कैराना से इकरा बनी प्रत्याशी- जानिए हसन परिवार का राजनीतिक सफर

कैराना से इकरा बनी प्रत्याशी- जानिए हसन परिवार का राजनीतिक सफर

शामली। समाजवादी पार्टी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट कैराना से हसन परिवार की इकरा हसन को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता रहे मुनव्वर हसन की बेटी इकरा हसन कई सालों से लगातार राजनीति में सक्रिय है। बुजुर्गों , युवाओं और महिलाओं के बीच इकरा हसन की फैन फॉलोइंग बहुत लंबी है। अपनी सादगी के लिए पसंद की जाने वाली इकरा हसन को कैराना लोकसभा सीट पर सबसे मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा है।

कैराना क्षेत्र के एक गांव में जन्में अख्तर हसन के परिवार की गांव से कस्बा कैराना में हुई एंट्री के बाद ही हसन परिवार का सियासी सफर शुरू हुआ। अख्तर हसन ने नगर पालिका परिषद चुनाव में सभासदी का चुनाव लड़ा और जीत गये। इसके बाद उनकी मेहनत और जनता की समस्या सुनने के अंदाज से उन्हें धीरे-धीरे सफलता मिलती गई। सभासद से चेयरमैन और चेयरमैन के बाद वह कैराना लोकसभा सीट से लोकसभा सांसद रहे।

अख्तर हसन ने जीते-जी अपने बड़े बेटे मुनव्वर हसन को सियासी मैदान में उतारा, जिसने जनता के दिलों में ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि वह सबसे कम उम्र में चारों सदनों के सदस्य रहे और इतिहास के सुनहरे पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया। पूर्व सांसद चैधरी मुनव्वर हसन अपने समर्थक व वोटर की तो मदद करते ही थे बल्कि जो उनकी चौखट पर पहुंच जाता था तो अधिकतर उसकी समस्या का समाधान कराकर ही भेजते थे।

वर्ष 2008 में हुए एक्सीडेंट में उनका देहांत हो गया। कम्र उम्र में ही चौधरी मुनव्वर हसन का दुनिया से चले जाने से सियासत में आज भी उन्हें याद किया जाता है। सियासत में आज भी मुनव्वर हसन की कमी को महसूस किया जाता है। मुनव्वर हसन पश्चिमी यूपी के बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो चुके थे। उनकी मौत से परिवार के साथ-साथ उनके समर्थकों में भी दर्द की लहर दौड़ गई थी। बेटे की कम उम्र होने की वजह से मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम बेगम ने अपने हाथों में सियासी डोर पकड़ी और चल पड़ी। तबस्सुम बेगम कैराना लोकसभा सीट से दो बार लोकसभा सांसद रही।

बेटे नाहिद हसन की उम्र हुई तो पहला चुनाव लड़ा लेकिन जीत हासिल नहीं हो सकी। उसके बाद से अभी तक नाहिद हसन ने विधानसभा के लगातार तीन चुनाव जीतकर हैट्रिक लगाई है।

वर्ष 2022 का लोकसभा चुनाव आया तो एक मामले में नाहिद को जेल जाना पड़ गया था लेकिन जाने से पहले वह पर्चा दाखिल कर गये थे। चुनाव के दौरान जेल में बंद नाहिद हसन का सहारा बनी उनकी छोटी बहन इकरा हसन।


वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में कैराना वो विधानसभा सीट थी, जिस पर भाजपा की निगाहें टिकी हुई थी। उस विधानसभा चुनाव में कैराना विधानसभा सीट पर भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अन्य भाजपा नेताओं द्वारा भाजपा प्रत्याशी मृंगाका के लिये जोरदार प्रचार-प्रसार किया। जिस भी चुनाव में केन्द्रीय मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रचार के लिये गये, वहां ज्यादातर भाजपा के प्रत्याशी ने ही जीत हासिल की। उधर गठबंधन के प्रत्याशी नाहिद हसन जेल में बंद थे लेकिन उनकी बहन इकरा हसन, जिसे लोग राजनीति का कम ज्ञानी समझ रहे थे। इकरा हसन के लिये भाई को जिताना काफी चुनौती थी लेकिन इस चुनौती का इकरा हसन ने डटकर मुकाबला किया। मुकाबले का परिणाम इकरा हसन के भाई नाहिद हसन की जीत तक पहुंचा और इकरा हसन की मेहनत सफल हुई।

