ब्रिटिश काल का ठप्पा हटाएंगे धामी

ब्रिटिश काल का ठप्पा हटाएंगे धामी

नई दिल्ली। कुछ परिस्थितियां ऐसी थीं और कुछ अक्षम्य गलतियां जिनके चलते ही लगभग एक हजार वर्ष तक हम गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहे। हमें शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी गुलाम बना दिया गया था जिसकी वजह से रजिया सुल्तान जैसी गुलाम भी बादशाहत करने लगी थी। इन गुलामी की जड़ों को एक-एक करके उखाड़ फेंकने की जरूरत है। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आजादी के 75वें साल अमृत महोत्सव मनाते हुए गुलामी के चिह्न तक मिटाने का संकल्प लिया और देशवासियों से इसके लिए सहयोग मांगा है। दिल्ली में महारानी विक्टोरिया की याद दिलाने वाला राजपथ मोदी ने कर्त्तव्य पथ बना दिया है तो वहीं पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा स्थापित की गयी है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इसी दिशा में प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में हरियाणा के सूरज कुंड में सम्पन्न हुए चिंतन शिविर मंे पीएम मोदी ने पांच प्रणों की याद दिलायी थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस चिंतन शिविर से कई संकल्प लेकर लौटे हैं। इनमें एक संकल्प राज्य से ब्रिटिश कालीन ठप्पे मिटाने का है। वे कहते हैं राज्य भर से गुलामी के प्रतीकों को हटाया जाएगा। अंग्रेज अफसरों के नाम पर जो शहर हैं, उनके नाम बदले जाएंगे।

उत्तराखंड की धामी सरकार ने राज्य में ब्रिटिश काल का ठप्पा हटाने का निर्णय लिया है। सरकार ने ऐसे शहरों, स्थानों के नाम बदलने की तैयारी कर ली है जो अंग्रेज अफसरों के नाम पर रखे गए हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने मुगल काल के दौरान रखे गए कई शहरों के नाम बदल दिए हैं। योगी सरकार ने इन शहरों को उनकी पुरानी पहचान के आधार पर नाम दिए हैं। इसी राह पर चलते हुए अब धामी सरकार ने भी ब्रिटिश काल का ठप्पा लगे शहरों का नाम बदलने की घोषणा की है।

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा कि उन्हें यह प्रेरणा प्रधानमंत्री मोदी से मिली है। उन्होंने कहा कि गुलामी के प्रतीकों को हटाया जाएगा। ऐसे में राज्य में जो भी जगह ब्रिटिश काल और गुलामी के प्रतीक हैं या अंग्रेज अफसरों के नाम पर स्थानों के नाम हैं उन्हें बदला जाएगा। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने प्रस्ताव पर अमल किया तो पौड़ी जिले में स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र लैंसडौन का नाम फिर 'कालौं का डांडा' (काले बादलों से घिरा पहाड़) हो जाएगा। पहले इसे 'कालौं का डांडा' ही कहा जाता था। 132 साल पुराने लैंसडौन नाम को बदलने की तैयारी है। रक्षा मंत्रालय के आर्मी हेड कवार्टर ने सब एरिया उत्तराखंड से ब्रिटिशकाल में छावनी क्षेत्रों की सड़कों, स्कूलों, संस्थानों, नगरों और उपनगरों के रखे नामों को बदलने के लिए प्रस्ताव मांगें हैं। स्थानीय लोग इसका नाम बदलने की मांग वर्षों से करते आए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सूरजकुंड में आयोजित गृह मंत्रियों के चिंतन शिविर से यह विचार लेकर लौटे।

