मां ने देखी थी गंगाजल मूवी- बागपत का छोरा अनुराग बना इस जिले का कप्तान
बरेली। हिन्दुस्तान में एक बड़ी राजनीतिक पहचान रखने वाले उत्तर प्रदेश के जनपद बागपत के गांव छपरौली में जन्मे अनुराग आर्य ने अपने माता-पिता के करियर से अलग कुछ करने की ठानी थी, लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में सेटल होने वाला यह खिलाड़ी अपनी मां के एक सपने से मिली प्रेरणा के सहारे आज यूपी पुलिस का मजबूत अंग बनकर कार्य कर रहा है। बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन अभीनीत फिल्म गंगाजल हम सभी की पसंदीदा फिल्मों में शुमार है। इसमें अजय देवगन ने एक दबंग आईपीएस अफसर की भूमिका निभाकर पुलिसिंग का नया दर्शनशास्त्र प्रस्तुत करने का काम किया है। अनुराग आर्य का परिवार भी उन लोगों में शामिल है, जो इस फिल्म के प्रशंसक हैं। खासतौर से अनुराग की मां डा. पूनम आर्य इस फिल्म को केबल पर कभी मिस नहीं करती थी। इस फिल्म को देखते हुए जब भी अनुराग उनके पास आता, वह उसको प्रेरित करते हुए यही कहती कि अनुराग तुझे भी पुलिस की नीली टोपी हासिल कर बड़ा अफसर बनना है। मां की इसी प्रेरणा से अनुराग को करियर के लिए हमेशा बल मिलता, लेकिन आईपीएस अफसर बनने की बात फिल्म के शुरू होने से शुरू होती और फिल्म के खत्म होने पर इसका भी दि एंड हो जाया करता।
स्कूल के दौर से एक अच्छा खिलाड़ी होने और नेशनल लेवल तक खेलने वाले अनुराग ने कॉलेज के दौर में ही बैंकिंग क्षेत्र में करियर सेट कर लिया था। बैंक में नौकरी मिलने के बाद अनुराग करियर को लेकर संतुष्ट हो गये, लेकिन मां का सपना पूरा करने की उनको भी लालसा रही और फिर एक दृढ़ निश्चय के साथ अनुराग ने सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी की। पहले ही प्रयास में वह इसे ब्रेक करने में सफल रहे और आज प्रतापगढ़ जनपद में पुलिस अधीक्षक की कुर्सी संभालकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अपराधमुक्त उत्तर प्रदेश के लक्ष्य को पूरा करने के प्रयासों में जुटे हुए हैं। अनुराग आर्य बेहद संवेदनशील और सख्त कार्यप्रणाली रखने वाले अफसर माने जाते हैं। अण्डर ट्रैनिंग पोस्टिंग के दौरान ही जब एक मजदूर अपनी मजदूरी के पैसे नहीं दिये जाने की शिकायत लेकर उन तक पहुंचा तो अनुराग ने इस मजदूर की मजदूरी दिलाने में एक अफसर से ज्यादा एक इंसान होने का हक अदा किया। इतना ही नहीं नकारात्मक पुलिसिंग करने वालों पर वो बेहद सख्त रहते हैं। प्रतापगढ़ जिले में आपसी झगड़े के विवाद में जब पुलिस ने जुल्म किया तो अनुराग आर्य के डंडे ने इंसाफ दिलाने के लिए पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही करने में देर नहीं की थी।
अनुराग आर्य ने उत्तर प्रदेश के जनपद बागपत के छपरौली में 10 दिसम्बर 1987 को जन्म लिया था। उनके पिता का नाम डॉ॰ रमेश चन्द्र आर्य है और उनकी माता का नाम डॉ॰ पूनम है। अनुराग आर्य के माता-पिता दोनों ही डॉक्टर हैं। अनुराग आर्य की कक्षा पांच तक की शिक्षा गांव में स्थित शिशु मंदिर में ही हुई। उसी दौरान उन्होंने खेल में रूचि होने के कारण जनपद के स्पोर्ट कॉलेज में प्रवेश लिया था। उसके बाद उन्होंने देहरादून के आर्मी स्कूल में प्रवेश के लिये परीक्षा दी, जहां उनका साक्षात्कार हुआ था। उन्होंने उसी वक्त पैनल के सामने साफ कह दिया था कि उन्हें इंग्लिश नही आती। अनुराग आर्य के इसी सटीक जवाब और निष्पक्षता से उनको वहां प्रवेश मिल गया था। अनुराग आर्य ने बी.