गहलोत का गरल बनेगा सचिन के लिए अमृत
लखनऊ। हमारे भारत की हिन्दू संस्कृति कुछ अलग तरह की है। इसमें क्रोध को स्थायी भाव में नहीं माना जाता। इसीलिए कहा जाता है कि हिन्दू धर्म उदार है। एक छोटा सा उदाहरण लीजिए। कोई लडका जेब काटते हुए अथवा चोरी करते पकड़ा जाता है। तत्काल बहुत गुस्सा आता है। सब लोग उसे पीटने लगते हैं।वहां जितने लोग मौजूद होते हैं, उनमें से कोई भी उस लडके के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाता लेकिन थोड़ी देर बाद ही उस लडके की चीख और रोने की आवाज वहां खडे लोगों की भावना को बदल देती है। वे पीटने वाले लोगों को रोकते हैं और कहते अरे भाई क्या इसे पीट पीटकर मार ही डालोगे? यही है असली भारतीय संस्कृति। राजस्थान में अभी लगभग दो महीने पहले कांग्रेस पार्टी में जो घमासान हुआ था, तब भाजपा के समर्थकों को छोड़ कर और किसी के मन में सचिन पायलट के प्रति सहानुभूति नहीं थी। वे लोग भी सचिन पायलट के कदम को मूर्खतापूर्ण बता रहे थे जो विधानसभा चुनाव के समय चाहते थे कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को नहीं बल्कि सचिन पायलट को बनाया जाना चाहिए। सचिन पायलट को जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत निकम्मा और नाकारा कहने लगे, तब उन्हीं लोगों की भावनाएं बदल गयीं। उनकी समझ में यह भी आ गया कि सचिन पायलट को इतना कठोर फैसला क्यों लेना पड़ा। सचिन पायलट के प्रति लोगों की भावनाओं में बदलाव आ गया है, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने राजनीतिक स्वार्थ में लगातार जहर उगल रहे हैं। यह गरल ही सचिन पायलट के लिए अमृत बन जाएगा।
राजस्थान में कांग्रेस के अंदर महीने भर तक चले सियासी संग्राम के बाद 13 अगस्त को आखिरकार सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मुलाकात हुई। जयपुर में मुख्यमंत्री आवास पर हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में 6 साल तक मौका देने के लिए सोनिया गांधी को धन्यवाद दिया. साथ ही उप मुख्यमंत्री के रूप में मौका देने के लिए अशोक गहलोत का आभार जताया। बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि 19 विधायकों के बिना भी वह विधानसभा में बहुमत साबित कर देते, लेकिन वह खुशी नहीं मिलती। पायलट के आने पर खुशी जाहिर करते हुए सीएम ने कहा कि अपने-अपने होते हैं। बैठक में सीएम गहलोत ने कहा कि कांग्रेस विप्रधानसभा में विश्वासमत प्रस्ताव पेश करेगी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भले ही यह कहकर पायलट से अपनत्व दिखाने का नाटक किया है लेकिन उसके पहले उन्होंने जो जहर उगला, उसकी जलन पायलट और उनके समर्थकों तक पहुंची है। मुख्यमंत्री गहलोत की यह बात कि 19 विधायकों के बिना भी वह विधानसभा में बहुमत साबित कर देते, सीधे-सीधे सचिन पायलट और 19 विधायकों का भी अपमान है। कांग्रेस हाईकमान को यह बात नोट करनी चाहिए और गहलोत से इसका जवाब भी मांगना चाहिए। इससे पहले वे सचिन पायलट को निकम्मा और नाकारा कह चुके हैं। गहलोत खुद कितने काम के हैं, यह लोकसभा चुनाव में साबित हो गया था। राज्य में सरकार होने के बावजूद कांग्रेस को एक भी सांसद नहीं मिला। गहलोत की इन सब बातों से कांग्रेस के वे नेता भी सचिन के प्रति सहानुभूति दर्शाने लगे हैं जो कल तक गहलोत के साथ खड़े थे।
