70-80 के दशक में कश्मीरी थिएटर को मुकाम देने वाले सैलानी का निधन

70-80 के दशक में कश्मीरी थिएटर को मुकाम देने वाले सैलानी का निधन

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में सुप्रसिद्ध नाटककार साजूद सैलानी का मंगलवार को उनके पैतृक निवास पर निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे।

साजूद सैलानी पिछले कुुछ वर्षों से बीमार चल रहे थे और आज उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकाे दोपहर बाद में पेड्रेथन के कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उनका वास्तविक नाम गुलाम माेहम्मद वानी था।

साजूद सैलानी ने नाटककार के साथ-साथ एक पेंटर थिएटर कलाकार और कार्टूनिस्ट भी थे। उन्होंने अपने जीवन में 150 से अधिक रेडियाे नाटक लिखे 27 नाटक और उर्दू और कश्मीरी भाषाओं में 40 कॉमेडी लिखी।

साजूद सैलानी का जन्म 1936 में एक साधारण परिवार में हुआ। वह अपने लेखन कार्य में प्रमुखता से उभरे, विशेष कर नाटकों को लिखने में उनकी विशेष रूचि रही। उन्होंने किशोरावस्था से लिखने में अपनी प्रतिभा को लोहा मनवाया। उन्होंने अपना नाम गुलाम मोहम्मद वानी से बदलकर साजूद सैलानी रख लिया था और इस नाम ने उन्हें समय-समय पर अपार पहचान दिलाई।

साजूद सैलानी के जिन नाटकों को रेडियो कश्मीर द्वारा प्रसारित कर लोगों से व्यापक सराहना मिली, उनमें उनका प्रसिद्ध नाटक कैज रात (डम्ब नाइट), गाशे तारुक (गाईडिंग स्टार) रुपई रूड (मनी शावर) हैं।

उन्होंने 70 और 80 के दशक में आधुनिक कश्मीरी थिएटर को लोकप्रिय बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी यादगार कृतियां हैं फंडबाज़ (ठग), वूट्री बाइनुल (कटैस्ट्रफी), जालुर (मकड़ी), टेंटकोर (कैटगुट) और अन्य नाटक हैं। वर्ष 1967 में श्री सैलानी ने संगम थिएटर की स्थापना की जिसे रुपई रूड सहित उनके कई नाटकों को प्रस्तुत किया गया।

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