सियासी जमीन पर रजनीकांत का लुंगी डांस

कयास तो सालों से लगाए जा रहे थे कि दक्षिण का थलाइवर यानि राजा कब सियासत में आकर लुंगी डांस करेगा। कयासों पर विराम लगाते हुए साल की अंतिम तिथि को उसने सियासत में आने का ऐलान कर दिया। उनके ऐलान के साथ ही स्थानीय राजनीति में भूकंप आ गया। सबको पता है तमिलनाडु की सियासी मंडी में रजनीकांत के आने से कइयों की राजनीतिक दुकानों पर ताले पड़ जाएंगे क्योंकि दक्षिण भारत की राजनीति से ताल्लुक रखने वाले सभी मतदाताओं का लगाव फिल्मी सितारों से भावनात्मक रहा है। रजनीकांत बड़े फिल्मी सितारे हैं। हालांकि वहां की सियासत में सिनेमा से जुड़े लोगों का आना कोई नई बात नहीं है। इसलिए दक्षिण भारत में रूपहले पर्दे के भगवान कहे जाने वाले सुपरस्टार शिवाजी राव गायकवाड़ उर्फ रजनीकांत का राजनीति में आने का ऐलान करना पूर्व के सिलसिले को आगे बढ़ाना मात्र है। लेकिन एक बात सच है उनके आने से तमिलनाडु की राजनीति नई दिशा में खुद को करवट लेती महसूस करेगी।
पूरी दुनिया जानती है कि दक्षिण के लोग रजनीकांत से कितना प्यार करते हैं। जब उनकी फिल्में सिनेमाघरों में आती हैं तो उनके चाहने वालों की दीवानगी देखने लायक होती है। सर्वविदित है कि दक्षिण भारत की राजनीति पर सिनेमा के लोगों का प्रभाव सदियों से रहा है। सीएन अन्नादुराई से शुरूआत होके रजनीकांत तक आ पहुंची। अन्नादुराई तमिनलाडु के पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो एक राजनीतिज्ञ के अलावा एक मशहूर तमिल फिल्म लेखक व कलाकार हुआ करते थे। उनके बाद एमजी रामचंद्रन, जानकी रामाचंद्रन, एनटी रामाराव, जयराम जयललिता, चिरंजीवी और एम करुणानिधि आदि का संबंध सिनेमा से रहा। एम करुणानिधि बतौर पटकथा लेखक फिल्मों से जुड़े रहे और तमिल फिल्मी इतिहास पर उन्होंने कई किताबें भी लिखीं। वह राज्य के पांच बार मुख्यमंत्री रहे।
निश्चित रूप से रजनीकांत का राजनीति में आना दक्षिण की सियासत के उस सूखे को भरेगा जो मेगास्टार के लिए हमेशा से खाली रहा है। इसी सोच के साथ रजनीकांत राजनीति के अखाड़े में कूदे हैं। यह भी सच है उन्हें चित करना किसी के बस की बात नहीं होगी। जहां वह खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू हो जाती हैं। प्रदेश के लोगों में उनके नाम की दीवानगी है। वैसे देखा जाए तो रजनीकांत के राजनीति में आने के कयास सालों से लगाए जा रहे थे। लोग इस उम्मीद में बैठे हैं कि मुख्यमंत्री जयललिता के निधन से प्रदेश की राजनीति में मेगास्टार छवि की चमक की रौशनी जो धुंधली हुई है उसकी भरपाई सुपरस्टार रजनीकांत के उदय से पूरी होगी। राजनीति में आने के उनके एलान ने दूसरे दलों के तोते उड़ा दिए हैं। पूरे प्रदेश में खलबली मच गई है। तमिलनाडु में करीब ढाई वर्ष बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। आगामी चुनाव में रजनीकांत ने सभी 234 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। हालांकि इससे पहले प्रदेश में निकाय चुनाव भी होने हैं पर, उनमें भाग लेने से फिलहाल इनकार किया है। विधानसभा व लोकसभा चुनाव तक पार्टी-संगठन को मजबूत करने का काम करेंगे।
संख्याबल के आंकड़ों पर गौर करें तो तमिलनाडु में इस वक्त रजनीकांत के समर्थकों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस लिहाज से उन्हें हराना मुश्किल होगा। समर्थकों को इस बात की तसल्ली अभी से है कि उनकी जीत एकतरफा होगी। उनके समर्थक तो सालों से उन्हें राजनीति में आने का आग्रह कर रहे थे लेकिन आखिरकार समर्थकों का इंतजार साल के आखिरी दिन खत्म हुआ। रजनीकांत ने साल के अंतिम दिन चेन्नई में अपने फैंस के सामने राजनीति में आने का ऐलान कर दिया। जैसे ही उन्होंने घोषणा की तो फैंस खुशी से झूमने लगे। चारों तरफ मिठाइयां बंटने लगीं। उस मौके पर रजनीकांत ने कहा है कि वह कायर नहीं हैं। प्रदेश की भलाई के लिए ही वह राजनीति में अगली पारी खेलेंगे। रजनीकांत को तमिलनाडु की आवाम थलाइवा कहकर पुकारती है। थलाइवा का अर्थ मुखिया या बॉस होता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वह राजनीति में भी अपार बुलंदियां हासिल करेंगे।
