क्या पश्चिम बंगाल में बन सकती है शुभेंदु की संभावना

क्या पश्चिम बंगाल में बन सकती है शुभेंदु की संभावना

लखनऊ। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव का आधा सफर पूरा हो गया है। चुनाव पर नजर रखने वाले भी यह मानकर चल रहे हैं कि वामपंथी, कांग्रेसी और ओवैसी कहीं भी मुख्य मुकाबले में नहीं हैं। आमने-सामने भाजपा और सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ही दिख रहे हैं। भाजपा ने हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण का सुनियोजित तरीके से प्रयास किया और टीएमसी की नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हिन्दू विरोधी साबित करने के लिए जय श्रीराम नारे का विरोध और दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर रोक का बार बार उल्लेख किया गया। ममता बनर्जी को इसीलिए जनसभा में अपना गोत्र बताना पड़ा। हालांकि ममता बनर्जी भाजपा के हिन्दू कार्ड को कमजोर करने का प्रयास भी कर रही थीं। इसा संदर्भ में मुख्यमंत्री ने गंगा सागर स्नान को कुंभ स्नान की मान्यता देने की मांग केन्द्र सरकार से की है। इतना ही नहीं, शारदीय नवरात्र में सैकड़ों दुर्गा पूजा पांडाल सरकार की तरफ से लगाये गये थे। इन सबके बावजूद धर्म के मुद्दे को लेकर भाजपा ही आगे है। ममता बनर्जी के पास बाहरी बनाम भीतरी का मुद्दा भी है। भाजपा को ममता बाहरी साबित कर रही हैं। वहां कांग्रेस और वामपंथी स्थानीय हैं। इसके साथ ही बांगलादेश से आये हिन्दू मुसलमान दोनों बाहरी हैं। ममता बनर्जी ने बंग्ला भाषा अनिवार्य करके मूल बंगालियों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया है। यहां अन्य प्रदेशों के लगभग एक करोड़ लोग भी रहते हैं। चुनाव में इनके वोट भी काफी हेरफेर कर सकते हैं। भाजपा ने भी इशारा किया है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा सरकार की कमान बंग की मिट्टी को ही सौंपी जाएगी।

बहरहाल, ध्रुवीकरण न हो सके, इसीलिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आयोग से आग्रह किया कि विधानसभा चुनाव के बाकी चरणों को एक बार में कराने पर विचार किया जाए। उन्होंने इसका आधार कोरोना संक्रमण बताया है। ममता बनर्जी ने जोर देते हुए कहा कि उनकी पार्टी ने पहले ही आठ चरणों में मतदान कराने का विरोध किया था। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने ट्वीट में कहा कि इस तरह के कदम के बारे में फैसला जनहित को देखते हुए लेना चाहिए। हालांकि आयोग ने इसे खारिज कर दिया है।

