आजाद के फिर उच्च सदन लौटने की उम्मीदें
नई दिल्ली। कांग्रेस के चर्चित दबंग नेता गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा में क्या फिर वापस लाया जाएगा, यह बहस राजनीतिक गलियारे में होने लगी है। कांग्रेस नेतृत्व को लेकर पार्टी नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी, उनमें गुलाम नबी आजाद भी शामिल थे। हाई कमान इससे नाराज भी हुआ था लेकिन विदाई समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से उनकी तारीफ की है, उससे आजाद का कद और बढ़ गया है। इसीलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस फिर उच्च सदन में लाएगी।
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा कार्यकाल 15 फरवरी को खत्म हो रहा है। उन्हें विदाई देते हुए प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो गए। आजाद ने राजनीति में एक लंबी पारी खेली है। उन्हें मृदुभाषी और विषयों के साथ सियासत पर पकड़ वाले ऐसे नेता के रूप में जाना जाता है। जिन्होंने जमीनी स्तर से राजनीति शुरू की और राष्ट्रीय पटल तक पहुंचे। 70 के दशक में जम्मू-कश्मीर का एक तेज तर्रार युवा नेता गांधी परिवारों की नजर में आया।
पहले उसे जम्मू कश्मीर में यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और फिर वो यूथ कांग्रेस का नेशनल प्रेसीडेंट हो गया। वो गुलाम नबी आजाद हैं। जिनकी राजनीति का सफर बिल्कुल नीचे से शुरू हुआ और फिर उन्होंने राष्ट्रीय पटल पर सियासत की लंबी पारी खेली। राज्यसभा से उनकी विदाई जरूर हो रही है लेकिन माना जाना चाहिए कि जल्दी ही वो फिर संसद के उच्च सदन में नजर आ सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें राज्यसभा से विदाई देते हुए 09 फरवरी को भावुक हो गए। उन्होंने आजाद को एक अच्छा दोस्त बताया। याद किया कि किस तरह राजनीति से परे वो उनके दोस्त रहे हैं। ये भी याद किया कि किस तरह जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे और आजाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री तो उन्होंने वहां गुजरात के लोगों की सुरक्षा की थी। अपने भाषण के दौरान उन्हें मोदी ने एक लंबी और यादगार राजनीतिक पारी के लिए सेल्यूट भी किया।
उन्होंने कहा कि राजनीति में सत्ता रहती है और जाती है लेकिन मुख्य बात ये है कि आप उसको कैसे संभालते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण के बाद राज्यसभा से विदा ले रहे आजाद अचानक सुर्खियों में आ गए। राजनीति के विश्लेषक मोदी द्वारा गुलाम नबी आजाद को दिए खास सम्मान का अलग अलग तरीके से विश्लेषण कर सकते हैं। ये सवाल भी पूछा जा सकता है कि क्या अब आजाद की सियासी पारी खत्म हो गई है। अब वो क्या करेंगे। ऐसे में ये भी कहा जाना चाहिए कि बेशक कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन अभी लगता नहीं कि वो सियासत छोड़कर जा रहे हैं। ये भी माना जा रहा है कि वो अप्रैल के आसपास फिर राज्यसभा में चुनकर आ सकते हैं। केरल से उन्हें फिर कांग्रेस द्वारा संसद के उच्च सदन में चुनकर भेजा सकता है। गुलाम नबी आजाद फिलहाल राज्यसभा में कांग्रेस के नेता होने के साथ विपक्ष के नेता भी थे। वो पिछली बार जम्मू कश्मीर से चुनकर आए थे। अब मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को केद्र शासित प्रदेश में बदलने के बाद वहां से राज्यसभा की सीटें खत्म हो गई हैं।
