वर्ष 2021 का स्वागत
नई दिल्ली। शुक्रवार को दिवाकर की रश्मियों पर सवार होकर आये वर्ष 2021 तुम्हारा स्वागत करता हूँ। कहते हैं कि सिर्फ एक उम्मीद कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, सभी संकटों पर भारी पड़ती है। यही एक उम्मीद तुमसे कर रहा हूं। काल की गणना में तुम्हारा विशेष महत्व है। तुम सिर्फ एक नये वर्ष ही नहीं बल्कि अपने साथ एक नया दशक लेकर आये हो। बीता हुआ साल 2020 इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक का अंतिम वर्ष था। आज से तीसरा दशक शुरू हुआ है।
इस सदी में तकनीकी दृष्टि से बहुत तरक्की करने की योजनाओं पर दुनिया भर के वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। चंद्रमा के साथ मंगल ग्रह तक बसने का सपना देखा जा रहा है लेकिन दूसरे दशक के ही अंतिम साल ने एक ऐसा वायरस छोड़ दिया जिसने परमाणु बमों का जखीरा रखने वाले अमेरिका जैसे देश को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। इसलिए समय सबसे ज्यादा बलवान है, यही समझकर वर्ष 2021का स्वागत ही नहीं कर रहा हूं बल्कि कोटिशः अभिनंदन और वंदन भी कर रहा हूं। बीता हुआ साल हमारे देश के लिए उम्मीदों की किरणें तो दे गया है लेकिन चुनौतियों का पहाड़ भी खड़ा कर गया है। इन चुनौतियों को हमारे देशवासी पराजित कर सकें, यह अपेक्षा भी ईसा की कालगणना के 2021वें साल से है।
बीते साल की शुरूआत में ही एक अज्ञात बीमारी ने भयभीत कर दिया था। यह बीमारी चीन से आये कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया में फैल रही थी लेकिन इसका कोई इलाज नहीं था। बीमारी का वाहक चीन तो आज भी यह नहीं बता रहा कि वायरस कहां से फैला। इससे बचने का सिर्फ एक तरीका था कि प्रभावित व्यक्तियों से दूरी बनाए रखें। पहली बार पुरुषों को भी नाक मुंह ढककर चलने की परम्परा अपनानी पड़ी। लड़कियां तो पहले से ही दुपट्टे से मुंह ढककर चलती थीं। हालांकि इसके पीछे यह कारण नहीं था कि किसी बीमारी के वायरस से बचना है बल्कि इससे उन्हें कोई पहचान नहीं पाता था। घरवाले तो दूर, उनके प्रेमी भी भ्रम में पड जाते थे। बहरहाल, विषयांतर का कोई इरादा नहीं है लेकिन सर्दी में थोड़ी गर्माहट भी बनी रहनी चाहिए। वर्ष 2020 बीतते-बीतते कोरोना की कई वैक्सीन्स आ गयी हैं। ये प्रभाव कारी सिद्ध हों, यही नये साल से अपेक्षा है।
हम राजनीति के बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहते हैं क्योंकि ये चोर-चोर मौसेरे भाई हैं और एक दूसरे को जनता के सामने गरियाते हैं लेकिन बाद में मिल बैठकर खाते-पीते हैं। ये लोग मैनेज करने में भी उस्ताद हैं। वर्ष 2021 भाई , आप भी सावधान रहना वरना आपको बेंच देंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा। यही कारण रहा कि कोरोना को भी इन्होंने धता बता दी। हम सिर्फ अपना हित नहीं देखते बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास रखते हैं। इसलिए विदेश से भी हमारे संबंध मधुर रहें, यही प्रयास रहता है। अमेरिका में इसी महीने जनवरी में बाइडेन सत्ता संभाल लेंगे। ट्रंप के चार सालों के शासन के बाद अमेरिकी नीतियों में बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। भारत अमेरिकी सत्ता परिवर्तन के साथ किस तरह खुद को आगे बढ़ाता है, वह चुनौतीपूर्ण् होगा।
हालांकि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार का ओबामा प्रशासन से बेहतर संबंध रहा है लेकिन पिछले चार सालों में बड़ा बदलाव हो गया है। भारत इस साल चीन के साथ कूटनीतिक और सैन्य मोर्चे पर जूझता रहा और यह संघर्ष जारी रहा। चीन ने अपनी आर्थिक ताकत की बदौलत भारत को अलग-थलग करने का दांव खेला तो भारत ने पिछले कई मौकों पर काउंटर दांव से चीन को उसी की भाषा में जवाब दे दिया। नये साल में जब कोविड के बाद तमाम देश आर्थिक चुनौतियां झेल रहे है,दोनों का माइंड गेम अगले साल जारी रहेगा और इसका बहुआयामी असर देखा जा सकता है। पिछले साल भारत ने अपने पड़ोंसी देशों,खासकर नेपाल,बांग्लादेश के साथ उतार-चढ़ाव भरे रिश्ते देखे। पाकिस्तान की तल्खी तो पिछले कई सालों की कहानी रही है। भारत ने साल के अंत में खासकर नेपाल और बांग्लादेश से अपने संबंध को पहले की तरह बेहतर करने की दिशा में पहल की। नये साल में पड़ोंसी देशों से रिश्ते मधुर रहे।
कोरोना ने अर्थ व्यवस्था को भी चौपट कर दिया है। इसके चलते जो परिदृश्य बने, उससे संकेत साफ दिख रहे हैं कि आर्थिक परिदृश्य और मुश्किल हो सकता है। समस्या यह है कि मुख्यधारा के हमारे अर्थशास्त्री मूल समस्या को चिह्नित ही नहीं कर पा रहे हैं। उनके द्वारा मौजूदा आर्थिक सुस्ती के चार प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। पहला कारण रियल एस्टेट क्षेत्र में सुस्ती को बताया जा रहा है, लेकिन बड़ा प्रश्न यही है कि रियल एस्टेट में मंदी किस कारण आई और वह भी वर्ष 2016 के बाद ही क्यों? इसकी गहराई से पड़ताल नहीं की जा रही है कि बाजार में मांग कम क्यों हुई?
