सवाल व जवाब में तालमेल का अभाव
नई दिल्ली। सवाल हमारे जीवन के अभिन्न हिस्सा है। इनसे ही संवाद की परम्परा शुरू हुई। प्रश्न व्याकुल समाज ने प्रकृति के बारे में सोचने को बाध्य किया। हम कौन हैं ? हमारा यह जीवन कैसा है। हम कैसे इसको बेहतर बना सकते हैं। इस प्रकार के सवाल हमे आत्मचिंतन की तरफ ले जाते हैं। इसलिए सवालों से भागने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। कभी कभी सीधे-सीधे जवाब देना ठीक नहीं होता, फिर भी सवाल और जवाब में तालमेल रहना चाहिए। राजनीति भी इससे अलग नहीं है। कुछ लोग जवाब देने में बहुत माहिर होते हैं। उनको हाजिरजवाब कहा जा सकता है। वे राजनीति में भी सफल होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता का एक कारण यह भी है कि वे हाजिर जवाब हैं और राहुल गाँधी की असफलता का एक कारण उनके जवाब का सवालों से तालमेल न होना है।
अभी हाल में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान नए कृषि कानूनों को लेकर राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी आडे हाथों लिया। दरअसल, जेपी नड्डा ने कहा था कि राहुल गांधी किसानों का ध्यान भटका रहे हैं। इसका जवाब देते हुए राहुल गांधी ने कहा, मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं डरता। अब इस जवाब और सवाल में कोई तालमेल नहीं है। इन्हीं बातों को लेकर लोग राहुल का मजाक भी उड़ाते हैं। जेपी नड्डा को लेकर जब उनसे सवाल किया गया तो राहुल गांधी बोले, 'क्या वो मेरे प्रोफेसर हैं, वो कौन हैं जो मैं उन्हें जवाब देता फिरूं। मैं देश के किसानों, देश की चिंता करता हूं।
हुआ ये कि गत 19 जनवरी को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ट्विटर के जरिए राहुल गांधी और कांग्रेस पर निशाना साधा था। साथ ही दर्जनों सवाल पूछे थे। नड्डा ने एक तरह से राहुल से स्पष्टीकरण मांगा था। यह नड्डा का अधिकार भी है। राहुल गांधी ने उसी दिन नए कृषि कानूनों को लेकर केन्द्र सरकार की आलोचना ही नहीं की थी, बल्कि राहुल ने कृषि कानूनों की कमियां बताने वाली बुकलेट भी रिलीज की। उन्होंने कहा कि नए कृषि कानून देश की कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए तैयार किए गए हैं। राहुल गांधी ने यह भी कहा कि सरकार और उनका अहंकार समझता है कि किसानों को थकाया जा सकता है।
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी पलटवार किया। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने किसानों का खून नाम से किताब लिखी है। उन्होंने कहा लगता है राहुल गाँधी को खून से बहुत प्यार है। वे खून की दलाली जैसी बातें भी करते रहे हैं। देश के बंटवारे के समय भी देशवासियों का बहुत खून बहा था और सन 84 के दंगे में किसका खून बहा था, यह बताने की जरूरत नहीं है। राहुल गांधी ने जेपी नड्डा के सवाल पर यह तो ठीक कहा कि मैं देश के किसानों को जवाब दूंगा, देश की जनता को जवाब दूंगा लेकिन यह कहना उनका ठीक नहीं है कि नड्डा को क्यों जवाब दूं, वे मेरे कोई टीचर नहीं हैं। राजनीति के मैदान में उतरे हो तो जवाब तो देना ही पड़ेगा। जेपी नड्डा ने राहुल गांधी पर आरोप लगाया था कि वो एपीएमसी मंडी के बंद होने का झूठ फैला रहे हैं। इसका जवाब राहुल गाँधी को देना चाहिए था। आंदोलन कर रहे किसानों ने भी यह कहा है कि सरकार अभी तो न्यूनतम मूल्य पर उपज बिकवा नहीं पा रही है तो कानून बन जाने पर अच्छे दाम पर कौन खरीदेगा। धान का सरकारी खरीद मूल्य 1800 रुपये प्रति कुंतल है लेकिन नव्वे फीसद से ज्यादा किसानों ने 800 से 900 रुपये कुंतल बेचा है। राहुल इस प्रकार से जवाब नहीं देते।
