रविवार विशेष- सादगी व ईमानदारी से राष्ट्रपति पद तक पहुंचे कलाम
राष्ट्रपति कलाम सादगी, मितव्ययिता और ईमानदारी जैसे उन गुणों की मिसाल थे जो आज के राजनीतिक परिदृश्य में दुर्लभ हो चले हैं। एक बार कलाम का पूरा परिवार उनसे मिलने दिल्ली आया। वे कुल 52 लोग थे, जिनमें उनके 90 साल के बड़े भाई से लेकर उनकी डेढ़ साल की परपोती भी शामिल थी। स्टेशन से सभी को राष्ट्रपति भवन लाया गया, जहां वह 8 दिन तक भवन में रुके। उनके आने-जाने से लेकर खाने-पीने तक, यहां तक की एक प्याली चाय का खर्चा भी कलाम ने अपनी जेब से दिया। इतना ही नहीं कलाम ने अपने अधिकारियों का भी साफ तौर पर निर्देश दिया था कि इन मेहमानों के लिए राष्ट्रपति भवन की कारें इस्तेमाल नहीं की जाएंगी। रिश्तेदारों के खाने-पीने के सारे खर्च का ब्यौरा अलग से रखा गया। और जब वह सभी वापस गए तब कलाम ने अपने निजी खाते से 3,52,000 रुपये का चेक काट कर राष्ट्रपति कार्यालय को भेजा।जहां नेता छुट्टियों पर घूमने जाने के लिए बेकरार रहते हैं वहीं, क्या आप जानते है कि अब्दुल कलाम ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में सिर्फ दो छुट्टियां ली थीं। एक बार जब उनके पिता की मौत हुई थी और दूसरी, जब उनकी मां की मौत हुई थी।जब डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति चुना गया था तो उनके स्वागत के लिए जोरो-शोरो से तैयारियां की गईं, राष्ट्रपति भवन को खूबसूरती से सजाया गया। वहीं ये तमाम तैयारी इसलिए की गई थीं कि देश के नए राष्ट्रपति का सामान ठीक से भवन में रखा जा सके लेकिन इस बात को काफी कम लोग जानते हैं कि जब अब्दुल कलाम वहां पहुंचे तो वो सिर्फ 2 सूटकेस लेकर पहुंचे थे। एक सूटकेस में उनके कपड़े तथा दूसरी में उनकी प्रिय किताबें थीं।
देश के 11वें राष्ट्रपति कलाम ने कभी किसी का उपहार नहीं रखा। एक बार किसी ने उन्हें 2 पेन तोहफे में दिए थे जिन्हें उन्होंने राष्ट्रपति पद से विदा लेते वक्त खुशी से लौटा दिए थे। उनका कहना था कि उनके पिता ने सिखाया है कि कोई उपहार कबूल मत करो।