आर्थिक सुस्ती की तीसरी वजह जनसंख्या बताई जा रही है। यह बात भी हमारे गले नहीं उतरती। वास्तव में इसी जनसंख्या के चलते देश को फिलहाल डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ हासिल है। वर्ष 1970 में 16 से 65 वर्ष के कामकाजी प्रति 100 लोगों पर 81 बच्चे एवं वृद्ध आश्रित थे। अब हालात काफी सुधर चुके हैं। वर्तमान में यह आंकड़ा प्रत्येक 100 कार्यरत लोगों पर केवल 50 आश्रितों का रह गया है। कामकाजी आबादी पर आश्रित जनसंख्या का आर्थिक भार कम हुआ है। इससे बची हुई रकम का उपयोग वे निवेश के लिए कर सकते हैं।
इस तरह कहा जा सकता है कि फिलहाल जनसंख्या हमारी पूंजी है, न कि बोझ। आर्थिक सुस्ती का चौथा कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्ती को भी बताया जा रहा है। इसे भी पूर्णतः सच नहीं माना जा सकता। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि वर्ष 2001 से 2010 तक विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर 2.6 प्रतिशत थी, जबकि 2011 से 2019 तक यह 2.9 प्रतिशत रही। वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय सुदृढ़ है। इससे भी बढ़कर तो यह बात है कि फिलहाल कच्चे तेल के दाम इस समय न्यून स्तर पर हैं और राजग सरकार भी मूल रूप से ईमानदार है। इस कारण सरकारी बजट का भी अतीत की तुलना में बेहतर तरीके से उपयोग हो रहा है। इस लिहाज से तो फिलहाल हमारी अर्थव्यवस्था को आसमान छूना चाहिए था, जबकि हकीकत यह है कि हमारी विकास दर पस्त पड़ी हुई है। यही सबसे बड़ी हैरानी की बात है। इन कारणों के उलट नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदम आर्थिक सुस्ती के लिए ज्यादा जिम्मेदार लगते हैं। नोटबंदी के कारण नकदी केंद्रित छोटे उद्योगों को जो चोट पहुंची, वे उससे उबर ही नहीं पाए। वहीं जीएसटी ने एक राज्य से दूसरे राज्य में माल पहुंचाना बहुत आसान बना दिया, जिससे मुख्य रूप से बड़े उद्योग ही लाभान्वित हुए, जबकि छोटे उद्योग धीरे-धीरे लड़खड़ाते गए। वहीं छोटे उद्योगों पर जीएसटी अनुपालन का बोझ भी ज्यादा पड़ रहा है। इससे उनकी हालत लगातार खराब हो रही है। इससे रोजगार भी घट रहे हैं, क्योंकि छोटे उद्योगों से ही सबसे ज्यादा रोजगार सृजित होते रहे हैं। इस बीच एक और विरोधाभास देखने को मिला है और वह यह कि जहां हमारी विकास दर गिर रही है, वहीं शेयर बाजार तेजी पर सवार है। वास्तव में यह विरोधाभासी चाल इसलिए है कि हमारी कुल अर्थव्यवस्था का आकार संकुचित हो रहा है, लेकिन उसके भीतर बड़े उद्योगों का आकार बढ़ रहा है।
जैसे मान लीजिए कि पूर्व में हमारी कुलअर्थव्यवस्था 100 रुपये की थी और उसमें बड़े और छोटे उद्योगों का आकार 50-50 रुपये था तो आज हमारी कुल अर्थव्यवस्था 80 रुपये की हो गई है। इसका आकार छोटा हो गया और हमारी विकास दर गिर गई, लेकिन साथ ही साथ बड़े उद्योगों का आकार 50 रुपये से बढ़कर 60 रुपये हो गया और छोटे उद्योगों का आकार 50 रुपये से घटकर 20 रुपये हो गया। वर्ष 2021 भाई, आपसे ज्यादा कौन समझता होगा कि पैसा कितना महत्व रखता है । इसलिए हम पर और हमारे देश पर कृपा बनाए रखना। (हिफी)