सदर सीट में भाजपा को बहाना पड़ेगा पसीना
हमीरपुर। वर्ष 2017 के चुनाव में मोदी लहर के बीच हमीरपुर जिले की सदर विधानसभा सीट पर आसानी से कब्जा करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को इस बार चुनावी रणक्षेत्र में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते अशोक सिंह चंदेल को सामूहिक नरसंहार के आरोप में उम्रकैद की सजा हो गयी थी लेकिन उसके बाद उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी ने मोदी के नाम और चेहरे के बल पर चुनाव अपने पक्ष में कर लिया था। हालांकि इस बार हालात जुदा है। सदर सीट से स्थानीय प्रत्याशी के व्यवहार को भी मतदाता काफी महत्व देने को मूड में है। उधर सपा व बसपा का जनता के बीच में बढ़ रहे दबाव के चलते भाजपा के कद्दावर नेता अभी से पूरी तरह सक्रिय दिखायी दे रहे है।
हमीरपुर सदर सीट पर नजर डाले तो 1952 से लेकर लगातार चार बार सुरेंद्र दत्त बाजपेयी कांग्रेस का परचम लहराने में कामयाब रहे। 1967 में जनसंघ के बंजरंग बली ब्रम्हचारी ने कांग्रेस से सीट छीन ली। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी के ओकारनाथ दुबे ने कांग्रेस से सीट छीनकर अपनेे कब्जे में कर ली। 1980 में हुये उपचुनाव मे कांग्रेस के प्रताप नारायण दुबे ने यह सीट जनता पार्टी से छीनकर अपने कब्जे मे कर ली। इस चुनाव मे निर्दलीय प्रत्याशी अशोक कुमार सिंह चंदेल दूसरे स्थान पर रहे थे। 1985 में कांग्रेस ने प्रतापनारायण दुबे का टिकट काट कर कांग्रेस के ही जगदीश नारायण शर्मा को मैदान में लड़ाया गया और उन्होने करीब 43 फीसदी वोट पाकर जीत दर्ज करायी।
इस चुनाव में लोकदल के अशोक कुमार सिंह चंदेल दूसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव में 16 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे थे। इसके बाद 1989 में दो बार निर्दलीय प्रत्याशी अशोक सिंह चंदेल ने विधायक बनकर नया इतिहास रचा। इसी अंतराल में सदर सीट से कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता गया और दल के लिये विधायक बनना एक दिवास्वप्न हो गया। वर्ष 1991 में उपचुनाव में शिवचरन प्रजापति को बसपा से पहली मर्तवा विधायक बनने का मौका मिला। जनता पार्टी के अशोक चंदेल दूसरे स्थान पर रहे थे। उपचुनाव 1993 में जनता दल से अशोक चंदेल ने चुनाव ल़ड़ा और विधायक बने।
इसके बाद 1996 में सम्पन्न हुये चुनाव में बसपा के शिवचरन प्रजापति ने करीब 36 फीसदी मत पाकर पहले स्थान पर रहे भाजपा के बंशीधर सेंगर को 26 फीसदी मत प्राप्त हुये। इस चुनाव में निर्दल प्रत्याशी के रुप में चुनाव ल़ड रहे अशोक चंदेल चौथे स्थान पर रहे। वर्ष 2002 में बसपा के शिवचरन प्रजापति ने तीसरी मर्तवा चुनाव जीत कर सभी को चौका दिया। दूसरे स्थान पर भाजपा की साध्वी निरंजन ज्योति रही उन्हे 23.75 फीसदी मत प्राप्त हुये। इस चुनाव में 18 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे जिसमे नौ प्रत्याशी निर्दलीय भाग्य आजमा रहे थे।
वर्ष 2008 में सपा के बैनर तले अशोक सिंह चंदेल ने 43,672 मत पाकर चुनाव जीतकर बसपा से सीट छीन ली। भाजपा प्रत्याशी साध्वी निरंजन ज्योति चौथे स्थान पर रही थी। वर्ष 2012 में भाजपा की साध्वी निरंजन ज्योति ने सपा से छीनकर अपने पाले में कर ली और कुल बोटर का 27.59 फीसदी मत हासिल किया। वर्ष 2012 में शासन के परिसीमन में मौदहा विधानसभा का विलय हमीरपुर सदर व राठ सीट में हो गया। इधर बसपा के काडर विधायक शिवचरन प्रजापति को बसपा से निष्कासित कर दिया गया, उन्होने सपा का दामन थाम लिया।
भाजपा की साध्वी निरंजन ज्योति के फतेहपुर सीट से सांसद निर्वाचित होने के बाद हमीरपुर सदर सीट के उप चुनाव में सपा के शिवचरन प्रजापति वर्ष 2015 में फिर विधायक बनने मे सफल रहे। वर्ष 2017 हुये आम चुनाव में भाजपा ने अशोक सिंह चंदेल पर दाव लगाया उन्होने सपा से सीट छीन कर भाजपा के पाले में डाल दिया इधर सामूहिक नरसंहार (फाइव मर्डर) में भाजपा विधायक अशोक सिंह चंदेल को हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई इसके वाद वर्ष 2019 में सदर सीट मे हुये उपचुनाव में भाजपा ने युवराज सिंह पर दाव लगाया और उन्होने सपा के मनोज प्रजापति को पटखनी देकर सीट हासिल कर ली।
इधर भाजपा नेताओ द्वारा जनता से संपर्क न रखने पर यहा का मतदाता काफी नाराज नजर आ रहा है वही सपा सुप्रीमों के आगमन के दौरान लोगो की भीड़ व स्थानीय नेताओ द्वारा हो रही सक्रियता से भाजपा खेमें में उथल पुथल मची है हालाकि यहां के नेता मोदी के गुणगान गाकर ही चुनावी नैया पार करना चाहते है। मगर मोदी के चेहरो को यहा का स्थानीय मतदाता कितना महत्व देता है यह समय ही बतायेगा।