चिराग पासवान के तेवर
नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दल अपनी-अपनी ताकत तौल रहे हैं। गठबंधनों में शामिल दल यह दिखाना चाहते हैं कि वे चुनावी समीकरण बनाने अथवा बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। राजनीतिक दल ही नहीं विभिन्न जातियों और धर्म सम्प्रदाय का कथित प्रतिनिधित्व करने वाले नेता भी अपना वजूद दिखाने के लिए दबाव की रणनीति अपनाने लगे हैं। इसके चलते पार्टी नेतृत्व को कठोर कदम भी उठाने पड़े । बिहार में इस बार दलित वोट बैंक में बिखराव स्पष्ट दिख रहा है। स्वयंभू दलित नेता चंद्रशेखर की भीम पार्टी राज्य की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान ने कहा कि उन्हें जदयू से न ही दूरी और न ही नजदीकी बनाने का शौक है। वे बिहार के मामलों पर बिहारी होने के नाते अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बार-बार सवाल उठा रहे हैं। राजग के दूसरे बड़े घटक जेडीयू में भी कुछ नेता अपना वर्चस्व दिखाने लगे हैं। नीतीश कुमार सरकार के मंत्री श्याम रजक पार्टी छोड़ने का संकेत दे रहे थे। उनको जद यू ने निकाल दिया। श्याम रजक ने विधायकी छोड़ दी है। उधर, मुख्य विपक्षी दल राजद में भी खींचतान चल रही है। इसी के चलते तीन विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा है। चुनाव की तारीख नजदीक आते आते अभी कई नेताओं के रुख में परिवर्तन देखने को मिल सकता है। सबसे ज्यादा चर्चा में लोजपा नेता चिराग पासवान हैं। वे नीतीश सरकार की खुलेआम आलोचना करने लगे हैं।
गत दिनों अपने संसदीय क्षेत्र जमुई के दौरे पर पहुंचे चिराग पासवान ने बिहार में कोरोना जांच को लेकर नाराजगी जताई। उन्होंने बताया कि कोरोना जांच दो माध्यमों से हो रही है. जिसमें रैपिड एंटीजन किट से आए हुए परिणाम बिल्कुल सही नहीं ठहराये जा सकते। आईसीएमआर के अनुसार कोरोना की जांच आरटीपीसीआर से बेहतर मानी गयी है। इसलिए बिहार में इसी से कोरोना जांच होनी चाहिए लेकिन बिहार में आरटीपीसीआर से कम जांच हो रही है। चिराग पासवान ने कहा कि वर्तमान में बिहार में 90 फीसदी कोरोना जांच एंटीजन किट से हो रही है। जांच आरटीपीसीआर से ही हो, इसके लिए सरकार को संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो लोग होम आइसोलेशन में हैं, उनके मामले में लापरवाही बरती जा रही है। कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें दवाइयां नहीं पहुंचाई जा रही है। चुनाव से ज्यादा बाढ़ और कोरोना से लड़ाई महत्वपूर्ण है। सरकार पर लगातार हमला करने के सवाल पर लोजपा अध्यक्ष ने कहा कि वह हमला नहीं कर रहे हैं, बल्कि जब वे जमुई के सांसद हैं तो जमुई के विकास की बात करेंगे और जब बिहार के मामले में वह पूरे प्रदेश की बात करेंगे, तो बिहारी होने के नाते बिहार के विकास की बात करना उनका फर्ज और जिम्मेदारी दोनों है। वह सही बात करते हैं तो लोगों को यह लगता है कि वह सरकार पर हमला कर रहे हैं। कोरोना काल में लगभग 5 महीने के बाद अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर जमुई पहुंचने पर लोजपा अध्यक्ष ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मुलाकात की। फिर किले के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर कोरोना की स्थिति की जानकारी लेते हुए कई निर्देश दिए। परिसदन में बैठक और मुलाकात के दौरान पप्पू यादव की पार्टी के कई कार्यकर्ताओं ने भी चिराग पासवान से भेंट की। इसप्रकार चिराग पासवान को लग रहा है कि लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार की सौदेबाजी उनके पिता राम बिलास पासवान नहीं कर पाये थे, अब विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर वे सौदेबाजी कर सकते हैं।