हालांकि राहुल गांधी ने खुद को किसानों का हमदर्द बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानून से कृषि क्षेत्र पर तीन-चार पूंजीपतियों का कब्जा हो जाएगा। राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र सरकार ने पूरे कृषि सेक्टर को दो-तीन पूंजीपतियों के हाथों में सौंप दिया है। उन्होंने कहा कि दूसरे क्षेत्रों में बस कुछ ही लोगों का कब्जा होता जा रहा है जो प्रधानमंत्री के करीबी लोग हैं। राहुल ने कहा कि खेती अभी तक बची हुई थी लेकिन अब उस पर भी एकाधिकार होने वाला है। किसानों का समर्थन करते हुए राहुल ने कहा कि आज किसान केवल अपने लिए नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि वो सभी के लिए लड़ रहे हैं और इसलिए सभी को किसानों के समर्थन में खड़ा होना चाहिए। उन्होंने नौजवानों से खासकर किसानों के साथ खड़े होने की अपील की। नड्डा के एक बयान पर राहुल गांधी ने कहा, किसान सच्चाई जानते हैं। सभी किसानों को पता है राहुल गांधी क्या करता है। नड्डा भी भट्टा परसौल में नहीं थे। मेरा चरित्र बिल्कुल पाक-साफ है, मैं डरा हुआ नहीं हूं, वो मुझे नहीं छू सकते हैं, वो मुझे गोली मार सकते हैं। नौजवानों को मुखातिब करते हुए राहुल गांधी ने कहा, आज देश में त्रासदी आ गई है, लेकिन सरकार उसकी अनदेखी कर लोगों को गुमराह कर रही है। आज मैं केवल किसानों के बारे में बात नहीं करूंगा क्योंकि किसान की समस्या तो उस पूरी त्रासदी का एक हिस्सा है। यह नौजवानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह आपके वर्तमान के लिए नहीं, बल्कि आपके भविष्य के लिए है।
इस प्रकार राहुल गांधी की भावनाएं तो लगती हैं कि वे लोगों के प्रति अच्छा सोचते हैं लेकिन बाद में वे अपनी बात समझा नहीं पाते। राहुल गांधी की मशीन में आलू डालकर सिक्के निकालने की बात का बहुत मजाक उड़ाया गया था। लोगों तक यह बात पहुंचाई गयी कि राहुल गाँधी को यह नहीं पता कि आलू कैसे उगाया जाता है, इसीलिए वे मशीन से आलू पैदा करने की बात कह रहे हैं। राहुल गाँधी और कांग्रेस के नेताओं ने इसे समझाने का भी प्रयास नहीं किया। राहुल का तात्पर्य यही था कि जिस किसान को आलू पांच छह रुपये किलो बेचना पड रहा है, उसका वही आलू चिप्स आदि बनाकर बेचा जाए तो सोना बन जाएगा। राहुल को अपनी यह भूल भी स्वीकार करनी चाहिए कि यूपीए सरकार के दस साल में वे किसानों के हित में ऐसी व्यवस्था लागू नहीं करा पाए। अपने चुनाव क्षेत्र अमेठी में भी वे ऐसा कुछ नहीं कर सके ताकि जनता स्मृति ईरानी को बताती कि मेरा सांसद राहुल गांधी ही रहेगा, दूसरा कोई उनकी जगह नहीं ले सकेगा।
राहुल गांधी एक और बड़ी गलती कर रहे हैं जिसे कयी नेताओं ने सुधार लिया है। ये गलती है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने की। मोदी के प्रति जनता की अंधभक्ति है। उनके खिलाफ कोई बोले, इसे जनता वर्दाश्त नहीं करती। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बसपा प्रमुख मायावती ने यह रहस्य समझ लिया है, लेकिन राहुल गांधी नहीं समझ पाये हैं। इसीलिए वे मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं डरता जैसे वाक्य बोलते हैं और राजनीति में लगातार पीछे खिसक रहे हैं। (हिफी)