विपक्ष की वैचारिक पराजय
लखनऊ। राष्ट्रपति पद का निर्वाचन देश को गणतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित करता है। इसके बाद उपराष्ट्रपति चुनाव की भी गरिमा होती है। इन चुनावों में संख्याबल के साथ ही विचार और मर्यादा का महत्त्वपूर्ण होती है। दोनों ही पद दलगत राजनीति से ऊपर होते हैं। इस दृष्टि से उम्मीदवार चयन और प्रचार दोनों के माध्यम से एक संदेश देने का प्रयास होना चाहिए। राजग ने इन तथ्यों पर पूरा ध्यान दिया। अल्वा ने आरोप लगाया था कि भारतीय जनता पार्टी में अपने कुछ मित्रों को फोन करने के बाद उनकी कॉल डायवर्ट हो रही है और वे किसी को कॉल नहीं कर पा रहीं और न ही कॉल रिसीव कर पा रही हैं। उन्होंने आगे कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर उनके फोन को रिस्टोर कर दिया जाएगा तो वे वादा करती हैं कि भाजपा, तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल के सांसदों को फोन नहीं करेंगी। देश में अभी जनजातीय समुदाय के किसी सदस्य को सर्वोच्च पद पर आसीन होने का अवसर नहीं मिला था। नरेन्द्र मोदी द्वारा द्रोपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया गया। आज वह देश की राष्ट्रपति है। पश्चिम बंगाल में संवैधानिक सक्रियता को लेकर जगदीप धनखड़ देश में विख्यात रहे है। राजग ने उनको उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। विपक्ष ने सार्वजनिक जीवन से वर्षों पहले अलग हो चुकी मारग्रेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया लेकिन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष ने अपरोक्ष रूप से अपनी पराजय मान ली थी।
यशवन्त सिन्हा को ममता बनर्जी की पहल के बाद प्रत्याशी बनाया गया था। विपक्षी पार्टियों के नेता उनके साथ पत्रकार वार्ता करने लगे। यशवन्त भी सभी राज्यों की राजधानी में जाकर प्रचार कर रहे थे। उसी समय ममता बनर्जी ने उन्हें पश्चिम बंगाल आने से रोक दिया। उन्होंने द्रोपदी मुर्मू को बेहतर उम्मीदवार बताया। इसी के साथ सिन्हा की वैचारिक पराजय हो गई थी। विपक्ष उनके समर्थन पर विभाजित हो चुका था। उसी प्रकार ममता बनर्जी ने मारग्रेट अल्वा को समर्थन देने से इंकार कर दिया था। उनके इस निर्णय ने विपक्ष के वैचारिक विभाजन सामने आ गया था। उधर, अल्वा ने भी सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए थे। वह हताश हो चुकी थीं। आरोप लगाया कि विपक्षी सांसदों को फोन करने में बाधा डाली जा रही है।अल्वा ने आरोप लगाया था कि भारतीय जनता पार्टी में अपने कुछ मित्रों को फोन करने के बाद उनकी कॉल डायवर्ट हो रही है और वे किसी को कॉल नहीं कर पा रहीं और न ही कॉल रिसीव कर पा रही हैं। उन्होंने आगे कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर उनके फोन को रिस्टोर कर दिया जाएगा तो वे वादा करती हैं कि भाजपा, तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल के सांसदों को फोन नहीं करेंगी। अल्वा ने कहा था कि 'बिग ब्रदर' हमेशा देखता और सुनता रहता है, 'नए' भारत में पार्टी लाइनों के नेताओं के बीच सभी वार्तालापों में व्याप्त है। सांसद और पार्टियों के नेता कई फोन रखते हैं, बार-बार नंबर बदलते हैं और मिलने पर फुसफुसाते हुए बात करते हैं। डर लोकतंत्र को मारता है।वर्तमान दौर में यह आरोप अजीब था। उनके आरोपों पर दूरसंचार मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि उनकी शिकायत पर उपयुक्त कार्रवाई की गई है। बीएसएनएल ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कराई है। इस मुद्दे पर केन्द्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि अल्वा एक वरिष्ठ नेता हैं। उन्हें इस तरह के बचकाने आरोप नहीं लगाने चाहिए। उपराष्ट्रपति चुनावों को लेकर सरकार आश्वस्त है, वे जिसे चाहे फोन कर सकती हैं।
विगत आठ वर्षों से विपक्षी एकता को अनेक बार प्रदर्शित किया गया। अभी ने एकजुट होकर भाजपा के मुकाबले का जज्बा दिखाया। कर्नाटक में कुमार स्वामी के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन की सरकार बनी थी।उनके शपथ ग्रहण समारोह का दृश्य खूब चर्चित हुआ था। देश की सभी विपक्षी पार्टियों के दिग्गज वहाँ हांथ बाँध कर एकता प्रदर्शित कर रहे थे। लेकिन कुछ ही समय बाद इनकी असलियत सामने आ गई थी।जेडी एस नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमार स्वामी सहयोगी कांग्रेस के व्यवहार से आहत थे। इसका उल्लेख करते समय वह पत्रकार वार्ता में फूट फूट कर रोये थे।
राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने के बाद ममता को अपनी गलती का एहसास हुआ था। उन्होने कहा कि विपक्ष को भी महिला उम्मीदवार उतारने का फैसला करना चाहिए था। लेकिन यह मैं अकेले नहीं कर सकती थी। मैं विपक्ष के फैसले के साथ हूं। ममता बनर्जी ने कहा कि महाराष्ट्र में हुए घटनाक्रम के बाद एनडीए का संख्या बल बढ़ा है। वही ममता बनर्जी के बयान के बाद कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी को बीजेपी का एजेंट करार दिया है। उपराष्ट्रपति पद हेतु सोनिया ने महिला उम्मीदवार उतारा तो ममता ने स्वीकार नहीं किया। इसी बात से विपक्ष के विचार और एकता की कवायद का अनुमान लगाया जा सकता है। ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ममता बनर्जी अब बीजेपी के एजेंट के रूप में और पीएम मोदी के इशारे पर काम कर रही हैं।अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि बीजेपी ने जब अपना संख्या बल पूरा कर लिया,उसके बाद उम्मीदवार के नाम का ऐलान किया। अगर बीजेपी और एनडीए की उम्मीदवार जीतती हैं तो इसमें कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी। तृणमूल कांग्रेस ने कहा था कि एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को तृणमूल कांग्रेस के समर्थन देने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए पार्टी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी।
एनसीपी प्रमुख शरद पवार के घर पर सत्रह विपक्षी दलों ने बैठक कर कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था। इस बैठक में भी तृणमूल कांग्रेस मौजूद नहीं थी। अल्वा के नामांकन में भी तृणमूल का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ। हालांकि एक दिन पहले तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने इस बात के संकेत दिए थे कि उनकी पार्टी जगदीप धनखड़ का समर्थन कर सकती है। वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी, अन्नाद्रमुक आदि ने भी जगदीप धनखड़ के समर्थन की घोषणा पहले ही कर दी थी। मार्गरेट अल्वा को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही शरद पवार ने दावा किया था कि विपक्ष एकजुट है लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इसे निरर्थक साबित कर दिया था। (हिफी)
(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)