घोटालेबाजों पर मुख्यमंत्री योगी का शिकंजा
लखनऊ। चोर रास्ते से बिना नीट परीक्षा पास किए यूपी के आयुर्वेदिक मेडिकल कालेजों में प्रवेश हासिल करने वाले 891 छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है लेकिन यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने यह इरादा भी जाहिर किया कि घोटालेबाजों की अब खैर नहीं। आरोप है कि 891 छात्रों ने नीट परीक्षा पास नहीं की लेकिन साफ्टवेयर हैंडिल करने वाली कंपनी के साथ लाखों का लेनदेन कर फर्जी तरीके से अपनी रेंक बढ़वा कर मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन हासिल कर लिया अब वास्तविक रिजल्ट से मिलान करने पर कई साल से चल रहा गडबड घोटाला सामने आया है। यूपी के राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेजों में फर्जी एडमिशन मामले में बड़ा एक्शन हुआ है। बिना नीट एडमिशन लिए 891 छात्रों को सस्पेंड कर दिया गया है। कॉलेजों के बाहर इन छात्रों के सस्पेंशन की नोटिस लगा दी गई हैं। हालांकि सीएम योगी ने बच्चों को लेकर नरम रवैया अपनाया है। उन्होंने आदेश दिया कि सस्पेंड छात्रों के खिलाफ रिपोर्ट और सख्त कार्रवाई न की जाए। इससे पहले इसे योगी सरकार ने मामले को सीबीआई के सुपुर्द कर दिया है।
यूपी के आयुष मंत्री दया शंकर मिश्र ने बताया, जिन बच्चों का एडमिशन गलत था, उन सभी बच्चों को सस्पेंड कर दिया गया है। इस मामले में कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एसएन सिंह और उमाकांत यादव, प्रभारी अधिकारी शिक्षा निदेशालय को भी सस्पेंड कर किया गया है।इसके अलावा यूनानी निदेशालय के प्रभारी अधिकारी डॉ. मोहम्मद वसीम और शिक्षण होम्योपैथी निदेशालय के कार्यवाहक संयुक्त निदेशक प्रो. विजय पुष्कर के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के निर्देश दिए गये हैं। वहीं पूर्व आयुष मंत्री डॉ धर्मवीर सैनी ने यह बयान जारी कर जवाबदेही से किनारा काटने की कोशिश की है कि जब घोटाला किया गया तब वह मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके थे। उन्होंने कहा कि आयुष की काउंसलिंग मार्च में हुई लेकिन उन्होंने जनवरी में ही आयुष मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
इस बड़े पैमाने पर गड़बड़ी वाले मामले में 4 नवंबर को सबसे पहले हजरतगंज कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद मामला सुर्खियों में आ गया क्योंकि मामला छात्रों से जुड़ा था। इसलिए सरकार ने बहुत सोच समझकर कदम उठाए हैं। वर्ष 2021-22 में काउंसिलिंग के लिए आयुर्वेद निदेशालय ने बोर्ड का गठन किया था। आइटी सेल न होने के कारण बोर्ड की निगरानी में निजी एजेंसी सॉफ्ट सॉल्यूशन को काउंसिलिंग का ठेका दिया गया। इस एजेंसी को अपट्रान पावरट्रानिक्स लि. ने नामित किया था। एक फरवरी 2022 से शुरू हुई काउंसिलिंग प्रक्रिया 19 मई तक चार चरणों में पूरी की गई। प्रदेश के राजकीय तथा निजी कॉलेजों में 7338 सीटों पर एडमिशन हुए। काउंसिलिंग से लेकर वेरीफिकेशन तक की जिम्मेदारी निजी एजेंसी की थी। दाखिलों के बाद सीट एलाटमेंट भी कर दिया गया। 1181 छात्रों के रिकॉर्ड नीट काउंसिलिंग की मेरिट सूची से नहीं मिले। इनमें से 22 छात्र ऐसे थे जो नीट में शामिल ही नहीं हुए थे। 1181 में से 927 को सीट आवंटन किया गया था। इनमें से 891 छात्र-छात्राओं ने प्रवेश प्राप्त कर लिया।
