दिल्ली दंगा- बड़ों पर नरमी- कमजोर पर सख्ती

दिल्ली दंगा- बड़ों पर नरमी- कमजोर पर सख्ती

नई दिल्ली। अपराध चाहे लल्लू करे या जगधर, सजा एक जैसी मिलनी चाहिए लेकिन राजनेताओं को इनसे छूट मिली है। समाज की बेहतरी के लिए नियम-कानून को तोड़ने वाले, अपराध कृत्य करने वाले और समाज से अपने को ऊपर समझने वाले घातक होते हैं। इसीलिए ऐसे लोगों को दण्ड देने का प्रावधान है। देश की राजधानी दिल्ली में इसी वर्ष फरवरी में दंगे हुए थे। कितनी ही दुकानें जला दी गयीं और कई लोग मारे गये। सड़क तो दूर नाले के अंदर लाशें पड़ीं हुई थीं। सरकारी आंकड़ों पर लोगों को विश्वास नहीं हुआ। इस मामले की जांच पुलिस ने की और साढ़े 17 हजार पेज की रिपोर्ट पेश की थी। इसी मामले में यूएपीए के तहत उमर खालिद और शरजील इमाम के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए दिल्ली सरकार और गृहमंत्रालय ने 6 नवम्बर को स्वीकृति दे दी है। इसी मामले में कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, मशहूर वकील प्रशांत भूषण, भाजपा नेता कपिल मिश्र और वामपंथी नेता वृन्दा करात, पत्रकारिता से राजनीति में आए योगेन्द्र यादव का नाम भी जुड़ा है। इन पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। हालांकि इनमें से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

यहां पर स्पष्ट कर देना जरूरी है कि उमर खालिद और शरजील इमाम की वकालत करने का कतई आशय नहीं है। पुलिस ने उन्हें दंगे कराने का आरोपी बनाया और उन पर अपराध की कठोर धारा यूएपीए लगायी है तो उसके सबूत भी पुलिस के पास निश्चित रूप से होंगे। यह भी एक प्रक्रिया है कि इस प्रकार का मुकदमा चलाने के लिए गृहमंत्रालय की मंजूरी लेनी पड़ती है। बताते हैं कि करीब एक सप्ताह पहले ही अर्थात् 31 अक्टूबर को गृहमंत्रालय ने यह मंजूरी दे दी थी। दिल्ली पुलिस की तरफ से उमर खालिद को गत 14 सितम्बर को दिल्ली में हिंसा के तहत गिरफ्तार किया गया था। कड़कड़डुमा कोर्ट ने उमर खालिद की न्यायिक हिरासत 20 नवम्बर तक के लिए बढ़ा दी थी। दिल्ली पुलिस की तरफ से उसकी न्यायिक हिरासत 30 दिन और बढ़ाने की अर्जी लगायी गयी थी। इस प्रकार कानून अपना काम कर रहा है।

इसी मामले में कांग्रेस और भाजपा नेताओं समेत कई लोग भी आरोपित हैं। दिल्ली पुलिस ने जब लम्बी चार्जशीट फाइल की थी, तभी पूर्व पुलिस ऑफिसर जूलियों रिबेरो ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को दूसरी चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में एक बार फिर दिल्ली दंगों में भाजपा के उन तीन नेताओं को दिये गये शस्त्र लाइसेंस पर सवाल उठाया जिन पर हिंसा के पहले भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। दिल्ली के शाहीन बाग में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में धरना चल रहा था। उसी बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प गुजरात आये थे। भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में कहा था 'दिल्ली पुलिस को तीन दिन का अल्टीमेटम, जाफराबाद और चांदबाग की सड़कें खाली करवाइए। इसके बाद हमें मत समझाइगा, हम आपकी भी नहीं सुनेंगे, सिर्फ तीन दिन। भाजपा नेता कपिल मिश्र के इस बयान के तीन दिन भी नहीं गुजरे थे और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में आग जलने लगी थी। कई लोगों ने आरोप भी लगाया था कि कपिल मिश्रा के इस बयान के बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली के हालात बिगड़ने लगे थे? भाजपा के ही सांसद गौतम गंभीर को कहना पड़ा था कि चाहें वो कपिल मिश्रा हों या कोई भी, जिसने भी भड़काऊ भाषण दिया है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। यहां पर ध्यान देने की बात है कि इससे पहले ही कपिल मिश्र ने कहा था कि 8 फरवरी को दिल्ली की सड़कों पर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का मुकाबला होगा।

इंडियन पेनल कोर्ड (आईपीसी) के तहत धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, रिहाइश, भाषा आदि के आधार पर समाज में वैमनस्यता भड़काना, सौहार्द बिगाड़ना अपराध है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाजायज इस्तेमाल को भी अपराध की श्रेणी में माना जाता है। यह अपराध कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, वामपंथी नेता वृन्दा करात ने भी किया। पुलिस के एक संरक्षित गवाह ने दिल्ली में मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया था कि कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी भड़काऊ बयान दिये थे, जिसके बाद में दिल्ली में हिंसा फैली थी। इस गवाह का बयान धारा 164 के तहत दर्ज किया गया। पुलिस का दावा था कि संरक्षित गवाह दंगों की साजिशकर्ताओं की कोर टीम में शामिल था। उसी गवाह का यह भी कहना था कि सलमान खुर्शीद के अलावा मशहूर वकील प्रशांत भूषण, सीपीएम नेता वृंदा करात ने भी भड़काऊ भाषण दिये थे। दिल्ली दंगे में ही आरोपी बनाए गये खालिद सैफी ने पुलिस के सामने धारा 161 के तहत दर्ज कराये गये अपने बयान में स्वराज अभियान के नेता योगेन्द्र यादव, वकील प्रशांत भूषण और सलमान खुर्शीद का नाम लिया था।

ध्यान रहे उत्तर-पूर्व दिल्ली में 23 से 27 जनवरी 2020 के बीच दंगे हुए थे। इससे पहले से वहां शाहीन बाग में सीएए और एनआरसी के विरोध में धरना चल रहा था। दंगे में सरकारी सूचना के अनुसार 53 लोग मारे गये थे। इसके बाद 13 जुलाई को दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट मंे एक हलफनामा दाखिल किया था, जिसके मुताबिक इस दंगे में 40 मुसलमान और 13 हिन्दू मारे गये थे। यहां पर पूर्व पुलिस आफीसर जूलियो रिबेरो की चिट्ठी की याद हम फिर से दिलाते हैं। रिबेरो को पुलिस मेडल और पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया है। रिबेरो ने अपनी पहली चिट्ठी में भाजपा नेता कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर के साथ प्रवेश वर्मा का भी नाम लिया था और सवाल उठाया कि उनको पूछतांछ के लिए क्यों नहीं बुलाया गया? केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने गोली मारने जैसे नारे लगवाए थे।

पूर्व पुलिस प्रमुख रिबेरो के सवाल के साथ बहुत लोग खड़े हैं और अपराधी-अपराधी में भेदभाव न करने की अपेक्षा करते हैं। उमर खालिद और शरजील इमाम के साथ उन सभी गुनहगारों को आरोपों के कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए जिनके बयानबाजी के चलते उत्तर-पूर्वी दिल्ली की सड़कें खून से लाल हो गयी थीं। (हिफी)

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