एससी की। उनको बचपन से ही स्पोर्ट्स का बहुत शौक था। अनुराग आर्य स्कूल के वक्त से ही क्रिकेट एवं बास्केटबॉल खेलते थे और उन्होंने बास्केटबॉल तो नेशनल लेवल तक खेला है। अनुराग आर्य की माँ एक चौनल पर गंगाजल फिल्म देख रही थी। इसी दौरान आईपीएस अनुराग आर्य भी वहीं मौजूद थे। उनकी माँ डॉ॰ पूनम ने उन्हें कहा कि तू भी नीली टॉपी लगा ले। जब भी उनकी मां गंगाजल फिल्म देखती थी, तो तभी अनुराग आर्य को नीली टॉपी लगाने के लिये प्रेरित करती थी। अनुराग आर्य अपनी माता डॉ॰ पूनम के सपने को साकार करने में जुट गये थे। उसी समय से उन्होंने कॉम्पीटशन की तैयारी शुरू कर दी थी। अनुराग आर्य के लगभग 6-7 दोस्त थे, जिनसे उन्हें काफी सपोर्ट मिलता था। सिविल सर्विसेज हेतु 3 से 4 घण्टे न्यूज़ पेपर पढ़ते थे। यह करने से उन्हें परीक्षा के दौरान काफी सहायता मिलीं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में एम.एससी की पढ़ाई के वक्त अनुराग आर्य का सन् 2012 में एसबीआई बैंक में मैनेजर के पद पर सिलेक्शन हो गया था। एसबीआई बैंक में मैनेजर बनने के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। कानपुर जनपद में आरबीआई की ब्रांच ऑफिस में 5 महीने काम किया। उसी दौरान अनुराग आर्य ने पहले प्रयास में सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास कर साल 2013 बैच के आईपीएस अफसर बनकर अपने माता-पिता का नाम रोशन किया था। सन् 2014 में आईपीएस अनुराग आर्य ट्रैनिंग के लिये हैदराबाद चले गये थे। उसके बाद आईपीएस अनुराग आर्य की तैनाती ट्रैनी अफसर के तौर पर सन् 2015 में जनपद गाजियाबाद में हुई थी। गाजियाबाद से तबादला होकर जनपद वाराणसी में बतौर सी.ओ के रूप में तैनात किये गये थे। उन्होंने वहां पर करीब 16 महीने तक कार्य किया। शासन ने अनुराग आर्य को सन् 2017 में गाजियाबाद से बतौर एसपी के रूप में उस जनपद में भेजा जहां उन्होंने कभी बैंक मैनेजर के रूप में कार्य किया था। आईपीएस अनुराग प्रतापगढ़ जिले के कप्तान रहे, जहां से शासन ने उनका तबादला करते हुए बरेली में एसपी इंटेलिजेंस बना दिया था। इसके बाद आईपीएस अनुराग आर्य को शासन ने आजमगढ़ जिले में कप्तान बनाया तो यहां पर उन्होंने लंबी कप्तानी पारी खेली। शासन ने अब आजमगढ़ से उनका तबादला करते हुए बरेली जिले का एसएसपी बनाया है।
आईपीएस अनुराग आर्य ने बचपन में एक बार अपनी माँ के पर्स से बिना बताये 50 रूपये का नोट निकाल लिया था। 50 रूपये के नोट को लेकर आईपीएस अनुराग आर्य टॉफी लेने के लिये एक दुकान पर चले गये पर उन्हें यह नहीं पता था कि यह नोट 50 रूपये का हैं। ये बात दुकानदार ने अनुराग आर्य की माँ को बता दी। उनकी माँ ने अनुराग आर्य को दो थप्पड़ लगाते हुए कहा था कि किसी का सामान लेने से पहले उससे परमिशन ले लेनी चाहिए। उसी दिन आईपीएस अनुराग ने ठान लिया था कि कोई गलत काम नहीं करना है क्योंकि अगर गलत काम करोगे तो दंड मिलेगा ही और सही काम करोगे तो शाबाशी मिलेगी।
जब आईपीएस अनुराग आर्य जनपद गाजियाबाद में अंडर ट्रैनी अफसर के रूप में कार्य कर रहे थे। उसी दौरान एक मजदूर आया, जिसके 700 रूपये किसी ने रख लिये थे। आईपीएस अनुराग आर्य ने उसके रूपये वापस करा दिये थे। जब भी वह मजदूर अनुराग आर्य को मिलता था। तभी वह उनको धन्यवाद बोलता था। उसी दिन से आईपीएस अनुराग आर्य ने सोच लिया था कि ऐसे लोगों की मै ज्यादा से ज्यादा मदद करूंगा। क्योंकि उस मजदूर के लिये 700 रूपये बड़ी अहमियत रखते थे।