इस प्रकार बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं। बताया जा रहा है कि बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक अपने मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले थे। इससे पहले ही जद(यू) ने उन्हें निकाल दिया है। सूत्रों के मुताबिक वो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में शामिल हो सकते हैं। श्याम रजक के आरजेडी में शामिल होने के कयास पहले से ही लगाए जा रहे थे। श्याम रजक का नाराज होकर आरजेडी में शामिल होने की बात को बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले जेडीयू के लिए झटका माना जा रहा है। श्याम रजक एक समय में लालू प्रसाद यादव के करीबी नेताओं में गिने जाते थे। बिहार में श्याम रजक राबड़ी देवी सरकार में मंत्री भी थे। बताया जा रहा है कि श्याम रजक जेडीयू में अपनी अनदेखी से उपेक्षित महसूस कर रहे थे। कई कोशिशों के बावजूद जब हालात नहीं बदले तो अंदर खाने से ये संभावना जताई जाने लगी थी कि श्याम रजक की फिर अपनी पुरानी पार्टी आरजेडी में घर वापसी हो सकती है। विधानसभा चुनाव के नजदीक आने से पहले इसतरह की सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। सबेरे प्रदेश सरकार में मंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले श्याम रजक के जेडीयू छोड़कर राजद में जाने की खबरों ने जहां सियासत गर्मा दी, वहीं दोपहर बाद राष्ट्रीय जनता दल ने अपने 3 विधायकों को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर इस गर्माहट को और बढ़ा दिया । राजद ने जिन 3 विधायकों को पार्टी से निष्कासित किया है, उनमें महेश्वर प्रसाद यादव, प्रेमा चैधरी और फराज फातमी शामिल हैं। इन तीनों को पार्टी विरोधी गतिविधियों को लेकर राजद से निकाला गया है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और आलोक मेहता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इन तीनों विधायकों को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित किए जाने की जानकारी दी। इन विधायकों में महेश्वर प्रसाद यादव गायघाट से जबकि प्रेमा चैधरी पातेपुर से विधायक हैं। राजद की ओर से बताया गया कि पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के निर्देश पर पार्टी के संविधान के तहत इन तीनों को राजद से निष्कासित किया गया है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राजद ने कोरोना काल के दौरान बिहार सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाया। पार्टी नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करते हुए कहा कि कोरोना और बाढ़ जैसी आपदा के बीच अगर किसी ने जनता के बीच जाकर उनके दुख-दर्द को जाना है, तो वह केवल तेजस्वी यादव हैं। राजद ने कहा कि नीतीश कुमार के शासनकाल में बिहार में अपराध चरम पर पहुंच चुका है। राजद शासन के दौरान बिहार अपराध के मामले में जहां 26वें स्थान पर था, वहीं आज देशभर में यह 23वें स्थान पर है।
इधर, बिहार विधानसभा चुनाव में भीम आर्मी के संस्थापक और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद की एंट्री हो गई है। चंद्रशेखर ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए ऐलान किया कि उनकी पार्टी आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है।
चंद्रशेखर के चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा के बाद अब बिहार की राजनीति में दलित वोट बैंक की सियासत गरमाने लगी है। चंद्रशेखर के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद जिन राजनीतिक दलों की धुकधुकी सबसे ज्यादा बढ़ चुकी है, उनमें लोक जनशक्ति पार्टी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा है। बिहार में मुख्यतः दलित वोट बैंक की राजनीति करने वाली लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान फिलहाल एनडीए गठबंधन का हिस्सा है। वहीं, महागठबंधन में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी शामिल हैं, जिनका भी कोर वोट बैंक दलित है। सवाल उठने लगे हैं कि चंद्रशेखर आजाद के बिहार चुनाव में उतरने से किसको फायदा होगा और किसको नुकसान? बिहार में अगर दलित वोट बैंक पर नजर डालें तो इसकी संख्या तकरीबन 15 फीसदी है। पिछले कुछ सालों में देखें तो बिहार की राजनीति में अब तक दलित वोट बैंक पर नीतीश कुमार और रामविलास पासवान का कब्जा रहा है। बिहार में दलित आबादी 22 उपजाति में बंटी हुई है।
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)