सूरज कुंड के चिंतन शिविर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गृह मंत्रियों का ये चिंतन शिविर सहकारी संघवाद का एक उत्तम उदाहरण है। हर एक राज्य एक दूसरे से सीखे, एक दूसरे से प्रेरणा लें, देश बेहतरी के लिए काम करे, ये संविधान की भी भावना है और देशवासियों के प्रति हमारा दायित्व है। पीएम मोदी ने कहा कि आने वाले 25 साल देश में एक अमृत पीढ़ी के निर्माण के हैं। ये अमृत पीढ़ी, पंच प्राणों के संकल्पों को धारण करके निर्मित होगी। विकसित भारत का निर्माण, गुलामी की हर सोच से मुक्ति, विरासत पर गर्व, एकता-एकजुटता और नागरिक कर्तव्य इन पंच प्राणों का महत्व आप सभी जानते हैं। उन्होंने कहा कि जब देश का सामर्थ्य बढ़ेगा तो देश के हर नागरिक, हर परिवार का सामर्थ्य बढ़ेगा। यही तो सुशासन है, जिसका लाभ देश के हर राज्य को समाज की आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंचाना है। इसमें आप सभी की बहुत बड़ी भूमिका है। पीएम मोदी ने कहा कि कानून व्यवस्था को बनाए रखना, एक 24 घंटे चलने वाला काम है लेकिन किसी भी काम में ये भी आवश्यक है कि हम निरंतर प्रक्रियाओं में सुधार करते चलें, उन्हें आधुनिक बनाते चलें। साइबर क्राइम हो या फिर ड्रोन टेक्नोलॉजी का हथियारों और ड्रग्स तस्करी में उपयोग, इनके लिए हमें नई टेक्नोलॉजी पर काम करते रहना होगा। स्मार्ट टेक्नोलॉजी से कानून-व्यवस्था को स्मार्ट बना पाना संभव होगा।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सूरजकुंड में आयोजित गृह मंत्रियों के चिंतन शिविर से सीख लेते हुए कहा कि उत्तराखंड के आंतरिक सुरक्षा और सीमा सुरक्षा को लेकर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पुलिसिंग व्यवस्था मजबूत की जाएगी। इसके लिए सरकार प्लान बना रही है। साथ ही सरकार राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा भी कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटिश काल में अंग्रेजों द्वारा इंग्लैंड की बीमारी को कुटिलता से भारतीय नाम दे दिया गया था। कई बार के प्रयासों के बाद भी आजतक इसे बदला नहीं जा सका है। एक बार फिर से इसे हटवाने की मुहिम शुरू की गई। इसके बावत पशुपालन मंत्री के माध्यम से ज्ञापन दिया गया था। वर्ष 1938 में ग्रेट ब्रिटेन के न्यू कैसल सिटी में एक महामारी ने मुर्गियों को चपेट में ले लिया था। तब ब्रिटिश विशेषज्ञों ने इसे पैरामाइक्सो विषाणु को न्यूकैसल वायरस नाम दिया। सालभर बाद यही विषाणु अंग्रेजों के माध्यम से भारत पहुंच गया। 1939 में यह रानीखेत में फैला तो ब्रितानी विज्ञानियों ने अपने देश के कलंक को कुटिलता से भारतीय नाम 'रानीखेत वायरस" दे दिया। आज तक इसका नाम बदला नहीं गया, जबकि मूल रूप से इसकी उत्पत्ति ब्रिटेन में हुई थी। इसी मुद्दे पर भाजपा प्रदेश सहमीडिया प्रभारी विमला रावत की अगुआई में शिष्टमंडल ने सीएम पुष्कर सिंह धामी व पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा से मिल नाम बदले जाने की पुरजोर वकालत की।

ध्यान रहे गुलामी के दौर में अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए भारतवासी जूझते रहे। आखिरकार 1947 में हम अंग्रेजों के शासन से मुक्त हो गए, लेकिन आजादी पाने के 71 साल बाद भी अंग्रेजों के दिए अंग्रेजी नाम मसूरी शहर की पहचान बने हुए हैं। मसूरी की कई सड़कें, कॉटेज, पहाड़ियां आज भी अंग्रेजी शासन की याद दिलाती नजर आ रही हैं। दस्तावेजों के अनुसार 1820 के बाद अंग्रेजों ने हिल स्टेशन के रूप में मसूरी शहर को बसाने की शुरुआत की। दस्तावेज में सिरमौर बटालियन के तत्कालीन कैप्टेन यंग समेत कुछ अन्य अंग्रेज अधिकारियों द्वारा मसूरी शहर को बसाने और इसे क्वीन ऑफ हिल्स का खिताब देने का उल्लेख है। शहर की अधिकतर सड़कें, पहाड़ियां, भवनों के नाम अंग्रेजों के शासन काल की याद दिलाते हैं। कुछ अंग्रेजी नाम इस प्रकार हैं- सिस्टर बाजार, लाइब्रेरी बाजार, स्प्रिंग रोड, गनहिल, विन्सेट हिल, किंग्रेड, क्लाउड इंड, चार्लिविल, बाला हिसाप, कंपनी गार्डन, होपगार्डन, मेरीवैल, क्लिप कॉटेज, विशिंग वैल, ब्रुकलैंड, वाइनवर्ग, ओकबुस, वेवरली और मैसानिक लॉज आदि। यानी सैकड़ों भवनों, सड़कों और बाजारों के नाम ऐसे हैं, जो अंग्रेजों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक रखे थे। स्थानीय लोगों के अनुसार शहर, सड़कें, इमारतों के नाम अपनी संस्कृति और महापुरुषों के

नाम पर होने चाहिए। इसीलिए पुष्कर धामी सरकार गुलामी के ठप्पे मिटाने जा रही है। (हिफी)

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