धर्म निरेपेक्षता को विश्वास की बात मानते थे प्रणब दा

धर्म निरेपेक्षता को विश्वास की बात मानते थे प्रणब दा

भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न प्रणव मुखर्जी का देहावसान हो गया। वे 10 अगस्त को ब्रेन सर्जरी के लिए सेना के रिसर्च व रेफरल हॉस्पिटल, दिल्ली में भर्ती हुए थे। सर्जरी से पूर्व कोरोना टेस्ट में वे कोरोना पॉजिटिव भी पाए गए थे। लगभग बीस दिन मौत से जूझते हुए अंततः उनका देवलोक गमन हो गया। पहले क्लर्क, अध्यापक व 1969 से सार्वजनिक जीवन में प्रवेश, राष्ट्रपति पद तक की यात्रा उनकी विद्वता, परिस्थितियों से सामंजस्य बनाने की कला, राजनीतिक शिष्टाचार, कुशल प्रशासक की पारी के लिए याद की जाएगी। धर्म निरपेक्षता के प्रतिबद्धता अपने आचरण से प्रकट करने के साथ ही वे अपनी जन्मभूमि तथा परम्परागत पारिवारिक सनातनधर्मी संस्कारों से अभिन्न रूपेण जुड़े रहे। अभी कुछ ही दिन पूर्व उन्होंने अपने पुत्र अभिजीत मुखर्जी को फोन कर अपने गांव से कटहल लाने को कहा था, पुत्र ने पिता का मान रखते हुए गांव से पका कटहल लाकर पिता को खिलाया था। इससे पता चलता है कि उनका गांव उनकी सांसों में बसा था। स्मरण रहे प्रणब मुखर्जी चार दिन के लिए सब कुछ भूलकर पुरोहित बन जाते थे। विदेशमंत्री रहे हों या वित्तमंत्री या राष्ट्रपति चार दिन के लिए प्रणब मुखर्जी परंपरागत प्रिंस सूट और नेता मार्का धोती-कुर्ता व बंडी को त्यागकर पुरोहित वाली धोती व उत्तरीय धारण कर लेते थे। यह अवसर होता था , शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा का। सक्रिय राजनीति की भागदौड़ से दूर प्रति वर्ष नवरात्र के अवसर पर समय निकालकर अपने गृह जिला बीरभूम के गांव किन्नहर के मिराती में देवी की आराधना करने पहुंच जाते थे। इस दौरान वह अपने क्षेत्र के लोगों से भी मिलना और बातचीत करना नहीं भूलते। प्रणब दा के पूर्वजों ने मिराती गांव में वर्षो पहले दुर्गा मां की पूजा शुरू की थी। उनके यहां 117 साल से पूजा होती आ रही है। आजीवन उन्होंने इस परम्परा को निभाया। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने जनता से अपना जुड़ाव जाहिर करते हुए महामहिम सम्बोधन राष्ट्रपति के लिए बंद कराया। आजकल असहिष्णुता का दौर चल रहा है, धर्म निरपेक्षता को अपने प्रतिपक्षी को गाली देने के लिए हथियार के रूप में उपयोग किया जा रहा है । ऐसे समय प्रणब दा का आचरण सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों के लिए मानक हो सकता है। राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वार्षिक कार्यक्रम में उद्बोधन के लिए प्राप्त आमंत्रण को स्वीकार करने पर जबरदस्त विरोध के बावजूद वे अपनी बात और डटे रहे। वहां गए, दृढ़तापूर्वक अपनी बात रखी। 7 जून, 2018 को संघ के मंच पर ही धर्म निरपेक्षता , लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया।