आजाद ने सियासत में लंबी पारी खेली है। वो मृदुभाषी हैं। लंबे सियासी करियर में वो आमतौर पर कांग्रेस के संकटमोचक नेताओं में गिने जाते रहे है। जमीनी नेता रहे हैं। सियासत में अगर ऊपर तक पहुंचे तो उसके लिए उन्होंने अपने राज्य जम्मू कश्मीर में पहले जमीनी स्तर पर खासा काम भी किया। उन्होंने डोडा जिले में निचले स्तर से काम करना शुरू किया और 1973 में उन्हें भलेसा में ब्लाक कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया। ब्लाक में कांग्रेस सचिव बनना निश्चित तौर पर कोई बड़ी बात नहीं कही जा सकती लेकिन उसके दो साल के अंदर राज्य में यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बन जाना वाकई खास बात थी। फिर उससे भी खास ये कि 1980 में वो यूथ कांग्रेस के नेशनल प्रेसीडेंट बन गए। उनके इस सियासी छलांग के पीछे बड़ी वजह ये थी कि संजय गांधी उन्हें पसंद करने लगे थे। इंदिरा गांधी जानने लगी थीं। दोनों को उनके अंदर एक जुझारू और ऊर्जावान नेता के गुण नजर आए।
कहा जा सकता है कि संजय गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आए और आगे बढ़ाया लेकिन फिर वो इंदिरा के करीब आए। इंदिरा और संजय के बाद भी वो गांधी परिवार के करीबी बने रहे। हालांकि पिछले दिनों ये चर्चाएं चलती रही हैं कि वो कांग्रेस के उन नेताओं में हैं जो असंतुष्ट हैं। उन्हें जी-23 ग्रुप के कांग्रेस नेताओं में शुमार किया जाने लगा।
गुलाम नबी आजाद 80 साल के हो चुके हैं लेकिन भरपूर फिट लगते हैं। करीब 04 दशक के अपने करियर में वो कांग्रेस संगठन में भी रहे और सरकार में भी। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रहे। उन्होंने कई मंत्रालय संभाले। कई राज्यों में कांग्रेस के प्रभारी रहे। कुल मिलाकर वो कांग्रेस के ऐसे नेता भी हैं, जिनका असर और संपर्क देशभर में हैं।
जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में 07 मार्च 1940 को पैदा हुए थे। पढ़ने में तेज थे। पहले गांव और कस्बे में ही शुरुआती पढ़ाई की फिर बीएससी करने जम्मू करने गए। इसके बाद उन्होंने श्रीनगर से साइंस जूलॉजी में मास्टर्स डिग्री ली। इस लिहाज से ये भी कह सकते हैं कि वो राजनीति में ऐसे नेता भी रहे हैं, जिनके पास अच्छी शैक्षिक योग्यता है।
हालांकि कई बार उनकी कई बातों पर विवाद भी हुआ है। वर्ष 2008 में उन्होंने हिंदू मंदिरों को जमीन स्थानांतरित करने की योजना पारित की, उनके इस फैसले से मुसलमान आक्रोशित हो गए। जिसके परिणामस्वरूप घाटी में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। गुलाम नबी आजाद की बिगड़ती छवि के कारण कांग्रेस ने सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद गुलाम नबी आजाद ने बहुमत साबित करने की जगह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
वर्ष 2011 में एक प्रेस-कांफ्रेंस में गुलाम नबी आजाद ने समलैंगिकता को एक विदेशी बीमारी कहकर संबोधित किया। उनके इस कथन की बहुत आलोचना हुई। उन्होंने केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए कई प्रकार के सुझाव दिए। जैसे लड़कियों का विवाह अगर 25-30 वर्ष के बीच किया जाए तो इससे जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है, इस बयान की तारीफ हुई। उनके सियासी करियर की एक खास बात ये भी है कि वो अगर तीन बार जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा में पहुंचे तो दो बार महाराष्ट्र से। दो बार उन्होंने महाराष्ट्र से ही लोकसभा चुनाव जीता। अब ये सवाल जरूर उठता है कि क्या वो दोबारा राज्यसभा में पहुंचेंगे। (हिफी)