देखा जाए तो सुपरस्टार रजनीकांत का राजनीति से लगाव हमेशा से रहा है। रजनीकांत ने कभी चुनाव तो नहीं लड़ा, लेकिन वह कभी सियासत से दूर भी नहीं रहे। जब भी चुनाव आते, तो उनके लाखों दीवाने फैन इंतजार करते हैं कि वह किसको समर्थन देंगे। रजनीकांत सियासत, उसकी गुटबाजियों और समर्थन-विरोध के खेल से अछूते नहीं रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से उनका कहीं न कहीं कनेक्शन रहा है। सन् 2002 में रजनीकांत ने कावेरी जल मुद्दे पर एक राजनीतिक बयान दिया था। उस मुद्दे पर उन्होंने विरोध प्रदर्शन भी किया था। कर्नाटक सरकार से सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने की मांग करते हुए उन्होंने करीब दस घंटे का अनशन भी किया था। अनशन में उनके साथ सभी विपक्षी दलों के कई नेता और तमिल फिल्म इंडस्ट्री की पूरी जमात उनके साथ खड़ी थी। ये घटना प्रत्यक्ष गवाही देने के लिए पर्याप्त हैं कि उनका राजनीति से जुड़ाव कितना रहा होगा। राजनीति में कूदने का उन्हें सही समय का इंतजार था। और वह मौका अब उन्हें मुकम्मल लगा। दक्षिण की राजनीति में मेगास्टार छवि की भरपाई रजनीकांत खुद की मौजूदगी से पूरा करना चाहते हैं।
एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि रजनीकांत अकेले चुनाव लड़ेंगे या किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन करेंगे। भाजपा के साथ वह शायद ही जाएं क्योंकि राजनीति में आने के ऐलान के वक्त उन्होंने भाजपा को खूब लताड़ा। 68 वर्षीय रजनीकांत ने भाजपा का नाम न लेकर उस पर देश में गलत राजनीति करने का आरोप लगाया है। उनका मानना है कि लोकतंत्र की आड़ में एक राजनीतिक दल अपने ही लोगों को लूट रहा हैं। वह खुद को वर्तमान राजनीतिक प्रणाली में बदलाव के पक्षधर समझते हैं। रजनीकांत ने अपने प्रशंसकों से उनकी राजनीतिक पार्टी के गठन तक राजनीति या दूसरी पार्टियों के बारे में बात नहीं करने का आग्रह किया। समर्थकों से उन्होंने एक बात और कही है कि उनका पहला कार्य अपने बहुत से अपंजीकृत प्रशंसक क्लबों को मूल संस्था के साथ पंजीकृत करना है। यानि पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरने का मन बनाया है।
रजनीकांत के राजनीति में आने से स्थानीय पार्टियों के अलावा केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। भाजपा ने तमिलनाडु में खुद को स्थापित करने का टूजी घोटालों में आरोपियों को मुक्त करके जो पासा फेंका था वह उल्टा होता दिख रहा है। भाजपा तमिल वोटरों की किसी भी सूरत में सहानुभूति बटोरना चाहती थी। श्रीलंका में प्रधानमंत्री का तमिल श्रमिकों के साथ चाय पर चर्चा कर उन्हें रिझाना आदि पर पानी फेरने जैसा हो गया। प्रदेश में हाल ही में आए विनाशकारी भूकंप से आहत हुए पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाना भी काम नहीं आया। रजनीकांत की राजनीति में दखल ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। हालांकि भाजपा चाहेगी कि रजनीकांत उनके साथ चुनाव लड़ें। रजनीकांत की घोषणा के बाद से ही इस बात की चर्चा होने लगी है।
रमेश ठाकुर( हिफी)
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