मुज़फ्फरनगर शहर सीट पर हमेशा रहा बनियों का राज - आज भी कायम बादशाहत

मुज़फ्फरनगर शहर सीट पर हमेशा रहा बनियों का राज - आज भी कायम बादशाहत

मुजफ्फरनगर। 1952 में मुजफ्फरनगर सदर विधानसभा सीट का गठन होने के बाद से अब तक 19 बार इस सीट विधानसभा का चुनाव हो चुका है। जिसमें 17 बार वैश्य समाज के नेताओं ने चुनाव जीतकर इस सीट पर अपना दबदबा कायम रखा है। मुजफ्फरनगर सदर विधानसभा सीट पर एक बार ब्राह्मण तो एक बार मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव जीता है, नहीं तो 19 में से 17 बार मुजफ्फरनगर सदर विधानसभा सीट पर बनियों का दबदबा आज भी कायम है। पढ़िए खोजी न्यूज़ की मंडे स्पेशल स्टोरी ......

आजादी के बाद जब 1952 में पहली बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर की सदर विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में वैश्य समाज के द्वारका प्रसाद मित्तल एडवोकेट ताल ठोक रहे थे और उन्होंने पहले इलेक्शन में जीत हासिल कर ली थी। इसके बाद 1957 में हुए इलेक्शन में भी द्वारका प्रसाद मित्तल दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। 1962 में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए केशव गुप्ता को मैदान में उतारा तो केशव गुप्ता भी तीसरे वैश्य समाज के विधायक के रूप में निर्वाचित हो गए। 1967 में विष्णु स्वरूप शाह जी ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और विधायक बन गए। लगातार चार बार वैश्य समाज के विधायक बनने में 1969 में भारतीय क्रांति दल के सईद मुर्तजा ने अड़ंगा लगाया और वह मुजफ्फरनगर शहर विधानसभा सीट पर पहले मुस्लिम विधायक के तौर पर निर्वाचित हुए थे। वैश्य समाज की जीत का सिलसिला 1974 में चितरंजन स्वरूप ने कांग्रेस के टिकट पर जीत कर जारी रखा। उसके बाद 1977 में जनता पार्टी की लहर के दौरान फिर वैश्य समाज की जीत में जनता पार्टी के टिकट पर मालती शर्मा ने चुनाव जीतकर अड़ंगा लगा दिया।

1980 में कांग्रेस के टिकट पर विद्याभूषण ने फिर से वैश्य समाज की मुजफ्फरनगर सदर विधानसभा सीट पर जीत का सिलसिला ऐसा शुरू किया कि 2022 के इलेक्शन तक वैश्य समाज के अलावा मुजफ्फरनगर सदर सीट पर किसी भी समाज के नेता का विधायक बनने का नंबर नहीं आया। विद्याभूषण के बाद 1985 में चारुशीला अग्रवाल कांग्रेस के टिकट पर विधायक तो 1989 में जनता दल की लहर के दौरान सोमांश प्रकाश ने मुजफ्फरनगर सदर विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी। मुजफ्फरनगर शहर विधानसभा सीट पर राम मंदिर लहर के दौरान भाजपा के टिकट पर सुरेश संगल ने 1991 में इस सीट पर पहली बार भाजपा का खाता खोला था। 1991 से इस सीट पर भाजपा का खाता खुलने का सिलसिला भी ऐसा जारी हुआ कि दो बार सपा के टिकट पर चितरंजन स्वरूप जरूर जीते मगर फिर भाजपा ने इस सीट पर अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा हुआ है।

1993 में सपा बसपा गठबंधन की लहर के बाद के बाद जब लग रहा था कि इस सीट पर कादिर राना चुनाव जीत जाएंगे तब भी आमने-सामने के चुनाव में सुरेश संगल ने अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा था। 1996 में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बदला और सुशीला अग्रवाल को मैदान में उतारा तो वैश्य समाज के प्रतिनिधि के रूप में भाजपा के टिकट पर सुशीला अग्रवाल चुनाव जीत गई। 2002 में चितरंजन स्वरूप ने सपा के टिकट पर चुनाव जीता तो 2007 में अशोक कुमार कंसल ने चितरंजन स्वरूप को हराने का काम किया था। 2012 में फिर से चितरंजन स्वरूप समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने गए थे।

चितरंजन स्वरूप की मृत्यु के बाद इस विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो भारतीय जनता पार्टी ने कपिलदेव अग्रवाल पर दांव लगाया। कपिल देव अग्रवाल ने चितरंजन स्वरूप के बेटे गौरव स्वरूप को सहानुभूति लहर के बाद भी चुनाव में चित कर दिया था। उसके बाद कपिलदेव अग्रवाल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2017 के विधानसभा चुनाव में कपिलदेव ने दूसरी बार जीत हासिल की और 2022 के इलेक्शन में कपिल देव अग्रवाल ने लगातार तीसरी बार जीत कर इस सीट पर हैट्रिक लगाने वाले पहले विधायक बनने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। कुल मिलाकर मुजफ्फरनगर शहर विधानसभा सीट पर वैश्य समाज का दबदबा पहली बार हुए विधानसभा चुनाव से लेकर 2022 के इलेक्शन तक लगातार जारी है।

Next Story
epmty
epmty
Top