बिहार में भाजपा के चाणक्य की रणनीति
पटना। चिराग का कहना है कि अमित शाह ने उस समय कुछ नहीं कहा और मौन स्वीकार का लक्षण माना जाता है। इससे एक अर्थ यह भी निकलता है कि लोजपा को अलग चुनाव लड़ने का भाजपा ने मौन समर्थन दे रखा है क्योंकि चिराग पासवान कहते हैं कि सरकार वे भाजपा के साथ बनाएंगे। भाजपा ने भी चुनाव में प्रत्याशी उतारते समय जातिगत समीकरण इस तरह से फिट किये हैं जिसे दलित वोट चिराग पासवान के पास ज्यादा से ज्यादा रहें।
बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव ऐसी रणनीति के तहत लड़े जा रहे हैं जिसे समझना आसान नहीं है। इन चुनावों के मतदान से पहले ही राजग के घटक लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक रामविलास पासवान का निधन हो गया। इससे पहले ही लोजपा ने राजग से अलग हटकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। एक बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया जो लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कही थी। वे कहते हैं कि हमने जब जद(यू) से अलग रहकर चुनाव लड़ने की बात कही थी तब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी वहां मौजूद थे। चिराग का कहना है कि अमित शाह ने उस समय कुछ नहीं कहा और मौन स्वीकार का लक्षण माना जाता है। इससे एक अर्थ यह भी निकलता है कि लोजपा को अलग चुनाव लड़ने का भाजपा ने मौन समर्थन दे रखा है क्योंकि चिराग पासवान कहते हैं कि सरकार वे भाजपा के साथ बनाएंगे। भाजपा ने भी चुनाव में प्रत्याशी उतारते समय जातिगत समीकरण इस तरह से फिट किये हैं जिसे दलित वोट चिराग पासवान के पास ज्यादा से ज्यादा रहें। भाजपा ने सवर्णों पर खास फोकस किया है। बिहार में चुनाव के नतीजे कुछ भी रहें लेकिन सरकार भाजपा ही बनाती दिख रही है। राजनीति के जानकार इसे अमित शाह की बिहार में चाणक्य नीति बता रहे हैं।
लोजपा भी भाजपा का साथ देगी। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने के लिए उनके पिता और दिवंगत केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने प्रेरित किया था। उन्होंने कहा कि यह उनके पिता का सपना है। चिराग ने कहा कि वो अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे। मीडिया से खास बातचीत में चिराग ने कहा कि उनके पिता ने उन्हें कहा था कि जब वो (रामविलास) 2005 में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर सकते हैं तो तुम (चिराग) क्यों नहीं? तुम तो अभी युवा हो। चिराग बताते हैं कि अस्पताल जाने से पहले यानी दो-तीन महीने पहले ही यह तय हो चुका था कि लोजपा बिहार में अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा कि इसके पीछे पार्टी का जनाधार बढ़ाना, पार्टी का प्रसार करना तो मकसद है ही। इससे ज्यादा जरूरी है नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करना। लोजपा अध्यक्ष ने कहा कि उनके पिता भी यही चाहते थे कि नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल किया जाय। उन्होंने कहा कि पिछले 15 वर्षों में नीतीश का शासनकाल बिहार का विकास कर पाने में नाकाम रहा है। चिराग ने कहा कि उनके पिता ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अगर फिर से पांच साल के लिए नीतीश सीएम बनते हैं तो यह राज्य के लिए एक बहुत बड़ी आपदा होगी। उन्होंने कहा कि इस बात की जानकारी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय, बीजेपी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन और बीजेपी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव को भी थी क्योंकि पिछले दो-तीन महीनों में उनसे रामविलास पासवान जी की मुलाकात हुई थी और इन मुद्दों पर विस्तृत बातचीत हुई थी।
यहां पर ध्यान देने की बात है कि कई भाजपा नेता यह कह चुके हैं कि यह चिराग पासवान का फैसला है और अगर रामविलास पासवान फैसला लेने की स्थिति में होते तो लोजपा जेडीयू के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ रही होती। मौजूदा चुनावों में लोजपा ने जेडीयू के खिलाफ सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। कई सीटों पर पार्टी ने बागी भाजपा नेताओं को टिकट दिया है।
बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी भले ही जेडीयू के साथ मिलकर चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही हो, लेकिन अपने कोर वोटबैंक को कमजोर नहीं करना चाहती है। बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों के चयन में अपने कोर वोटबैंक अगड़ी जाति पर खास फोकस किया है। गत 14 अक्टूबर को बीजेपी ने 35 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है, जिसमें 28 फीसदी टिकट सवर्णों को दिए हैं। हालांकि, बीजेपी ने पहली लिस्ट में 62 फीसदी और दूसरी लिस्ट में 48 फीसदी टिकट सवर्ण समुदाय को दिया था। इस बार के चुनाव में बीजेपी ने अपने कोटे की 110 सीटों में से 50 टिकट यानी 45 फीसदी टिकट अगड़ों को देने का काम किया है।
बीजेपी ने 14 अक्टूबर को प्रत्याशियों की तीसरी सूची जारी करते हुए 35 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है, जिसमें सबसे ज्यादा 10 सवर्ण और 10 वैश्य समुदाय के प्रत्याशी हैं। 10 सवर्ण समुदाय में 3 भूमिहार, 3 राजपूत, 3 ब्राह्मण और एक कायस्थ समुदाय से प्रत्याशी उतारा है। इसके अलावा ओबीसी समुदाय से 1 कुशवाहा, 3 यादव, 6 अति पिछड़ा और 5 सीटों पर अनुसूचित जाति के प्रत्याशी उतारे हैं। बीजेपी ने वैश्य समुदाय में जायसवालों पर खास फोकस रखा है।
बता दें कि बीजेपी ने 29 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की थी, जिनमें 18 टिकट सवर्ण समुदाय को दिए थे। इसमें बीजेपी ने सात टिकट राजपूत, 6 भूमिहार और 5 ब्राह्मणों को देकर अपने कोर वोटबैंक को साधने की कवायद की है, जो कि 62 फीसदी था। इसके बाद बीजेपी ने दूसरी लिस्ट 46 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया था, जिनमें 22 सीटों पर सवर्ण समुदाय के लोगों पर भरोसा जताया था। इनमें 11 राजपूत, पांच भूमिहार, चार ब्राह्मण और दो कायस्थ हैं। इसके अलावा चार वैश्य समुदाय को भी प्रत्याशी बनाया है। बीजेपी का आंकड़ा 48 फीसदी होता है और अब 28 फीसदी टिकट दिए हैं। इस तरह से बीजेपी ने 110 सीटों में 13 टिकट महिलाओं को दिए। बीजेपी ने तीसरे चरण की सूची में छह
महिला उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है। बिहार के चुनाव मंे इस बार भाजपा की रणनीति समझना आसान नहीं। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)