किसान संगठन हो रहे हैं लामबंद- फिर डाल सकते है बॉर्डर पर अपना डेरा

आगरा। केंद्र सरकार की ओर से किसानों की मांगों पर कार्रवाई नहीं किए जाने को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर से आंदोलन की राह पर चलते हुए बॉर्डर पर अपना डेरा डाल सकता है। किसानों ने 31 जनवरी को विश्वासघात दिवस मनाते हुए 21 मार्च को राष्ट्रपति के नाम सरकार के खिलाफ रोज पत्र भेजे थे। अब किसानों की ओर से चेतावनी दी जा रही है कि यदि सरकार की ओर से दिए गए आश्वासन पूरे नहीं किए गए तो किसान संगठनों की अगली बैठक में आंदोलन का फैसला लिया जा सकता है।
दरअसल नये कृषि कानूनों के विरोध में राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर चलाये गये आंदोलन को समाप्त करने से पहले केंद्र सरकार एवं किसान संगठनों के बीच हुई बातचीत के दौरान एक सहमति पत्र तैयार किया गया था। जिसमें उल्लेखित पांच प्रमुख मांगों पर लिखित सहमति दी गई थी। पहले बिंदु में एमएसपी को लेकर सरकार की ओर से कमेटी का गठन करने और फसलों की खरीद का मामला जुड़ा हुआ था। दूसरे बिंदु में किसान आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान आदि में किसानों पर दर्ज किए गए मुकदमों को वापस लिया जाना शामिल था। अन्य तीन बिंदुओं में मुआवजा, बिजली बिल एवं पराली जलाने का मुद्दा शामिल था।
अब किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार किसानों की पांच प्रमुख मांगों में से एक को भी स्वीकार नहीं कर पाई है। हरियाणा में जरूर किसानों पर दर्ज किए गए मुकदमों को लेकर कुछ लीपा पोती हुई है। परंतु उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड आदि प्रदेशों में किसानों पर लगाए गए मुकदमे पूरी तरह से वापस नहीं लिए हैं। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राजवीर सिंह जादौन ने बताया है कि संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार के जिन आश्वासनों के ऊपर भरोसा करते हुए दिल्ली बॉर्डर पर किया जा रहा आंदोलन स्थगित किया था, सरकार उन वादों को लेकर अभी तक खरी नहीं उतरी है।
भाकियू प्रदेशाध्यक्ष ने कहा है कि सरकार की वादाखिलाफी को लेकर किसान पहले की तरह ही पूरी तरह से लामबंद हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की अगली बैठक में आंदोलन को लेकर निर्णय लिया जाएगा। अगली बैठक की तारीख अभी निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन जल्द ही तारीख निर्धारित कर संगठनों की बैठक बुलाई जाएगी।