एकनाथ शिंदे का बड़बोलापन

एकनाथ शिंदे का बड़बोलापन

लखनऊ। कहते हैं कि आदमी बड़ा कौर खा ले लेकिन बड़ा बोल न बोले। आने वाले समय को किसने देखा है। राजनीति में तो भविष्य का अनुमान लगाना ही मुश्किल है। महाराष्ट्र की शिवसेना में इस तरह का बिखराव आएगा, यह भविष्यवाणी तो राजनीति के पंडितों ने भी नहीं की थी। बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना का हर शिवसैनिक मातोश्री के निर्देश पर जान देने को तैयार हो जाता था। हालांकि इससे पूर्व राजठाकरे और नारायण राणे ने शिवसेना से अलग रास्ता अपनाया लेकिन एकनाथ शिंदे ने पार्टी के 55 विधायकों में से 40 को अपने साथ खड़ा करके राजनीति की जादूगरी तो दिखा ही दी थी। उनका यह करिश्मा महाराष्ट्र की जनता पर भी चलेगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता। पिछले दिनों उन्होंने गर्वोक्ति की है कि उनके साथ के 40 विधायको में से कोई भी विधानसभा चुनाव में पराजित नहीं होगा और अगर पराजित हो गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे। एकनाथ शिंदे जी, आप भले ही यह गर्वोक्ति भूल जाएं लेकिन मीडिया आपको समय आने पर याद जरूर दिलाएगा और हो सकता है, वो समय आपके लिए भारी गुजरे। लोकतंत्र में जनता किसी शिंदे या ठाकरे के इशारे पर मतदान नहीं करती है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना के बागी विधायकों को चुनाव लड़ने की चुनौती पर पलटवार किया है। शिंदे ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि अगर उनका साथ देने वाले शिवसेना के 40 विधायकों में से एक भी अगले चुनाव में हार गया तो वह राजनीति छोड़ देंगे। शिंदे ने उद्धव पर तंज कसते हुए कहा कि क्या गलत हुआ था, इस पर आत्ममंथन करने के बजाय वो लोग हमें और हमारे विधायकों को ही 'देशद्रोही' करार देते रहे। सीएम शिंदे ने मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा, 'कहा जा रहा है कि कोई भी बागी विधायक चुनाव नहीं जीत पाएगा। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि 'पिछले विद्रोह अलग थे, तब स्थिति अलग थी। अब जो हुआ, वह विद्रोह नहीं है। मैं कहता हूं कि कोई भी विधायक चुनाव नहीं हारेगा। मैं इसकी जिम्मेदारी लेता हूं। अगर इनमें से कोई भी हारा तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा। प्रभादेवी में एक बागी विधायक संजय शिरसाट के सम्मान कार्यक्रम में बोलते हुए सीएम शिंदे ने ये भी कहा कि ये कौन होते हैं जो तय करेंगे कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा? इसका फैसला तो जनता को करना है। वोटरों को करना है।' उद्धव ठाकरे ने पहले कहा था कि शिवसेना से बगावत करने वाला कोई भी विधायक चुनाव लड़ता है तो जीत नहीं पाएगा। एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के बाद भी कहा था कि वह सुनिश्चित करेंगे कि उनके सभी विधायक चुनाव जीतें। उन्होंने भरोसा जताया था कि बीजेपी और उनकी टीम मिलकर 200 सीटें लेकर आएगी। ऐसा नहीं हुआ तो मैं खेतों में चला जाऊंगा।

इसके बाद विधायक अब्दुल सत्तार के स्वागत समारोह में भी सीएम शिंदे ने उद्धव का नाम लिए बिना निशाना साधा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, शिंदे ने कहा कि उन्होंने दिवंगत शिवसेना नेता आनंद दिघे के जीवन पर एक फिल्म बनाई थी, जिसे लोगों ने पसंद भी किया था लेकिन कुछ लोग इसे पचा नहीं पाए और उस पर अपना गुस्सा निकाला लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं है कि कौन पसंद करता है, कौन नहीं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपना कार्यकाल पूरा करने और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन में अगला चुनाव जीतने का शनिवार को भरोसा जताया।

शिंदे ने अपने पूर्ववर्ती उद्धव ठाकरे के मध्यावधि चुनाव कराने के आह्वान को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि राज्य सरकार मजबूत है और 288 सदस्यीय विधानसभा में उसे 164 विधायकों का समर्थन है, जबकि विपक्ष के पास सिर्फ 99 विधायक हैं। ध्यान रहे कि शिवसेना के 40 विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद से उद्धव ठाकरे को कई बड़े राजनीतिक झटके लग चुके हैं। विधायकों के बाद अब स्थानीय निकायों के पार्षद और स्थानीय कार्यकर्ता भी शिंदे के गुट में लगातार शामिल होते जा रहे हैं। पालघर के शिवसेना के पदाधिकारियों, जिला परिषद के सदस्यों और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने शिंदे गुट को अपने समर्थन का ऐलान किया इस मौके पर पालघर के सांसद राजेंद्र गावित, विधायक श्रीनिवास वनाग और जिलाध्यक्ष सहित कई स्थानीय कार्यकर्ता मौजूद थे। इन सभी लोगों ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एकनाथ शिंदे की बगावत के शुरू होने के कुछ दिन बाद से ही पालघर जिले के शिवसेना के अधिकांश पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के बीच एक हलचल पैदा हो गई थी। इसके बाद 15 जुलाई की रात को बड़ी संख्या में पालघर के शिवसेना के पदाधिकारी और कार्यकर्ता मुंबई के आनंदवन बंगले में जाकर शिंदे गुट में शामिल हो गए। पिछले एक हफ्ते से शिवसेना के कार्यकर्ताओं में शिंदे के गुट के पक्ष में एक मजबूत झुकाव देखा जा रहा है। बागी विधायकों के हर जिले में अपनी ताकत दिखाने की संभावना है। इसलिए ये अब शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के लिए एक बड़ा सिरदर्द समझा जा रहा है।

एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के करीब 40 विधायकों ने शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे की सरकार के खिलाफ बगावत की थी जिसके कारण उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा था। इसके बाद बीजेपी के समर्थन से एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है जबकि बीजेपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया है। आगामी राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना ने एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन करने का फैसला लिया है। इस फैसले की घोषणा स्वयं शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने की है। सवाल है कि क्या एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन शिवसेना की राजनीतिक मजबूरी बन गई है। क्या इसी राजनीतिक मजबूरी ने शिवसेना को द्रौपदी मुर्मू के समर्थन के फैसले की ओर कदम बढ़ाने को मजबूर किया है। वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि शिवसेना का यह फैसला भाजपा के लिए एक संकेत है। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने दावा किया कि शिवसेना बिना किसी दबाव के मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा कर रही है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि वह यह फैसला अपने विधायकों के दबाव में आकर नहीं कर रहे हैं। इसके ठीक इतर यह सब जान रहे हैं कि शिवसेना के भीतर हाल ही में हुए भीतरघात ने शिवसेना को कमजोर बना दिया है। इसकी ताकत में भी कमी आई है। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के आवास पर बैठक बुलाई गई थी। जिसमें पार्टी के 18 शेष सांसदों में से 13 ने भाग लिया था। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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