अभी कुछ दिन पहले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का एक ऑडियो वायरल हुआ था, जिसमें दावा किया जा रहा था कि हिंदी भाषी फैक्ट अहम है और ये बीजेपी को समर्थन दे रहे हैं। कहा जाता है कि बीजेपी को कभी हिंदी बेल्ट की पार्टी कहा जाता था लेकिन अब इसे प्रवासी मतों से फायदा मिल सकता है। एक ओर टीएमसी लगातार बीजेपी को बाहरी लोगों की पार्टी बता रही है। हालांकि, बीजेपी ने टीएमसी के इस दावे को नकारा है और कहा है कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो मिट्टी का सपूत ही मुख्यमंत्री बनेगा। इसका मतलब यही लगाया जा रहा है कि शुभेंदु अधिकारी सीएम की कुर्सी पर बैठ सकते हैं। हालांकि, इसके लिए शुभेंदु को नन्दीग्राम से चुनाव में ममता बनर्जी को पराजित करना होगा। भाजपा के लिए भी यह फैसला आसान नहीं होगा क्योंकि कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता मध्य प्रदेश का घर बार छोडकर कोलकाता में यूं ही धुनी नहीं रमा रहे हैं। उनको और उनके जैसे नेताओं को भी तपस्या का फल चाहिए। ममता बनर्जी भाषा के मुद्दे पर वोट बंटने नहीं देंगी क्योंकि, 2019 लोकसभा चुनाव के बाद और बीते साल भी बनर्जी ने हिंदी भाषी मतदाताओं के साथ मीटिंग की थी। उस समय कहा जा रहा था कि पार्टी ने इस वर्ग के बड़े हिस्से में विश्वास खो दिया है। उस दौरान उन्होंने कसम खाई थी कि वे उन्हें घर जैसा एहसास दिलाने के लिए सभी प्रयास करेंगी। हालांकि, कई लोग इस बात से सहमत नहीं हो पाए थे। राज्य की 294 सीटों पर आठ चरणों में मतदान प्रक्रिया पूरी होगी और 2 मई को मतगणना होनी है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव आधा ही बचा है, लेकिन राजनीतिक दल लोगों तक अपनी पहुंच कम नहीं होने देना चाहते। वे लगातार राज्य में अलग-अलग समुदायों से संपर्क कर रहे हैं। ऐसा ही एक समुदाय प्रवासियों का भी है। ये वो लोग हैं, जो काम या कारोबार की तलाश में कभी पश्चिम बंगाल आए थे और यहीं बस गए। राज्य में ऐसे प्रवासियों की संख्या एक करोड़ से कुछ कम है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने इन लोगों तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश की है। सैकड़ों प्रवासी दोनों दलों की बातों को सुन रहे हैं। यह वर्ग चुनाव के नतीजों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। कुछ लोगों की धारणा के मुताबिक, हिंदी भाषी लोग बीजेपी के साथ जाएंगे, जबकी टीएमसी भी इन पर अपना अधिकार जता रही है। राज्य की सीएम ने खुद इस पर काम किया। बीते साल उन्होंने छठ पूजा पर 2 दिनों के राजकीय अवकाश की घोषणा की। उन्होंने तब कहा था क्या किसी ने भी कभी यह किया है? किसी ने मुझसे नहीं कहा, लेकिन मैंने किया। मैं यह भी चाहती हूं कि राज्य में क्षेत्रीय भाषाओं के अस्पताल आएं। बीजेपी भी इस वर्ग को लेकर शांत नहीं है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा लगातार प्रवासियों तक पहुंचकर बता रहे हैं कि वे बाहरी नहीं हैं। वे बता रहे हैं कि उन्होंने बंगाल की अर्थव्यवस्था में योगदान किया है। पार्टी ने राजनाथ सिंह और स्मृति ईरानी जैसे केंद्रीय मंत्रियों को लोगों तक पहु्ंचने के लिए चुना है। एक समीक्षक का मानना है कि बीजेपी ने पहले ही 2019 लोकसभा चुनाव में हिंदी भाषियों पर पकड़ बना ली थी और यह इस चुनाव में नहीं बदलेगा। वे (बनर्जी) यह उम्मीद नहीं कर सकती कि हिंदी भाषी उनके लिए मतदान करें।

बहरहाल, यह नया मामला सामने आया है और राजनीतक दल अपना पक्ष रख रहे हैं। हरिद्वार में कुंभ स्नान को जब सीमित करने की बात साधु संन्यासी करने लगे हैं तो पश्चिम बंगाल में कोरोना के चलते मतदान के चरण भी कम किये जा सकते हैं। ममता बनर्जी ने जोर देते हुए कहा कि उनकी पार्टी ने पहले ही आठ चरणों में मतदान कराने का विरोध किया था। उन्होंने कहा, 'महामारी के प्रकोप के बीच, पश्चिम बंगाल में आठ चरण में चुनाव कराने के निर्वाचन आयोग के फैसले का हमने कड़ा विरोध किया। कोविड-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब आयोग से मेरा अनुरोध है कि आगामी सभी चरण एक ही बार में करवा लिए जाएं।' बनर्जी ने कहा, 'इससे, अब आगे लोगों को कोविड-19 की चपेट में आने से बचाया जा सकेगा। 'गुरुवार सुबह से ही मीडिया में अटकलें चल रही थीं कि विधानसभा चुनाव के 22, 26 और 29 अप्रैल को होने वाले मतदान के चरणों को एक चरण में संपन्न कराया जा सकता है। वहीं निर्वाचन आयोग ने इन अटकलों को खारिज कर दिया कि देश में कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों के मद्देनजर पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के आखिरी तीन चरण के मतदान को एक बार में कराया जाएगा।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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