हेट स्पीच है जनतंत्र में कैंसर

हेट स्पीच है जनतंत्र में कैंसर

नई दिल्ली। अमेरिकी पत्रिका वाॅल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट को यदि सियासत से अलग रखा जाए तो यह कहने में कोई संकोच नहीं होगा कि हेट स्पीच अर्थात् नफरत फैलाने वाले बयान लोकतंत्र में कैंसर के समान है। लोकतंत्र जनता को बोलने की आजादी देता है अर्थात अपने विचार आप प्रकट कर सकते हैं लेकिन उन विचारों से किसी अन्य को परेशानी होती है, कोई व्यक्ति या समाज आहत होता है तो ऐसी अभिव्यक्ति को स्वतंत्रता कैसे दी जा सकती है? यह तो वही बात हुई कि आप अपने घर में आग इसलिए लगाने का अधिकार रखते हैं कि वह आपका घर है लेकिन आपके घर से लगे मकान भी तो जल जाएंगे। इसलिए आपको अपने घर में भी आग लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। आप अपने घर को सजा सकते हैं, फूलों की महक दूर तक जाएगी। आपकी तारीफ होगी। इसलिए आपका बयान आग की तरह नहीं बल्कि फूलों की खुशबू की तरह होना चाहिए। आजकल सोशल मीडिया का जमाना है और सोशल मीडिया पर ही यह आरोप लगा कि उसने हेट स्पीच पर समुचित कार्रवाई नहीं की। इसी बात को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सत्तारूढ़ भाजपा पर आरोप लगाया कि उसने सोशल मीडिया पर भी दबाव बना रखा है। इसके प्रतिउत्तर में भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। राजनीतिक बहस में यह मुद्दा उपेक्षित नहीं होना चाहिए कि हेट स्पीच से कैसे बचा जाए। यह हेट स्पीच हमारे लोकतंत्र को गंभीर रूप से बीमार कर सकती है।

भारतीय जनता पार्टी के नेता राजा सिंह की एक कथित फेसबुक पोस्ट को लेकर भाजपा और कांग्रेस में जंग छिड़ गयी है। कांग्रेस की तरफ से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोले हैं तो भाजपा की तरफ से जवाबी कार्रवाई का मोर्चा रविशंकर प्रसाद ने संभाल रखा है। इस बीच पूरे विवाद पर फेसबुक का बयान भी सामने आ गया है। फेसबुक के प्रवक्ता ने कहा है कि हम ऐसे भाषण और कंटेंट पर रोक लगाते हैं जो हिंसा भड़काता है। प्रवक्ता ने यह भी कहा कि हम निष्पक्षता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रक्रिया का नियमित ऑडिट भी करते हैं। फेसबुक के प्रवक्ता की यह सफाई अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने तरल कर दी है। वाॅल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि 'फेसबुक ने हेट स्पीच के नियमों के तहत भाजपा नेता पर कार्रवाई नहीं की। वाॅल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक फेसबुक को डर था कि भारत में उसका आपरेशन प्रभावित हो सकता है। मामला व्यवसाय से जुड़ा है तो सहज ही लोगों को विश्वास भी हो जाता है। कांग्रेस अब इसे मुद्दा बना चुकी है। राहुल गांधी कहते हैं कि भाजपा और आरएसएस का भारत में फेसबुक और वाट्सअप पर कब्जा है। वे इसके जरिए फेक न्यूज और नफरत फैलाने का काम करते हैं। राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया है कि भाजपा और आरएसएस फेसबुक और वाट्सअप के जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने का काम करते हैं।

यह विवाद अमेरिकी पत्रिका वाॅल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट से शुरू हुआ था। रिपोर्ट में कहा गया कि भाजपा नेता टी. राजा ने अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों को गोली मार देनी चाहिए। इतना ही नहीं टी. राजा ने मुसलमानों को देशद्रोही बताया था और मस्जिद गिराने की धमकी दी थी। वाॅल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार इसका विरोध फेसबुक की कर्मचारी ने किया था और इसे कम्पनी के नियमों के खिलाफ माना था। फेसबुक के प्रवक्ता ने भी यह बात कही है कि हम हेट स्पीच और ऐसे कंटेंट पर रोक लगाते हैं जो हिंसा भड़काता है। फेसबुक की तरफ से यह भी कहा गया है कि हम यह नीति वैश्विक स्तर पर लागू करते हैं। हम किसी की राजनीतिक स्थिति या किसी खास पार्टी जिससे नेता संबंध रखता है, उस बात को नहीं देखते है। सवाल उठता है कि टी. राजा के बयान पर जब फेसबुक की एक कर्मचारी ने विरोध भी किया, तब भी कम्पनी ने कोई ऐक्शन क्यों नहीं लिया?

