असमंजस में भाजपाई-जिस फैमली के खिलाफ लगाया नारा उसके लिए कैसे मांगे वोट
मुजफ्फरनगर। नगर पालिका परिषद के चुनाव की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रही है ऐसे ही भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ताओं के सामने असमंजस की स्थिति है क्योंकि मुजफ्फरनगर शहर में 23 साल से जिस स्वरूप फैमिली के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता वोट मांगते थे अब भाजपाई बनने के बाद उनके समर्थन में वोट मांगने में भाजपा का कर्मठ कार्यकर्ता हिचक रहा है।
गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर नगर पालिका परिषद सामान्य महिला के लिए आरक्षित होने के बाद भाजपा के कई कर्मठ कार्यकर्ता अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग रहे थे लेकिन भाजपा हाईकमान ने मुजफ्फरनगर की राजनीतिक फैमिली स्वरूप के गौरव स्वरूप की पत्नी मीनाक्षी स्वरूप को अपना प्रत्याशी बना दिया। इसके फाइनल होने के बाद भाजपा के आम कार्यकर्ताओं में काफी गुस्सा भी था लेकिन मीनाक्षी स्वरूप के नामांकन के बाद चुनाव प्रचार में तेजी आ गई है। 4 मई को मुजफ्फरनगर में मतदान होना है लेकिन जैसे-जैसे तारीख नजदीक आ रही है ऐसे ऐसे भारतीय जनता पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है।
उसके सामने एक तरफ जहां अपनी पार्टी की साख को बचाने की चुनौती है तो वही वह इसलिए भी असमंजस में है कि 23 साल जिस फैमिली के खिलाफ मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाकर वोट मांगे। जिनके खिलाफ नारा दिया गया कि दूध ब्रेड कहां बटेगा, खालापार में बटेगा और जिनके खिलाफ हमेशा भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता सामना करता रहा। अब उसी परिवार की प्रत्याशी के लिए वोट मांगने के लिए वह जनसंपर्क के दौरान दिखाई तो पड़ रहा है लेकिन कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी है। नाम ना छापने की शर्त पर कई कार्यकर्ताओं ने बताया कि पार्टी हाईकमान ने जिसको टिकट दिया है , उसको चुनाव लड़ाना मजबूरी है क्योंकि भाजपा का कार्यकर्ता निष्ठावान होता है लेकिन स्वरूप फैमिली के लिए खुलकर प्रचार करने में हिचकिचाहट है।
कई कार्यकर्ताओं ने कहा कि हम चुनाव प्रचार में जरूर हैं लेकिन हमारा मन चुनाव प्रचार से दूर है। अब देखना यह होगा कि भाजपा आलाकमान द्वारा कर्मठ कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर सपा से भाजपाई बने गौरव की पत्नी मीनाक्षी स्वरूप चुनाव जीतती है या नहीं, यह तो अभी मतगणना के बाद ही तय हो पाएगा लेकिन इतना जरूर है कि मीनाक्षी समरूप के प्रत्याशी बनने के बाद से भाजपाइयों में जोश की कमी है और कार्यकर्ताओं के असमंजस में होने की स्थिति में भाजपाई बहुल इलाकों में मतदान का प्रतिशत भी कम रह सकता है।