नेताओं को मिल गई समस्याएं देखने की दूरबीन- आखिर कब तक झूठे सपने देखें वोटर?

नेताओं को मिल गई समस्याएं देखने की दूरबीन- आखिर कब तक झूठे सपने देखें वोटर?
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में यूपी निकाय चुनाव की तारीख आ गयी है। राजनैतिक पार्टियों ने जनता पर अपने मंत्र मारने शुरू कर दिये हैं। अबकी बार पब्लिक किसका करेगी सूपड़ा साफ और किसके हाथों में देगी नगर निगम/नगर पालिका अध्यक्ष एवं वार्ड सभासद की मंखमली गद्दी की कमान? ये जनता के हाथों में ही है इसलिये राजनैतिक दलों ने नगर निगम/नगर पालिका अध्यक्ष एवं वार्ड सभासद की मंखमली गद्दी और क्षेत्र में राज करने के लिये जनता पर मंत्र मारने शुरू कर दिए हैं और सुनहरे ख्वाब दिखाकर उन्हें अपने झूठे मंत्रों में फंसाना शुरू कर दिया है। वह मंत्र जब तक जारी रहते हैं जब तक जनता वोटर होती है। सत्ता में आने के बाद वोटरों के जनता में तब्दील होने के पश्चात सारे वादे खाई में समा जाते हैं। चुनाव के समय नेता जनता के पीछे नहीं वोटर के पीछे दौड़ते हैं और सल्तनत की कुर्सी हासिल करने के बाद जनता को अपने पीछे दौड़ाते हैं। अब किसका मंत्र जनता को अपनी और खीचेंगा। ये तो वक्त ही बतायेगा?

उत्तर प्रदेश में यूपी निकाय चुनाव की चर्चा और हलचल शुरू हो गई है और राजनैतिक पार्टियां भी मैदान में आ चुकी है। नेताओं ने पब्लिक को अपने पक्ष में करने के लिये दौरे शुरू कर दिये हैं और जैसे-जैसे चुनाव करीब आयेंगे वैसे-वैसे दौरे की गाड़ी एक्सप्रेस की तरह वोटरों के साथ वादों की पटरी पर दौड़नी शुरू हो जायेगी। अक्सर आपने देखा होगा कि चुनाव सिर पर आते ही नेता जनता के बीच सक्रिय हो जाते हैं और जनता की हर समस्या का समाधान कराने का उनको आश्वासन देते हैं। जनता नेताओं के मंत्रों पर काबू हो जाती है और उनको वोट दे देती है। इसके बाद सत्ता मिलने पर यही सल्तनत राजा के पीछे दौड़ती है फिर भी वह हाथ नहीं आते हैं। आखिर वोटर कब तक नेताओं के झूठे मंत्रों में फंसकर रहेंगे?

चुनावी चर्चा चरम पर आ जाती है तो चुनाव के पहले तक सामान्य जनता दिखाई देने वाले लोग वोटरों में तब्दील हो जाते हैं। नेता वोटरों से मुलाकात करने के लिये दौरे करते हैं न की जनता से। नेता वोटरों से मुलाकात कर उनकी छोटी से छोटी समस्याओं को सुनता हैं और उन्हें जीतने के पश्चात पूरा कराने का आश्वासन दें देते हैं। चुनावी दौर में नेताओं को जनता से मिलने और उनकी समस्याएं सुनने के लिये वक्त आ जाता है। राजगद्दी पर बैठकर उनके पास टाइम नहीं रहता है। वह जनता को अपने पीछे बहुत दौड़ातें हैं, फिर भी उनकी समस्या का समाधान नहीं करते। इतना ही नहीं बल्कि नेताओं के चेले चुनाव के समय दूरबीन लगाकर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी घटनाओं को ढूंढते हैं और वोटरों से मुलाकात करने के लिये जुटे रहते हैं, जिससे जनता की आंखों पर उन्हें सल्तनत की चेयर पर बैठाने का चश्मा लग जाये। चुनाव समाप्त होते ही वोटर शब्द की अहमियत समाप्त हो जाती है और वह जनता में तब्दील हो जाती है, फिर चाहे फिर छोटी घटना हो या अन्य कितनी ही बड़ी घटना हो। वह किसी को नहीं दिखाई देती। क्योंकि उस समय तक उनकी राजनीति करने की दूरबीन उतर जाती है, जिससे वह जनता की समस्याओं को देखते हैं। यही कारण है कि चुनाव से पहले दिखाई देने वाली समस्या की चुनावी दूरबीन उतरने के पश्चात उन्हें जनता की समस्याएं नजर नहीं आती है। सल्तनत की कुर्सी पर बैठने के पश्चात वह अपना और अपने करीबियों का कल्याण करते हैं।

जनता भी चुनाव के समय नेताओं के चंगुल में फंसकर उन्हें वोट दे देती है और अपने वादे नेताओं से कबूल करवाकर खुश हो जाती है। फिर उन्हें दोबारा साढे़ चार वर्ष का इंतजार करना पड़ता है क्योंकि 6 महीने पहले नेताओं की दूरबीन मिल जाती है और वह लगा लेते हैं। यूपी निकाय चुनावों में जनता आखिर किसको अपनी समस्याओं के समाधान के लिये नगर निगम/नगर पालिका अध्यक्ष एवं वार्ड सभासद की मंखमली गद्दी पर बैठायेगी ये तो केवल वक्त ही बतायेगा?

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