सवाल यह भी महत्वपूर्ण है कि फेसबुक ने अगर कोई ऐक्शन नहीं लिया तो इसका यह अर्थ राहुल गांधी ने क्यों निकाल लिया कि भाजपा और आरएसएस ने उसे अपने कब्जे में कर रखा है? राहुल गांधी के पास इस बात का प्रमाण होना चाहिए कि भाजपा और आरएसएस की तरफ से फेसबुक और वाट्सअप को कोई विशेष सुविधा दी जा रही है। भारत सरकार ने चीन से विवाद के चलते चीन के सोशल मीडिया को जरूर प्रतिबंधित कर रखा है। भाजपा की तरफ से केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए इस बात को तो नहीं उठाया लेकिन इतना जरूर कहा कि आप (राहुल गांधी) चुनाव से पहले डेटा को हथियार बनाते हुए रंगे हाथ पकड़े गये थे। रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि कैम्ब्रिज एनालिटिका और फेसबुक से आपका गठजोड़ पकड़ा गया था।

यह विवाद अभी और बढ़ेगा लेकिन इसका समाधान खोजता हुआ कोई नजर नहीं आ रहा है। फेसबुक ने कहा है कि उसे अभी इस दिशा में कुछ और करने की जरूरत है। इसका तात्पर्य उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा है और वाॅल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट को आधारहीन नहीं कहा जा सकता। हमारे देश में भी विधि आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में हेट स्पीच या घृणा वाक का दायरा बढ़ाने की अनुशंसा की है। विधि आयोग के अनुसार हेट स्पीच के अन्तर्गत नस्ल, जाति, लिंग, यौन उन्मुखता (सेक्सुअल ओरियंटेशन) आदि के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ घृणा फैलाने के कृत्य शामिल हैं। भय या घृणा फैलाने वाले अथवा हिंसा को भड़काने वाले भाषण का लिखित रूप में या बोलकर अथवा संकेत द्वारा प्रेषित किया जाना भी हेट स्पीच है।

इस प्रकार हेट स्पीच या घृणा वाक भाषण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समक्ष चुनौती उत्पन्न करता है। इससे साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ता है और देश का धर्मनिपेक्ष ढांचा प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। इसका सबसे बुरा प्रभाव युवाओं पर पड़ता है। किसी भी राष्ट्र अथवा समाज में प्रगति के वाहक युवा ही होते हैं। हेट स्पीच से युवा वर्ग में अतिवाद (कट्टरता) को बढ़ावा मिलता है। माना जाता है कि इसी प्रकार की स्पीच से कुप्रभावित होकर युवा कश्मीर में आतंकवादी बने। देश के अन्य भागों में नक्सलवादी या चरमपंथी भी इसी तरह के भाषण से बने हैं। यह भी मानना है कि हेट स्पीच से अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा की भावना बढ़ती है। इसीलिए विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि घृणा फैलाने पर रोक के लिए भारतीय दंड संहिता में संशोधन कर नई धारा 153-सी जोड़ी जाए। इसके लिए आयोग ने दो साल की कैद और जुर्माने का भी प्रावधान किया है।

कुल मिलाकर यही कहा जाएगा कि इस मामले को राजनीति तक ही सीमित न रखा जाए बल्कि इस पर कड़ाई से रोक लगे। सोशल मीडिया अगर अपने 'धर्म' का ठीक से पालन नहीं कर रहा है तो उसे भारत के लोकतंत्र में कोई जगह न दी जाए क्योंकि ऐसा मीडिया लोकतंत्र को कैंसरग्रस्त कर रहा है।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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