अपने गाँव से पहले इंजीनियर व आईपीएस अफसर बने अजय कुमार
मैनपुरी। यादें अगर अच्छी हो तो बताने और सुनने में मजा आता है, ऐसी ही एक याद को आज हम आपसे साझा कर रहे है । यह संस्मरण है वर्तमान में पुलिस अधीक्षक मैनपुरी अजय कुमार पांडेय का खोजी न्यूज़ की ख़ास रपट । कोई भी पहाड़ आपके हौंसलों से ऊंचा नहीं है, वह आपके कदमों के नीचे होगा, अगर आप ऊंचाई पर पहुंचाने का हौसला रखते है तो बस्ती जिले के देवापार गांव निवासी वंशबहादुर पांडेय के यहां 12 मार्च 1981 को जन्में अजय कुमार आज की तारीख में एक तेजतर्रार पुलिस अधिकारी है, वे ना केवल अपनी सधी हुई पुलिसिंग के मास्टर है बल्कि मानवता से जुडे कार्यों में भी सक्रिय रहते है। बस्ती हेडक़्वार्टर से करीब 8 किमी की दूरी पर स्थित देवापार छोटा सा गांव है, जो अजय कुमार के बचपन के समय में ज्यादा विकसित नहीं था। किसान परिवार में पले-बढ़े अजय की सफलता सभी ग्रामीण परिवेश के युवाओं को भी सीख देती है कि चुनौतियों से डटकर सामना करे, साधनों के अभाव को मुद्दा न बनाये। छः भाईयों में 5वें नम्बर के अजय ने 10 साल की उम्र में स्कूल की शुरूआत की, क्योंकि बचपन में जब गये तो इत्तेफाक से पहले ही दिन शिक्षक की मार का डर उनके जहन में बैठ गया। मानों स्कूल से मोहभंग हो गया था। पढाई में अजय शुरूआत से ही अव्वल थे। चौथी क्लास तक की पढ़ाई उनके ताऊजी ने उन्हे घर रहते ही कराई। 5वीं से स्कूल में जाने लगे ओर 6वीं, 7वीं व 8वीं कक्षा में लगातार स्कूल टाॅप किया, अब हौसला बढ़ गया था।
दसवीं में जिला टाॅप कर दिया, इसके पीछे उनकी मेहनत ही थी रोज 7 किमी चलकर जाना और आना कठिन था। दसवीं में जब जिला टाॅप कर दिया, अब सब कहने लगे थे कि अजय आईएएस आईपीएस बन सकता है। यहीं से अजय के मन में सिविल सर्विस का बीज पड गया था। इण्टरमीडिएट तक की पढाई कृषक इंटर काॅलेज से पूरी की, ये दौर उनके लिए परिश्रम से भरा रहा। कडी मेहनत से इंजीनियरिंग का इम्तिहान क्लीयर किया। एचबीटीआई कानपुर से इंजीनियरिंग किया। इंजीनियरिंग में उन्हे एल.जी. कम्पनी द्वारा 27 पैरामीटरों पर आंका गया, जिसमें उन्हे बेस्ट स्टूडेंट के लिए गोल्ड मेडल से नवाजा गया। कंपनी ने उन्हे तमाम पैरामीटर में आंका और माना की वे हर फील्ड में अव्वल है। देश की बडी कंपनियों जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और गजरौला जुबीलेंट लाइफ सांइसेज में जाॅब किया। यहीं से उन्होने प्लानिंग करना सीखा, फिर दो साल दुबई में रहे और अब समय आ गया था सिविल सर्विसेज की तैयारी करने का, दुबई की जाॅब छोड़कर दिल्ली पहुंचे और साम-दाम-दंड-भेद सब के साथ यूपीएससी की तैयारी में जुट गये। 11 महीने के भीतर उन्होंने यूपीएससी का एग्जाम आल इंडिया 108 वीं रैंक से क्लीकर कर दिया। बचपन का सपना साकार हो गया था।
ग्रामीण परिवेश में रहकर सिविल सर्विसेज में जाने का सपना देखना ओर फिर उसे अपनी मेहनत के बलबूते साकार कर दिखाना किसी आम के लिए आसान तो नहीं पर नामुमकिन भी नहीं है। ये बात आईपीएस अजय कुमार पर बिल्कुल सटीक बैठती है। अजय कुमार कहते है अपनी नाकामियों के लिए माँ-बाप और संसाधनों को दोष नहीं देना चाहिए, अजय कुमार अपनी कमियाँ की डायरी बनाते थे और फिर उन्हें दूर करते थे। यह सफर अजय के लिए आसान तो नहीं था, चुनौतियाँ भी थी, पर सही दिशा में बढ़ते हुए उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल किया। अजय कुमार ने लक्ष्य बनाने के साथ उसे पाने की भूख भी अपने अंदर कायम रखी और बन गये अपने गांव से पहले आईपीएस अधिकारी। उनकी सफलता उनके गांववासियों और जिले के लिए प्रेरणा से पूर्ण है। कई युवा उनको आज आदर्श मानकर तैयारी में जुटे हुए हैं। उनकी जिंदगी का हर पड़ाव चुनौतियों से भरा रहा। सफलता हासिल करने के लिए उन्होंने कोई शाॅर्टकट नहीं लिया, बल्कि निरन्तर उसके लिए प्रयासरत रहे। क्रमशः जीवन के हर रोल को उन्होंने बखूबी निभाया।