स्वतन्त्रता संग्राम में कांग्रेस के सदस्य रहे , संघ संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार के योगदान को स्वीकार करते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विजिटर बुक में लिखा- मां भारती के महान सपूत थे केशव बलिराम हेडगेवार। संघ के मंच पर दिया गया उद्बोधन आज भी प्रासंगिक है । प्रणब दा ने शुरुआत करते हुए कहा था कि नेशन (देश), नैशनलिज्म (राष्ट्रवाद) और पैट्रियॉटिज्म (देशभक्ति) पर बात करने आए हैं। उन्होंने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है। प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि आजादी के बाद मिला लोकतंत्र हमारे लिए गिफ्ट नहीं है। भारतीय संविधान केवल प्रशासन के लिए ही नहीं है बल्कि करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधि है। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान अस्तित्व में आया। हमने संप्रभु लोकतांत्रिक राज्य में भरोसा जताया। हमारे यहां संवैधानिक देशभक्ति है। यह महान आश्चर्य है कि 1.3 अरब लोग, जो 122 से अधिक भाषाएं बोलते हैं, 1600 बोलियों का उपयोग करते हैं, सात प्रमुख धर्मों की प्रैक्टिस करते हैं और तीन प्रमुख जातीय समूहों से आते हैं, एक सिस्टम, एक झंडे, और एक पहचान भारतीयता के अधीन रहते हैं। उन्होंने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता हमारे विश्वास की बात है। हम बहस करते हैं, संवाद जरूरी है। समस्याओं के समाधान की समझ बातचीत से ही विकसित होगी। आज हमारे चारों तरफ हिंसा बढ़ रही है। सामाजिक तानाबाना टूट रहा है, हम हिंसा देख रहे हैं। हम लोगों को पब्लिक डिस्कोर्स को हिंसा से मुक्त कराना होगा। अहिंसा वाला समाज ही लोगों की लोकतंत्र में भागीदारी सुनिश्चित करेगा। देश की अर्थव्यवस्था तो तेजी से बढ़ रही है लेकिन नागरिकों को खुशी नहीं मिल रही है। हम हैपीनेस रैंकिंग में 133वें नंबर पर हैं। अगर आप संसद में जाएंगे तो गेट नंबर 6 पर लिफ्ट के ऊपर संस्कृत में एक श्लोक लिखा है। उन्होंने वहां लिखे कौटिल्य के श्लोक श्प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम, नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितमश् का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रजा के हित और सुख में भी राजा का सुख निहित है। आधुनिक लोकतंत्र के पैदा होने से बहुत पहले कौटिल्य ने लोगों को केंद्र में रखा। 17वीं सदी में वेस्टफेलिया के समझौते के बाद अस्तित्व में आए यूरोपीय राज्यों से भी प्राचीन हमारा राष्ट्रवाद है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय विचारों से अलग भारत का राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है और हमने पूरी दुनिया को एक परिवार के रूप में देखा है। मुखर्जी ने कहा कि हमारे देश की राष्ट्रीय पहचान किसी खास धर्म, भाषा या संस्कृति से नहीं हो सकती। प्राचीन भारत में महाजनपद से शुरू कर देश की एकता के अनुक्रम में मौर्य, गुप्त, मुस्लिम, कंपनी और ब्रिटिश शासन के समय के इतिहास का भी उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन सबके बीच में एक बात याद रखनी चाहिए कि 2500 साल तक लगातार शासन बदलते रहे लेकिन 5000 सालों पुरानी हमारी सभ्यता नहीं टूटी, बची रही। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की पंक्तियां- मानवता की न जाने कितनी धाराएं पूरे विश्व से आईं और उस महासागर में समा गईं जिसे हम भारत कहते हैं , का उल्लेख करते हुए प्रणव मुखर्जी ने चेताया कि धर्म, मतभेद और असिहष्णुता से भारत को परिभाषित करने का हर प्रयास देश को कमजोर बनाएगा। असहिष्णुता भारतीय पहचान को कमजोर बनाएगी। राष्ट्रीय पहचान और भारतीय राष्ट्रवाद सार्वभौमिकता और सह-अस्तित्व से पैदा हुआ है।

प्राचीन भारत की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा समाज शुरू से खुला रहा है। सिल्क और स्पाइस रूट जैसे माध्यमों से संस्कृति, विचारों सबका आदान-प्रदान हुआ। भारत से होकर हिंदुत्व के प्रभाव वाला बौद्ध धर्म सेंट्रल एशिया, चीन तक पहुंचा। मेगस्थनीज, फाहयान जैसे विदेशी यात्रियों ने प्राचीन भारत के प्रशासन और बढ़िया इन्फ्रास्ट्रक्चर की तारीफ की। तक्षशिला और नालंदा का उदाहरण देते हुए कहा कि प्राचीन भारत के यूनिवर्सिटी सिस्टम ने दुनिया पर राज किया। उन्होंने संघ को सीख दी कि आप लोग अनुशासित और ट्रेंड है, शांति और सौहार्द के लिए काम करें। अपनी आत्मकथा में उन्होंने धर्म निरपेक्षता के खोखलेपन को उजागर किया। उन्हें कांग्रेस या गांधी परिवार द्वारा अपने प्रति किए गए व्यवहार पर मलाल रहा। गोस्वामी तुलसीदास की पंक्तियाँ- पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं, ते नर न घनेरे , प्रणब दा पर चरितार्थ होती हैं। नागपुर- भाषण देश के लिए दिशा बोधक है, इस पर अमल करना, पूर्व राष्ट्रपति को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। मानवेंद्रनाथ-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा

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