इधर, सचिन पायलट कहते हैं कि उन्होंने 6 साल में ईमानदारी से पूरी कोशिश की कि पार्टी के लिए काम कर सकें। वह कहते हैं कि जिन कार्यकर्ताओं की मेहनत से सरकार बनी, उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरा जा सके। बतौर उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष उन्होंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की। सचिन पायलट ने सहयोग के लिए सभी विधायकों का भी आभार जताया। इससे पहले 13अगस्त को सुबह से ही प्रदेश में सत्ता-संघर्ष थमने के कयासों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार सचिन पायलट और बागी विधायकों की घर-वापसी को लोकतंत्र की जीत बता रहे थे। सीएम गहलोत ने मामले को लेकर ट्वीट करते हुए कहा था कि बीती बातों को भूलकर अब आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने विधायकों से कहा कि आपसी मतभेद को भूलकर अब लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई में जुट जाना है। इस बीच कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के शामिल न होने की बातें भी सियासी गलियारों में चल रही थीं लेकिन शाम होते-होते कांग्रेस पार्टी के ऊपर छाया धुंध छंट गया था। जयपुर स्थित मुख्यमंत्री आवास में शाम 5 बजे से हुई विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट और उनके समर्थक सभी विधायक शामिल हुए। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच गर्मजोशी से मुलाकात हुई। बागी विधायकों की घर वापसी के बाद पार्टी के तीखे तेवर अब नरम पड़ते जा रहे हैं। बड़ा फैसला लेते हुए कांग्रेस पार्टी ने विधायक भंवर लाल शर्मा और विश्वेंद्र सिंह के निलंबन को रद्द कर दिया है। मालूम हो कि इन दोनों विधायकों पर अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार को गिराने की साजिश में शामिल होने का आरोप लगा था। इसके बाद पायलट खेमे के इन दोनों विधायकों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया था। अब विधानसभा सत्र से पहले बड़ा फैसला लेते हुए पार्टी ने विश्वेंद्र सिंह और भंवरलाल शर्मा को वापस बहाल कर दिया है। होटल फेयरमोंट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केसी वेणुगोपाल और वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में विधायकों का निलंबन रद्द करने का फैसला किया गया है। अविनाश पांडे और गोविंद सिंह डोटासरा ने ट्वीट कर दोनों विधायकों को बहाल करने की जानकारी भी दी है।
उधर, मुख्य विपक्षी दल भाजपा अब आक्रामक हो गयी है।राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया ने कहा है विधानसभा सत्र में उनकी पार्टी अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। इससे पहले प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी मीडिया के साथ बातचीत के दौरान कहा कि गहलोत सरकार अंदरूनी संकट से जूझ रही है। जिस तरह से गहलोत बनाम पायलट विवाद खत्म हुआ है, उसको देखते हुए लगता है कि सरकार विधानसभा में विश्वास मत का प्रस्ताव ला सकती है। बीजेपी ऐसे किसी हालात के लिए तैयार है। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी भी विधानसभा में अविश्वास मत का प्रस्ताव लाएगी। विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले बीजेपी की तरफ से अविश्वासमत का प्रस्ताव लाने के ऐलान से प्रदेश की सियासत एक बार फिर गर्माने के संकेत मिल रहे हैं।
उधर, पूर्व में सरकार की साथी रही बसपा ने भी अपने 6 विधायकों को व्हिप जारी कर दिया है कि अविश्वास प्रस्ताव आने पर वे सरकार के विरोध में मत दें। हालांकि बसपा के सभी विधायकों को अशोक गहलोत ने तोड़कर कांग्रेस में मिला लिया है। यह मामला अदालत में चल रहा है। बसपा ने इसके लिए सुप्रीमकोर्ट की शरण ली है। दरअसल, इसी के चलते बसपा की राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता खतरे में पड गयी है। मायावती की यही मुख्य चिंता है।
कांग्रेस में मचा घमासान शांत होने के बाद सीएम अशोक गहलोत कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी में आपस में जो भी नाइत्तेफाकी हुई है उसे भूलकर डेमोक्रेसी को बचाने की लड़ाई में लगना है। सीएम गहलोत ने एक के बाद एक कई ट्वीट करके कहा, सेव डेमोक्रेसी हमारी प्रायोरिटी होनी चाहिए। हालांकि वे स्वयं अपना वर्तमान सुरक्षित करने के साथ भविष्य भी सुरक्षित करना चाहते हैं, जो कि सचिन पायलट का है।
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)