फिर पुराने पैटर्न पर लौटे जयंत - नेता भाजपा की सिंबल रालोद का
मुजफ्फरनगर। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी *नेता सपा का टिकट रालोद का* के का आरोप लगाकर अखिलेश यादव के साथ गठबंधन से अलग हुए थे, अब मीरापुर विधानसभा सीट पर जयंत चौधरी इस पैटर्न पर वापस पलट गए हैं। भाजपा की नेता मिथलेश पाल को राष्ट्रीय लोकदल के निशान पर मीरापुर से चुनाव में उतार दिया गया है।
साल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद समाजवादी पार्टी के लिए इस इलाके में चुनाव लड़ना कठिन माना जा रहा था। साल 2018 में कैराना लोकसभा सीट से सांसद बाबू हुकम सिंह के निधन के बाद खाली हुई कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना था। इस उप चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी की नेता तबस्सुम हसन प्रबल दावेदार थीं लेकिन 2013 के दंगों को देखते हुए सपा के टिकट पर ना लड़ा कर उन्हें रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ाया गया और तबस्सुम हसन ने इस प्रयोग को सफल करते हुए चुनाव जीत लिया था।
इसके बाद जब साल 2022 के विधानसभा चुनाव आए तब समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल में गठबंधन था। ऐसे में अखिलेश यादव फिर से मुजफ्फरनगर, शामली और बागपत जिले में अपने टिकट पर सपा नेताओं को चुनाव ना लड़कर राष्ट्रीय लोकदल के निशान पर लडाना चाहते थे। उन्होंने जयंत चौधरी को समझाते हुए सपा नेता अनिल कुमार को पुरकाजी विधानसभा सीट से, चंदन चौहान को मीरापुर और गुलाम मोहम्मद को मेरठ की सिवालखास विधानसभा सीट से राष्ट्रीय लोकदल के निशान पर चुनाव लड़ाया। अखिलेश यादव का यह फार्मूला कामयाब भी हुआ और तीनों सपा नेता राष्ट्रीय लोकदल के निशान पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए।
इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी रालोद के जयंत चौधरी और सपा के अखिलेश यादव के बीच समझौता हो चुका था। अखिलेश यादव 2022 के अपने सफल फार्मूले को अपनाने के लिए जयंत चौधरी को लोकसभा की 7 सीटें देने को तैयार थे लेकिन अखिलेश यादव इन सीटों में अधिकतर अपने नेताओं को चुनाव लडाना चाहते थे। तब जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव पर यह आरोप लगाते हुए सपा से गठबंधन तोड़ दिया था कि अखिलेश यादव राष्ट्रीय लोक दल के सिंबल पर अपनी पार्टी के नेताओं को चुनाव लडाना चाहते हैं हालांकि इस आरोप से कुछ दिन पहले जयंत चौधरी ने पलटने के सवाल पर मीडिया में यह जवाब दिया था कि मैं चवन्नी थोड़े ही हूं जो पलट जाऊंगा। हालांकि जब वह अखिलेश यादव पर नेता अपना टिकट रालोद का के आरोप लगाकर उनसे अलग हुए तब उनका चवन्नी पलटने वाला वीडियो बहुत वायरल भी हुआ था।
अखिलेश यादव को छोड़कर जयंत चौधरी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और उन्होंने बागपत और बिजनौर लोकसभा सीटों पर भाजपा से गठबंधन कर लिया। इसके बाद मोदी सरकार 3 में जयंत चौधरी राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार भी बनाए गए । अब जब मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट पर चंदन चौहान के सांसद बनने के बाद विधानसभा की सीट रिक्त हुई तो राष्ट्रीय लोकदल भी इस सीट पर अपनी दावेदारी कर रहा था। इस विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए रालोद के पुराने कर्मठ कार्यकर्ता अजीत राठी, प्रभात तोमर, संदीप मलिक, नूर सलीम राणा, गज्जू पठान जैसे नाम शुरुआती दौड़ में तेजी से आगे बढ़े। इसके साथ ही बिजनौर से सांसद चंदन चौहान की पत्नी याशिका चौहान भी प्रबल दावेदारों में उभर कर आई। जबकि पहले राष्ट्रीय लोकदल तथा बाद में भाजपा में शामिल होने वाले राजपाल सैनी का नाम भी लगभग फाइनल हो चुका था।
इसी बीच पहले राष्ट्रीय लोकदल की विधायक रह चुकी तथा वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की नेता मिथलेश पाल भी ने भी अपनी दावेदारी शुरू की क्योंकि बताया जाता था कि भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय लोकदल पर दबाव था कि वह किसी पिछड़े नेता को मीरापुर विधानसभा में चुनाव लड़ाए। आखिर में लड़ाई चंदन चौहान की पत्नी याशिका चौहान और पूर्व सांसद राजपाल सैनी पर आकर टिक गई लेकिन कई अलग-अलग चर्चाओं के बीच राष्ट्रीय लोकदल ने भाजपा की नेता पूर्व विधायक मिथिलेश पाल पर अपना दांव चल दिया। मिथलेश पाल को रालोद का प्रत्याशी बनाए जाने के बाद से सियासी हल्को में चर्चा होने लगी है कि जो आरोप लगाकर जयंत चौधरी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से अलग हुए थे अब उन्होंने इस पैटर्न कि *नेता भाजपा की और सिंबल राष्ट्रीय लोकदल का* देकर यह साबित कर दिया है कि जयंत चौधरी ने यह टिकट बीजेपी के दबाव में दिया है।
राजनीतिक लोग चर्चा कर रहे हैं कि जयंत चौधरी पहले अखिलेश यादव के दबाव में उनके पार्टी के नेताओं को राष्ट्रीय लोकदल का सिंबल दे देते थे अब उन्होंने भाजपा के दबाव में भाजपा की नेता को राष्ट्रीय लोकदल का सिंबल दे दिया है। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो राष्ट्रीय लोकदल को नेताओं और कार्यकर्ताओं का आने वाले समय में टोटा पड़ जाएगा क्योंकि वह मान बैठें है कि मेहनत भले ही वह करें लेकिन जयंत चौधरी दबाव में टिकट दूसरी पार्टी के नेताओं को दे देते हैं। इतना जरूर है कि राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष और मंत्री जयंत चौधरी के इस फैसले से राष्ट्रीय लोकदल के पुराने और वफादार कार्यकर्ता हताश और निराश जरूर है।