बाहुबली नेता ने चुनावी रण से वापस खींचे कदम - बेटे को उतारा मैदान में
बदायूं। उत्तर प्रदेश में बाहुबली राजनेताओं की फेहरिस्त में शामिल डीपी यादव ने सोमवार को अपना नामांकन वापस ले लिया।
जानकारों के मुताबिक 34 सालों में यह पहला मौका है जबकि डीपी यादव चुनावी मैदान से हटे हैं। उन्होने 25 जनवरी को बदायूं की सहसवान विधानसभा सीट से खुद की पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल से अपना नामांकन किया था। यादव के साथ उनकी पत्नी उर्मिलेश और बेटे कुणाल ने भी अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था। परिवार से तीन लोगो के नामांकन दाखिल करने के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया गया था लेकिन आज पति-पत्नी ने अपना नाम वापस ले लिया है और बेटे कुणाल को चुनावी मैदान में उतार दिया है। कुणाल का ये पहला चुनाव होगा जो यदु शुगर मिल के निदेशक के रूप में कार्यरत थे ।
नोएडा के छोटे से गांव शरफाबाद में एक किसान के घर पैदा हुए डीपी ने दूध के कारोबार से चीनी मिल,पेपर मिल,शराब और शराब से जुड़े अन्य कारोबार किए। वक़्त से साथ उनका रसूख और कारोबार दोनो बढ़ते गए। तीन बार विधायक ,मंत्री,लोकसभा ,राज्यसभा सांसद और अपनी खुद की राष्ट्रीय परिवर्तन दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी है।
कम समय में राजनीति की सीढ़ियां चढ़ने वाले डीपी यादव का बुरा दौर भी आया। राजनीतिक दल सार्वजनिक रूप से उनके साथ मंच साझा करने में भी हिचकने लगे। तीन बार के विधायक,मंत्री और दो बार के सांसद को किसी पार्टी से जब टिकट नही मिला तब उनको अपनी पार्टी बनानी पड़ी। 2002 में बड़े गाजे-बाजे के साथ डीपी द्वारा राष्ट्रीय परिवर्तन दल की शुरुआत की गई। डीपी खुद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और 2007 में बदायूँ के आस पास के जिलों में अपने प्रत्याशी भी उतारे लेकिन 45 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद केवल दो पर जीत मिली।
डीपी यादव सहसवान से और उनकी पत्नी बिसौली से चुनाव जीती ।डीपी ने सपा के परंपरागत सीट पर 109 वोटों से जीत दर्ज की। चुनाव के बाद डीपी ने अपनी पार्टी का विलय बसपा में कर दिया ।बसपा सरकार में डीपी ने बदायूँ जिले में अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी और सपा के गढ़ में सेंधमारी करते हुए अपने भतीजे जितेंद्र यादव को एमएलसी और अपनी सलहज को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया।
डीपी यादव के अच्छे दिन हालांकि जल्द ही वापस जाने लगे। बिसौली से उनकी पत्नी उमलेश यादव पर पेड न्यूज छपवाने का आरोप लगा, जिसे चुनाव आयोग ने गंभीरता से लिया। इसके चलते उमलेश यादव की सदस्यता समाप्त कर दी गई। ये चुनावी इतिहास का पहला मामला था और बसपा ने भी 2012 के चुनाव कुछ दिनों पहले इनसे किनारा कर लिया। 2012 के विधानसभा चुनाव में डीपी यादव ने सहसवान विधानसभा से फिर किस्मत आजमाई, लेकिन उनको शिकस्त मिली। अब रापद की हालत ये है कि पार्टी को खुद ये नहीं पता है कि संगठन के पदाधिकारी कौन हैं। जिले में भी संगठन का अता-पता नहीं है।
एक बार फिर डीपी बड़े दलो के संपर्क में रहे ,टिकट और गठबंधन दोनों की जुगत लगाई लेकिन हमेशा की तरह किसी पार्टी ने डीपी यादव को अपना मंच-झंडा नही दिया और एक बार फिर राष्ट्रीय परिवर्तन दल के टिकट पर डीपी यादव के बेटे कुणाल यादव मैदान में है।
सं प्रदीप
वार्ता