विश्लेषण- सिवालखास सीट पर जितेंद्र सतवाई ने खोला था भाजपा का खाता
लखनऊ। 2022 का चुनावी रण थम चुका है। भाजपा ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 35 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए यूपी में दूसरी बार सत्ता पा ली है । गठबंधन और भाजपा के बीच हार जीत के समीकरण के चलते कई सीटों का विश्लेषण किया जा रहा है, कि इन सीटों पर गठबंधन या भाजपा के प्रत्याशी क्यों हारे। ऐसी ही विधानसभा सीट है, मेरठ जनपद की सिवालखास।
यहां पर भाजपा ने वर्तमान विधायक जितेंद्र सतवाई का टिकट काटकर मनिंदर पाल सिंह को चुनाव लड़ाया था। इधर गठबंधन से गुलाम मोहम्मद तीसरी बार अपनी ताल ठोक रहे थे। आमने-सामने के हुए चुनाव में गठबंधन के गुलाम मोहम्मद ने भाजपा के मनिंदर सिंह को चुनाव हरा दिया है।
1974 में वजूद में आई सिवालखास विधानसभा सीट को सुरक्षित रखा गया था। पहली बार इस विधानसभा सीट पर रामजी लाल शाक्य ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी के हरि सिंह चुनाव जीते, तो 1980 के चुनाव में फिर से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में हेमचंद निमेष ने जीत हासिल की। 1985 में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए नानक चंद को चुनाव लड़ाया तो उन्होंने भी जीत हासिल की।
1989 में जनता दल ने चरण सिंह को चुनावी मैदान में उतारा तो चरण सिंह ने इस विधानसभा सीट पर हैट्रिक लगाते हुए 1989, 1991 और 1993 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की।
1996 में सिवाल खास विधानसभा सीट पर भारतीय किसान कामगार पार्टी के टिकट पर बनारसी दास चंदाना ने जीत हासिल की। उसके बाद 2002 में राष्ट्रीय लोक दल वजूद में आया तो रणवीर राणा को इस विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ाया गया। रालोद के टिकट पर रणवीर राणा चुनाव जीते। 2007 में जब बसपा की लहर उत्तर प्रदेश में चल रही थी, तब इस सीट पर बसपा के विनोद कुमार हरित ने चुनाव जीता था।
2012 में विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद सिवालखास विधानसभा सीट सुरक्षित से हटकर सामान्य में आ गई थी। 2012 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर गुलाम मोहम्मद ने चुनाव लड़ा और वह जीत भी गए। तब गुलाम मौहम्मद को 58852 वोट मिले थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने जहां गुलाम मोहम्मद को फिर से चुनावी मैदान में उतारा तो भाजपा ने इस बार जितेंद्र सिंह सतवई को अपने सिंबल पर चुनाव मैदान में उतार दिया। 1974 से 2017 तक भाजपा इस विधानसभा सीट पर अपना खाता नहीं खोल पाई थी, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में जितेंद्र सतवाई ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर इस सीट पर भाजपा का खाता खोल दिया था। जितेंद्र सिंह को इस विधानसभा चुनाव में 72842 वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी के गुलाम मोहम्मद को 61421 वोट मिले थे ।
2017 के विधानसभा चुनाव में जितेंद्र पाल सिंह ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर विधानसभा में लगातार सक्रिय होकर काम करना शुरू कर दिया था। बताया जाता है कि उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में कई बड़े विकास कार्यों को कराने में भी अपनी अहम भूमिका निभाई थी। चुनाव आते आते जितेंद्र सिंह को लग रहा था कि इस बार फिर भाजपा उन्हें ही टिकट देगी, इसलिए वे लगातार विधानसभा में जाकर अपने पक्ष में वोट भी मांग रहे थे लेकिन अचानक नामांकन से पहले भाजपा नेतृत्व ने जितेंद्र पाल सिंह का टिकट काटकर उनकी जगह मनिंदर पाल सिंह को चुनावी मैदान में उतार दिया।
मनिंदर सिंह के टिकट की घोषणा होते ही हालांकि भाजपा के स्थानीय नेताओं ने भी विरोध किया था कि मनिंदर पाल सिंह सिवालखास विधानसभा से बाहर के रहने वाले हैं। इसलिए उनका चुनाव कमजोर हो सकता है लेकिन अनुशासित माने जाने वाली भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व के खिलाफ कोई ज्यादा बोल नहीं पाया था। मनिंदर सिंह चुनाव लड़े लेकिन आखिर में उन्हें सपा रालोद गठबंधन के गुलाम मोहम्मद से तब हार का सामना करना पड़ा, जब रालोद का कोर वोटर कहे जाने वाले वाला जाट समाज गुलाम मोहम्मद के टिकट का विरोध कर रहा था। यही वजह रही कि मनिंदर पाल सिंह अपनी कमजोर रणनीति के चलते भाजपा जैसे मजबूत संगठन एवं चुनाव चुनाव संचालन समिति के चलते भी गुलाम मोहम्मद से चुनाव हार गए।