धनतेरस पर क्या खरीदना होगा शुभ और क्या रहेगा अशुभ- जाने

धनतेरस पर क्या खरीदना होगा शुभ और क्या रहेगा अशुभ- जाने

नई दिल्ली। इस बार धनतेरस का त्योहार बहुत खास है, क्योंकि इस दिन कई ऐसे योग बन रहे हैं, जो इस दिन की महत्ता को और बढ़ाने वाले हैं। बन रहे ये संयोग आपकी खरीदी हुई वस्तुओं की महत्ता को और अधिक बढ़ाएंगे। धनतेरस शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी। शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी का दिन माना जाता है, इसलिए खरीदी करना विशेष रूप से शुभ होगा। इसके अलावा इस बार धनतेरस के दिन हनुमान जयंती भी पड़ने के कारण इस दिन का महत्व और बढ़ गया है। धनतेरस के दिन चित्रा नक्षत्र और आयुष्मान योग भी बन रहा है। इस बार धनतेरस पर मृदु और मित्र संज्ञक नक्षत्र का योग बन रहा है। इस नक्षत्र में सोना, चांदी और बर्तन खरीदना बहुत शुभ रहेगा।

धनतेरस के दिन काले रंग की चीजों को घर लाने से बचना चाहिए। धनतेरस एक बहुत ही शुभ दिन है, जबकि काला रंग हमेशा से दुर्भाग्य का प्रतीक माना गया है। इसलिए धनतेरस पर काले रंग की चीजें खरीदने से बचें। धनतेरस पर कुछ लोग कांच के बर्तन या दूसरी चीजें खरीदते हैं। कांच का संबंध राहु से माना जाता है, इसलिए धनतेरस के दिन इसे खरीदने से बचना चाहिए। इस दिन कांच की चीजों का इस्तेमाल भूलकर भी नहीं करना चाहिए। धनतेरस के दिन यदि आप तेल या घी जैसी चीजें खरीदने जा रहे हैं तो थोड़ा सतर्क रहिए। ऐसी चीजों में मिलावट हो सकती है और इस दिन अशुद्ध चीजें खरीदने से बचना चाहिए। यदि आप घर में रिफाइंड का इस्तेमाल करते हैं तो वो भी इस दिन खरीदने से बचें। धनतेरस के दिन धारदार वस्तुएं खरीदने से बचें। इस दिन चाकू, कैंची या कोई धारदार हथियार की खरीदारी नहीं करनी चाहिए। धनतेरस पर इन चीजों को खरीदना शुभ नहीं माना जाता है। धनतेरस पर कुछ लोग एल्यूमिनियम के बर्तन या सामान भी खरीद लेते हैं। इस धातु पर भी राहु का प्रभाव अधिक होता है। एल्यूमिनियम को दुर्भाग्य का सूचक माना गया है, इसलिए धनतेरस पर एल्यूमिनियम की कोई भी नई चीज घर में नहीं लानी चाहिए। धनतेरस के दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन अपने घर से लक्ष्मी का प्रवाह बाहर नहीं होने देना चाहिए। ऐसा करने से आप पर देनदारी और कर्ज का भार पड़ सकता है। धनतेरस के दिन नकली मूर्तियों की पूजा भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इस दिन सोने, चांदी या मिट्टी की बनी हुई मां लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा करें। स्वास्तिक और ऊं जैसे प्रतीकों को कुमकुम, हल्दी या किसी शुभ चीज से बनाएं। नकली प्रतीकों को घर में ना लाएं।

इस दिन को मनाने के पीछे धनवंतरी के जन्म लेने की कथा के अलावा, दूसरी कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतूहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं। उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं। विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है, यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा। तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी। (हिफी)

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