शुरुआती जांच के बाद आयुर्वेद निदेशालय ने संदिग्ध छात्रों की सूची नाम-पते के साथ संबंधित आयुर्वेदिक महाविद्यालयों को भेज दी। संदिग्ध छात्रों के प्रवेश रद्द करने के आदेश दिए। 28 अक्टूबर को राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय लखनऊ के प्रधानाचार्य ने 6 छात्रों को सस्पेंड कर दिया। इनमें यमुना विहार, प्रयागराज की अदिति मिश्रा, जानकीपुरम लखनऊ की खुशबू पटेल, दौलतपुर बाराबंकी की रुचि भार्गव, हरैया बस्ती की संध्या सोनकर, गंगापुर अकेलवा वाराणसी के सत्यजीत राय और पचपेड़वा धमौली बलरामपुर के तौसीफ अहमद शामिल थे।
अब सामने आ रही है कि नोडल एजेंसी ने जांच के नाम पर नीट के डाटा बेस और वेबसाइट में भी छेड़छाड़ की थी। आरोप है कि निजी एजेंसी ने नीट के डाटा बेस में ही नहीं बल्कि वेबसाइट में भी छेड़छाड़ की। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक कार्यालय से मिले डाटा और निजी एजेंसी के रिकॉर्ड में हेरफेर मिले हैं। जांच शुरू हुई तो निजी एजेंसी संचालक ने डीजीएमई कार्यालय से मिली हार्ड डिस्क की रिकॉर्ड कापी भी करप्ट कर दी।
सूत्रों के मुताबिक यूपी के आयुष कॉलेजों में दाखिले के लिए काउंसिलिंग प्रक्रिया महज दिखावा थी। नीट यूजी मेरिट का भी कोई मतलब नहीं था। घोटालेबाजों ने आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी पाठ्यक्रमों की एक-एक सीट की सौदेबाजी की।
5-5 लाख रुपए में सीटें बेच दीं। करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे काउंसिलिंग में हो गए। पात्र छात्रों के सपनों का सौदा कर एडमिशन के दलालों ने अयोग्य विद्यार्थियों को एडमिशन दिला दिया। इसमें निदेशालय के अफसर और काउंसिलिंग एजेंसी की भूमिका सवालों के घेरे में है।
आयुष पाठ्यक्रमों की काउंसिलिंग का ठेका निजी एजेंसी को दिया गया। आयुर्वेद निदेशालय के अफसरों को निगरानी की जिम्मेदारी दी गई। इसके बावजूद बड़े पैमाने पर एडमिशन में घोटाला हो गया। आठ राजकीय आयुर्वेद कॉलेजों में करीब 400 सीटें हैं। 68 निजी कॉलेजों में लगभग साढ़े चार हजार सीटें हैं। लगभग दो लाख रुपए सालाना फीस प्राइवेट कॉलेजों के लिए तय है। हॉस्टल की फीस इसमें शामिल नहीं है जबकि सरकारी कॉलेजों में 14 हजार रुपए सालाना फीस है।
कई स्टूडेंट्स ने शिकायत कर आरोप लगाया कि राजकीय कॉलेजों में प्रवेश के नाम पर 5-5 लाख रुपए और निजी कॉलेजों में दाखिला दिलाने के लिए दलालों ने तीन से चार लाख रुपए तय कर रखे थे। होम्योपैथी के आठ सरकारी कॉलेजों में लगभग 800 सीटें हैं। दो प्राइवेट होम्योपैथिक कॉलेज हैं। इसी तरह यूनानी के सरकारी और प्राइवेट कॉलेज हैं। सरकारी कॉलेजों में दाखिले दिलाने के नाम पर मोटी रकम वसूली गई जबकि सरकारी में दो से तीन लाख रुपए वसूले गए।
यह घोटाला कई अन्य घोटालों की कलई खोलने के लिये एक मास्टर की साबित हो सकता है। सरकार को तमाम परीक्षाएं एडमिशन एवं नियुक्ति संबंधी समस्त प्रकिया को लीक प्रूफ बनाना होगा ताकि परीक्षाओं की नैतिकता व विश्वसनीयता बनी रहे। मुख्यमंत्री योगी ने ऐसे चोर रास्ते से एडमिशन पाने वाले छात्रों के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कराने का आदेश जारी कर दूरदर्शिता का परिचय है, सरकार इस सब गडबडी के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है लेकिन युवाओं का भविष्य न चौपट हो, इसका भी ध्यान रख रही है। (हिफी