अल्लाह पाक के पैगम्बर मोहम्मद साहब
नई दिल्ली। अरब देश में जब अराजकता का दूषित वातावरण था। हिंसा उत्पात कवीलावाद तथा भेदभाव का बोलबाला था। दुष्ट अरबवासी अपने परिवार में जन्म लेने वाली कन्याओं को जीवित दफन कर देते थे। उस समय अरब देश के ऐतिहासिक नगर मक्का में एक पवित्र महापुरुष ने जन्म लिया जिनका पवित्र नाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा था।
पैगम्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा साहब बाल्या अवस्था से ही सत्यनिष्ठ धर्मनिष्ठ परोपकारी दानी तथा पवित्र चरित्र के थे। मोहम्मद साहब बाल्यावस्था में अपने से आयु में बड़ों का हार्दिक मान सम्मान करते थे तथा कम आयु के लोगों को प्रेम तथा स्नेह देते थे। पैगम्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा साहब के पिता का शुभ नाम हज़रत अब्दुल्ला अलैहिस्सलाम था तथा माता हज़रत आमिना थीं। बाल्यावस्था में पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब के पिता हज़रत अब्दुल्ला तथा माता हज़रत आमिना का निधन (इंतिकाल) हो गया। उनके चाचा हज़रत अबु तालिब अलैहिस्सलाम तथा दादा (बाबा) हज़रत मुत्ताबि ने उनका पालन पोषण किया। दाई हलीमा ने उस समय की परम्परा के अनुसार उनका पालन पोषण किया। अल्लाहतआला पर पैगम्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा का सुदृढ़ विश्वास था। एक बार उनकी दाई हलीमा ने उनको सुरक्षा के लिए एक तावीज पहना दिया। बाल्यावस्था में ही उन्होंने विनम्रता से तावीज को उतारकर उन्हें शालीनता से दे दिया तथा कहा कि अल्लातआला हमारी सुरक्षा करेगा।
पैगम्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा साहब निर्धनों, अनाथों विधवाओं, विकलांगों तथा असहायजनों की तन मन तथा धन से सेवा करते थे तथा इसके साथ-साथ अल्लाहतआला की उपासना (इबादत) में लीन भी रहते थे।
अरब देश के ऐतिहासिक पवित्र मक्का नगर में 'हिरा' नामक गुुफा में मोहम्मद साहब, अल्लाह पाक की उपासना (इबादत) कर रहे थे। उस समय 'जिबराईल' नामक एक फरिश्ता आया और उसने उनको अल्लाह का सबसे पहला पैगाम (संदेश) दिया। उस समय से वह विधिवत रूप से अल्लाह पाक के पैगम्बर हो गए। यह बात उन्होंने अपनी धर्मपत्नी हज़रत खदीजा से बतायी तो उनके आह्वान पर उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद साहब के धर्म को स्वीकार किया तथा वे मुसलमान हो गयीं। तत्पश्चात मोहम्मद साहब के चचेरे भाई हज़रत अली तथा परम् मित्र हज़रत अबूबक्र ने उनका धर्म स्वीकारा। पैगम्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा साहब का पवित्र धर्म 'इस्लाम; कहलाया तथा इस्लाम के अनुयायी मुसलमान कहलाए।
इस्लाम धर्म के अनुयायी मुसलमानों का ऐसा विश्वास है कि एक फरिश्ता अल्लाहतआला के आदेश, निर्देश तथा संदेश मोहम्मद साहब को निरन्तर देता था। वे इन अल्लाह की 'आयतों' को अपने अनुयायियों को बता देते थे। इन्हीं पंक्तियों का संग्रह कुरान शरीफ है। पैगम्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा साहब के इस दुनिया से जाने के पश्चात् कुरान शरीफ को पुस्तक का रूप दे दिया गया। पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब की जीवन शैली, रुचियां तथा परम्पराएं सुन्नते रसूल कहलाते हैं। उनके कथन हदीस शरीफ के रूप में संकलित हैं। इस्लामी अरबी फारसी उर्दू मदरसों में पवित्र कुरान शरीफ सुन्नते रसूल और हदीस शरीफ की शिक्षा दी जाती है। पैगम्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा साहब का पवित्र मज़ार अरब देश के मदीना में है जिस पर एक सुन्दर हरे रंग का भवन निर्मित है जिसको 'रौजा-ए-रसूल' कहते हैं। सऊदी अरब देश के पवित्र मदीना नगर मंे रौजा-ए-रसूल की जियारत (दर्शन) करने लाखों लोग आते हैं।
पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब की एकमात्र सुपुत्री जनाबे फातिमा जहरा थी उन्होंने उनका शुभ विवाह हज़रत अली से कर दिया। हज़रत अली तथा जनाबे फातिमा ज़हरा से दो सुपुत्रों इमाम हसन और इमाम हुसैन ने जन्म लिया। पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब के वंशज 'हाशमी सैय्यद' तथा शाह कहलाते हैं जो अरब देशों, अफगानिस्तान, ईरान तथा भारत में हैं।
चौबीस घंटे में पांच बार नमाज पढ़ने, वर्ष के पवित्र मास रमज़ान शरीफ में रोजे रखने तथा निर्धनों, अनाथों, विधवाओं, विकलांगों तथा असहायजनों की तन, मन तथा धन से सेवा करने की शिक्षा मोहम्मद साहब ने दी। पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब ने जीवन में एक बार अरब के पवित्र नगर मक्का की तीर्थ यात्रा की शिक्षा दी जिस पवित्र धार्मिक यात्रा को 'हज' कहते हैं।
मोहम्मद साहब के जन्मदिवस बारह रबीउलअव्वल को ईद-ए-मीलादुन्नबी कहते हैं। जन्मोत्सव होते हैं जिनको महफिल ए मीलादुन्नबी कहते हैं। दरगाहें, मस्जिदें मदरसे तथा ईदगाहें सजायीं जाती हैं। कुछ लोग ईद-मीलादुन्नबी को बारह वफात भी कहते हैं। अरब देश के इतिहासकारों के अनुसार बारह रबीउलअव्वल (ईस्लामी वर्ष का मास) को मोहम्मद साहब इस दुनिया से विदा भी हुए। (हिफी)