चौधरी मुनव्वर हसन की बेटी इकरा हसन विधानसभा चुनाव से लगातार अपने क्षेत्र की जनता से सम्पर्क बनाये हुए है। खतौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी इकरा हसन गठबंधन प्रत्याशी मदन भैय्या के चुनाव में प्रचार करने के लिये आई थी और कई दिनों तक प्रचार कर गठबंधन प्रत्याशी को वोट देने की जनता से अपील की थी। समाजवादी पार्टी ने इकरा हसन की सियासत में सक्रियता को देखते हुए कैराना लोकसभा का प्रभारी बनाया।

इकरा हसन लगातार कैराना लोकसभा क्षेत्र में जनता के बीच पहुंचकर उनकी समस्याओं को जानकर उनका निवारण का प्रयास कर रही है। विधानसभा चुनाव के बाद से क्षेत्र में लगातार सक्रियता को देखते हुए उनकी फैन फॉलोइंग भी बहुत अधिक हो गई। कैराना लोकसभा क्षेत्र की जनता के बीच भी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में पिछले कई माह से एक नाम गूंज रहा था, वो नाम है इकरा हसन। भाई नाहिद हसन विधानसभा चुनाव में जीत दिलाने वाली इकरा हसन की सक्रियता और उनके सियासी अंदाज को देखते हुए कैराना लोकसभा सीट पर गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर इकरा हसन का ही इकरारनामा मान रही थी, जो समाजवादी पार्टी ने आज अपनी एक और सूची जारी करते हुए यह बात सच कर दी और इकरा हसन को ही कैराना लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी घोषित किया है।


मेहनत और जनसेवा के दम पर सभासद से सांसद बने थे अख्तर हसन- मायावती को लाखों वोटों से हराकर की थी जीत हासिल

अख्तर हसन का जन्म वर्ष 1930 में कैराना क्षेत्र के गांव जंधेडी में फैयाज हसन उर्फ बुंदु के घर में हुआ था। अख्तर हसन अपने पिता की तीन संतान थी, जिसमें वह और उनकी दो बहनें भी थी। कुछ वर्षों बाद फैयाज हसन अपने परिवार को लेकर कैराना के मोहल्ला आलदरम्यान में जाकर रहने लगे। अख्तर हसन की पहली पत्नी वहीदन से कोई संतान न होने की वजह से उनका दूसरा निकाह मकसूदी हसन के साथ हुआ था, जिससे उनको पांच पुत्र व तीन पुत्रियां थी। वर्ष 1969 में उन्होंने सियासत में कदम रखा और कैराना नगर पालिका के सभासद चुने गये। वर्ष 1970 में पिता फैयाज हसन की मृत्यु होने के पश्चात वह 84 मुस्लिम गुर्जर खाप के चैधरी बने। वर्ष 1971 और 1973 में दो बार नगर पालिका परिषद का चुनाव जीतकर चेयरमैन बने। वर्ष 1975 में उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस की आजीवन सदस्यता ग्रहण की। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का मर्डर होने के पश्चात वर्ष 1984 में हुए लोकसभा चुनाव कैराना लोकसभा सीट से कांग्रेस ने अख्तर हसन को टिकट दिया। अख्तर हसन ने उस लोकसभा चुनाव में कई बार यूपी की मुख्यमंत्री रही और बसपा प्रमुख मायावती को एक लाख 91 हजार 649 वोटों से हराया था। वर्ष 1988 में अख्तर हसन ने अपनी सियासी विरासत अपने बड़े बेटे चैधरी मुनव्वर हसन को सौंप दी थी।


इतिहास के सुनहरे पन्नों दर्ज रिकॉर्ड- सबसे कम उम्र में चारों सदनों के सदस्य बने थे चौधरी मुनव्वर हसन

