फिर से जाट मुस्लिम गठजोड़ के नायक बने जयंत चौधरी - RLD का बढ़ रहा कुनबा
लखनऊ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम एक ऐसा गठजोड़ था जो किसी भी राजनीतिक दल या संगठन को मजबूत करने के लिए माना जाता था। लेकिन 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट एवं मुस्लिम समुदाय के बीच एक ऐसी गहरी खाई बन गई थी, जो लगता था कि शायद ही यह दूरी खत्म हो पाएगी। मगर अपने दादा और पिता के किसान - मुसलमान और मजदूर समीकरण को फिर से खड़ा करने की ज़िम्मेदारी संभालने वाले जयंत चौधरी अब सफल भी हो गए है। यही वजह है कि यूपी वेस्ट में भाजपा के माथे पर इस गठजोड़ के बन जाने से चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही है।
किसान नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह अपने जमाने में जाट - किसान - मुस्लिम और कामगारों को साथ लेकर सियासत के मैदान में उतरे थे। उनका यह गठजोड़ इतना मजबूत था कि उन्होंने देश के प्रधानमंत्री रहते हुए जहां पूरे देश के लिए ऐतिहासिक कार्य किए, वही चौधरी चरण सिंह ने किसान मुसलमान एवं कामगारों के उत्थान के लिए बहुत काम किये थे। यही वजह थी कि जब चौधरी चरण सिंह स्वर्गवासी हो गए तो उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह के साथ खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह तबका पूरी तरह से जुड़ा हुआ था। अन्य राजनीतिक दल भी जानते थे कि चौधरी अजीत सिंह के साथ यह तबका मजबूती के साथ खड़ा हुआ है, तभी वह किसी की भी सरकार हुई, चौधरी अजीत सिंह केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल होकर किसान मजदूर और अल्पसंख्यकों के लिए काम करते रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह गठजोड़ इतना मजबूत था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत के कई धुरंधर इसी गठजोड़ की चाशनी में तपकर बड़े नेता कहलाए।
साल 2013 में जब यूपी वेस्ट में मुजफ्फरनगर दंगे हुए तो जाट और मुसलमान के बीच एक बहुत बड़ी खाई बनने के कारण चौधरी अजीत सिंह की पार्टी रालोद से जाट मुस्लिम के साथ साथ कामगार यानि अति पिछड़ा भी दूर चला गया था। इस गठजोड़ के टूटने का ही कारण था कि साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद को बागपत और मथुरा जैसे अपने गढ़ हारने पड़े। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी रालोद को केवल बागपत जिले की छपरौली सीट ही जीत के रूप में मिल सकी।
अपने दादा स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के जैसी सूरत एंव सीरत ( आदत ) रखने वाले जयंत चौधरी ने अपने पिता अजीत सिंह की अगुवाई में रालोद के उपाध्यक्ष के रूप में संगठन को खड़ा करने के साथ साथ फिर से किसान मुसलमान और मजदूर एंव शोषित समाज का गठजोड़ बनाकर रालोद को वापस ताकतवर बनाकर जनता के लिए काम करने की ठानी। लेकिन जयंत के सामने जाट और मुसलमानों को एक मंच पर लाना एक बड़ी चुनौती थी। मगर जयंत चौधरी लगातार कोशिश कर रहे थे और जयंत के सामने यह मौका तब आया जब कैराना से भाजपा सांसद बाबु हुकुम सिंह के देहांत के बाद कैराना लोकसभा सीट पर साल 2018 में उप चुनाव की घोषणा हुई।
बताया जाता है कि जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को उनके मोबाइल पर एक टेक्स्ट मैसेज भेजा और इस मैसेज के बाद दोनों की मुलाक़ात लखनऊ में हुई। भरोसेमंद सूत्र बताते है कि जयंत और अखिलेश की मीटिंग में तय हुआ कि भाजपा ने जाट मुस्लिम के जिस गठजोड़ को तोड़ दिया था उसको वापस लाया जा सकता है और हुआ भी वही। सपा की तबस्सुम हसन को रालोद के टिकट पर कैराना उपचुनाव में उतार दिया गया। तब्बसुम हसन को चुनने की वजह भी बड़ी थी। उनके पति दिवंगत मुनव्वर हसन इस बेल्ट के ऐसे नेता थे, जिनका सभी जात धर्म के लोगो मे बड़ा असर था। वो 40 साल की उम्र में देश के चारो सदनों में जाने वाले चुनिंदा नेताओ में से एक थे।
खैर इस चुनाव की बागडौर जयंत चौधरी में संभाली और अभियान शुरू कर दिया था "ऑपरेशन रिश्तेदार"। जयंत चौधरी के सामने बड़ी चुनौती थी कि जाट - मुस्लिम - गुज्जर अति पिछड़ा कैसे उसके पाले में आये। 10 दिन में 125 गांवों को जयंत चौधरी ने मथ डाला और नतीजा आया कि तब्बसुम हसन ने भाजपा कैंडिडेट को हरा दिया। इसके बाद जयंत चौधरी को और ऊर्जा मिली और वो लगातार अपने पुराने वोट बैंक को साधने लगे रहे।
सितंबर 2020 हाथरस में हुए रेपकांड पर जब सियासत यूपी में हिलोरे मार रही थी तब जयंत चौधरी भी हाथरस रेप कांड की पीड़िता के परिवार से मिलने हाथरस पहुंचे थे। 4 अक्टूबर को जयंत चौधरी जब रेप पीड़िता के घर जा रहे थे तब पुलिस ने अचानक पीछे से उन पर लाठीचार्ज कर दिया। जयंत चौधरी के बचाओ में रालोद के कार्यकर्ताओं ने खूब लाठियां खाई थी। जयंत चौधरी पर लाठीचार्ज की सूचना सोशल मीडिया के माध्यम से वेस्टर्न यूपी में पहुंची तो हल्ला मच गया। जाट मुस्लिम किसान एवं अति पिछड़ा जयंत चौधरी पर लाठीचार्ज से गुस्से में था। इसी बीच ऐलान हुआ कि मुजफ्फरनगर शहर के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में 8 अक्टूबर को लोकतंत्र बचाओ महापंचायत होगी, जिसमें जयंत चौधरी पर लाठीचार्ज का विरोध होगा। जयंत चौधरी का लगातार अपने वोट बैंक को इकट्ठे करने के अभियान का ही नतीजा था कि 8 अक्टूबर को मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में सभी राजनीतिक दल, सभी जात धर्म के लोगों ने जयंत चौधरी पर लाठीचार्ज का जबरदस्त विरोध किया और यहीं से वेस्टर्न यूपी में जाट मुस्लिम गठजोड़ के बीच बनी गहरी खाई पटनी शुरू हो गई थी। अब किसान आंदोलन में भी जिस तरह से अन्य जातियों के साथ-साथ जाट और मुसलमान किसान एक मंच पर दिखाई दे रहा है, उसकी बहुत बड़ी वजह जयंत चौधरी का दोनों समुदाय के बीच रहना बड़ी वजह है। और अब तो किसान संयुक्त मोर्चा की महापंचायत से भी अल्लाह हु अकबर और हर हर महादेव के साथ साथ जो चाहे सो निहाल सतश्री अकाल के नारे भी सुनाई पड़ रहे है। वेस्टर्न यूपी में किसान मुसलमान एवं कामगारों का रालोद के प्रति झुकाव भाजपा के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच रहा है।