मीरापुर सीट पर जयंत को झटका देने के लिए अखिलेश जाट पर लगाएंगे दांव!
मुज़फ्फर नगर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मीरापुर विधानसभा सीट पर उप चुनाव होना है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी और आजाद समाज पार्टी ने अपने मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं। राष्ट्रीय लोक दल भी किसी अति पिछड़े समाज के व्यक्ति को चुनाव लड़ना चाहती है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के पास पश्चिम उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल के जाट मुस्लिम समीकरण को अपने पाले में करने का मौका है। अगर अखिलेश यादव मीरापुर विधानसभा सीट पर किसी जाट प्रत्याशी पर दांव लगाएंगे तो समाजवादी पार्टी और जाटों के बीच 2013 से पैदा हुई खाई कहीं ना कहीं पट सकती है । पहले पंकज मलिक फिर हरेंद्र मलिक और अब मीरापुर विधानसभा सीट पर जाट प्रत्याशी उतार कर अखिलेश यादव क्या राष्ट्रीय लोक दल का जाट मुस्लिम गणित गड़बड़ा सकते हैं, क्या समाजवादी पार्टी मीरापुर विधानसभा सीट पर तीसरी सबसे बड़ी जाट जाति के प्रत्याशी पर दांव लगाएगी, क्या अखिलेश यादव जाट और मुस्लिम समीकरण को साधने की कोशिश करेंगे, क्या अखिलेश यादव जाट प्रत्याशी उतार कर राष्ट्रीय लोकदल की चिंता बढ़ाने का काम करेंगे आखिर क्या करेंगे अखिलेश यादव।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक राजनैतिक केमिस्ट्री बड़ी मजबूत थी, जाट और मुसलमान। चुनाव कोई सा भी हो यह दोनों जिसकी तरफ हो जाते थे उस प्रत्याशी की जीत की गारंटी मान ली जाती थी लेकिन साल 2013 में जब समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे तब मुजफ्फरनगर दंगे में जाट और मुसलमान एक दूसरे के आमने-सामने थे। दंगा तो जैसे तैसे समाप्त हो गया लेकिन जाट और मुसलमान के बीच एक गहरी खाई जरूर पैदा हो गई थी। राजनीतिक हलको में अंदाजा लगाया जाने लगा था कि अब जाट और मुसलमान एक मंच पर नहीं आएंगे और समाजवादी पार्टी को जाट कभी वोट नहीं कर पाएगा लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया रहे स्वर्गीय चौधरी अजीत सिंह ने साल 2019 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर एक गठबंधन किया जिसमें सपा, बसपा, कांग्रेस सहित किसी भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं लड़ाया और अजीत सिंह राष्ट्रीय लोकदल के सिंबल पर मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े। इस चुनाव में अजीत सिंह भाजपा के संजीव बालियान से हारे जरूर मगर उन्होंने जाट और मुसलमान को एक मंच पर लाने की शुरुआत कर दी थी ।
जाट और मुसलमान के बीच घटती दूरी से सपा और राष्ट्रीय लोक दल का गठबंधन मजबूत होता चला गया। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के चंदन चौहान और अनिल कुमार को राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर पुरकाजी और मीरापुर लड़ाया गया जबकि समाजवादी पार्टी ने चरथावल विधानसभा सीट पर पंकज मलिक को टिकट देकर जाटों के बीच सेंध लगाने की शुरुआत कर दी। पंकज मलिक ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्होंने भाजपा की सपना कश्यप को हरा दिया। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी और जाट के बीच दूरी लगातार कम होती चली गई। अखिलेश यादव को पता था कि पश्चिम में जाटों को साधे बिना वह समाजवादी पार्टी को मजबूत नहीं कर पाएंगे।
इसी कड़ी में उन्होंने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर पहले से ही हरेंद्र मलिक का नाम तय कर दिया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में हरेंद्र मलिक ने भाजपा के ही संजीव बालियान के सामने मजबूत चुनाव लड़ा। हरेंद्र मलिक को जहां एक तरफ मुसलमानों का थोक में वोट मिला तो उन्होंने जाट वोटरों में भी बड़ी सेंध लगाई यानी अब मुजफ्फरनगर, बागपत और शामली में जाटों का समाजवादी पार्टी से परहेज लगभग बंद हो गया था क्योंकि कैराना लोकसभा सीट पर भी सपा प्रत्याशी इकरा हसन को जाटों की वोट मिली। जाट और समाजवादी पार्टी के बीच की खाई लगातार कम होती जा रही है। अब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के पास एक मौका बड़ा आया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश की मीरापुर विधानसभा सीट है। इस सीट पर जहां सर्वाधिक 1 लाख 30 हजार के लगभग मुस्लिम वोटर है, वही 50 हजार दलित वोटर है और तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा वोट जाटों की है । मीरापुर विधानसभा सीट पर 30 हजार जाट वोटर है। अब अखिलेश यादव अगर समाजवादी पार्टी के सिंबल पर किसी जाट प्रत्याशी को चुनाव लड़ाते हैं तो एक तरफ जहां राष्ट्रीय लोकदल का मुस्लिम जाट समीकरण समाजवादी पार्टी के पाले में आ सकता है। वहीं इसके साथ ही जाटों में अखिलेश यादव की स्वीकार्यता बढ़ सकती है। जिस कारण इस उप चुनाव में सपा को बहुत फायदा भी हो सकता है। इसके साथ ही राष्ट्रीय लोकदल के भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिलाने के साथ ही मुसलमान पूरी तरह से जयंत चौधरी से नाराज हुआ और 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमान ने एक तरफा इंडिया गठबंधन को वोट की। दूसरी तरफ जाट बिरादरी का एक बहुत बड़ा तबका भी जयंत चौधरी के एनडीए में जाने से नाराज दिखाई पड़ता है, यही वजह रही कि मुजफ्फरनगर और कैराना लोकसभा सीट पर सपा प्रत्याशियों को जाटों की वोट मिली।
राष्ट्रीय लोक दल अगर इस चुनाव में किसी अति पिछड़े को मैदान में उतरेगी और अखिलेश यादव मीरापुर विधानसभा सीट पर किसी जाट उम्मीदवार पर दांव लगाएंगे तो कहीं ना कहीं राष्ट्रीय लोकदल के जाट वोटरों में भी अखिलेश यादव बड़ी सेंध लगा सकते हैं। अखिलेश यादव के जाट प्रत्याशी उतारने से जहां एक तरफ 1 लाख 30 हजार मुस्लिम मतों के साथ-साथ 30 हजार जाट एक मंच पर आ सकता है, साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से मीरापुर विधानसभा सीट पर पिछड़े समाज के लोगों ने सपा को वोट दिया अगर उसका एक हिस्सा भी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के हिस्से में आ जाता है तो कहीं ना कहीं मीरापुर विधानसभा सीट पर आज तक चुनाव नहीं जीतने वाली समाजवादी पार्टी विजय पताका फहरा सकती है।