पूर्व सांसद चौधरी अख्तर हसन के बड़े बेटे मुनव्वर हसन की शादी बेगम तबस्सुम से हुई थी, जिनके एक बेटा (नाहिद हसन) और एक बेटी (इकरा हसन) है। मुनव्वर हसन ने सियासी इतिहास रचते हुए सबसे कम उम्र में चारों सदन के सदस्य बने थे। वह विधानसभा सदस्य, विधान परिषद सदस्य, राज्यसभा सदस्य और लोकसभा सदस्य रहे। वर्ष 1991 में हुए विधानसभा चुनाव में कैराना विधानसभा सीट से जनता दल के टिकट पर मुनव्वर हसन चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी हुकुम सिंह को हराकर पहली बार विधायक चुने गये। इसके बाद वर्ष 1993 में फिर हुकुम सिंह को हराकर दूसरी बार विधायक बने। इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया था। वर्ष 1996 में कैराना लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर मुनव्वर हसन ने भाजपा प्रत्याशी उदयवीर सिंह को हराकर लोकसभा सांसद बने। वर्ष 1998 में भाजपा प्रत्याशी से कैराना लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद मुलायम सिंह यादव ने उन्हें वर्ष 1998 में ही राज्यसभा भेज दिया था। वर्ष 1999 में लोकसभा कैराना सीट से चुनाव हारे। मुनव्वर हसन वर्ष 1998 से 2003 तक राज्यसभा सांसद रहे इसके बाद वर्ष 2003 में एमएलसी बनाये गये। वर्ष 2004 में मुनव्वर हसन मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और भाजपा प्रत्याशी को हराकर दूसरी बार लोकसभा सांसद बने। मुनव्वर हसन रेलवे समिति, सदन समति, परिवहन और पर्यटन समिति तथा कृषि समिति के सदस्य रहे। 9 दिसम्बर 2008 में आगरा के पास सड़क हादसे में मुनव्वर हसन की मौत हो गई थी।


तबस्सुम बेगम भी रही दो बार लोकसभा सांसद

मुनव्वर हसन की मौत होने के बाद उनकी पत्नी तबस्सुम बेगम ने सियासत का स्टेयरिंग अपने हाथों में ले लिया था। तबस्सुम बेगम वर्ष 2009 में कैराना लोकसभा सीट पर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ी और जीती। कैराना लोकसभा सीट से सांसद हुकुम सिंह की मौत होने के बाद लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस, सपा, बसपा और रालोद ने महागठबंधन किया और रालोद के सिम्बल पर तबस्सुम बेगम को चुनाव लड़ाया। उस लोकसभा उपचुनाव में तबस्सुम बेगम ने 50 हजार के अंतर से जीत हासिल की थी। इसके बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में तबस्सुम हसन भाजपा के प्रदीप चौधरी से हार गई थी। तबस्सुम हसन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण समिति, सलाहकार समिति, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, संसद भवन परिसर में खाद्य प्रबंधन समिति, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और मानव संसाधन विकास संबंधी स्थायी समिति की सदस्या रही।


जेल में बंद भाई का मजबूत सहारा बनी थी इकरा- नाहिद हसन ने लगाई जीत की हैट्रिक

विधायक चौधरी नाहिद हसन पूर्व सांसद चौधरी मुनव्वर हसन के इकलौते पुत्र हैं। चौधरी नाहिद हसन का जन्म 27 जून 1987 को हुआ था। चौधरी नाहिद हसन कैराना विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर तीन बार से लगातार विधायक हैं। चौधरी मुनव्वर हसन के मौत के वक्त चौधरी नाहिद हसन आस्ट्रेलिया में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। वह अपने पिता की मौत की सूचना के बाद वतन लौटे और जनाजे में शामिल हुए। इसके बाद वह वापस आस्ट्रेलिया गये और पूरी शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात भारत लौट आये थे। चौधरी नाहिद हसन की उम्र पूरी होने के बाद वह भी चुनावी मैदान में आये। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने सहारनपुर की गंगोह विधानसभा से टिकट फाइनल कर दिया था लेकिन ऐन मौके पर नाहिद हसन का टिकट काटकर शगुफ्ता खान को दे दिया। वर्ष 2012 को गंगोह विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडा लेकिन वह यह चुनाव हार गये थे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के यूपी में सपा सरकार आई तो नाहिद हसन भी साईकिल पर सवार हो गये थे। वर्ष 2013 में दंगा हुआ तो इसके बाद आये लोकसभा चुनाव में भाजपा की लहर आ गई थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कैराना लोकसभा सीट से नाहिद हसन को समाजवादी पार्टी ने टिकट दे दिया लेकिन वह हार गये थे। हुकुम सिंह के सांसद बनने पर कैराना विधानसभा सीट खाली गई थी। कैराना विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सपा के टिकट पर नाहिद हसन ने अनिल कुमार को हराकर पहली जीत हासिल कर ली थी। उसके बाद से वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव और वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में हुकुम सिंह की बेटी मृंगाका सिंह को हराकर विजय प्राप्त की।

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