों-लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। लाखों की संख्या में लोगों के जुट जाने के बाद भी ईश्वर वही हैं, प्रतिमा भी वही है फिर एक ही दिन लाखों की संख्या में लोग दर्शन की क्यों ठान लेते हैं क्यों न खास पर्वत्योहार पर दर्शन के लिए एक लिमिट तय कर दी जाए ताकि हादसे की गुंजाइश कम रहे। अभी अमरनाथ यात्रा के दौरान भी अनेक श्रद्धालु आक्सीजन की कमी के चलते हार्ट अटैक से अपनी जान गंवा गए। सरकारों की भी जिम्मेदारी है कि वह अपने आला अधिकारियों को सजग रखे और हर श्रद्धालु की जोखिम रहित यात्रा दर्शन स्नान पूजन का बंदोबस्त सुनिश्चित कराए ताकि फिर कोई मंगला आरती किसी के जीवन में अमंगल न लाए। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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