महानायकों पर राजनीति
नई दिल्ली। राजनीति पर अब गर्व की अनुभूति नहीं होती। यह सुनकर राजनेताओं को शायद अच्छा न लगे लेकिन ज्यादातर लोगों की राय यही है। राजनीति अब भय पैदा करती है, घृणा उत्पन्न करती है और कभी-कभी तो शर्मिन्दा भी करती है। मैंने मीडिया को भी उसका साथ देते हुए देखा है, तब एक पत्रकार होने के नाते खुद पर भी शर्मिन्दा हुआ हूं। अभी 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मनायी गयी। कोलकाता के भवानीपुर में नेताजी ज्यादा समय तक रहे, वहीं स्मृतियों को संजोकर रखा गया। इस बार सबसे बडा आयोजन भी कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल में हुआ। पांच महीने बाद ही पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार वहां पहुंचकर नेताजी की 125वीं जयंती मना रहे थे। उस कार्यक्रम में मुख्य मंत्री ममता बनर्जी को भी आमंत्रित किया गया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में जय श्रीराम के नारे लगाए गए। ये नारे उस समय लगाये गये जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मंच पर बोलने के लिए खड़ी हुईं। उसी दौरान भीड़ ने नारे लगाने शुरू कर दिए। इस नारेबाजी से नाराज होकर उन्होंने बोलने से मना कर दिया है। वहीं, उन्होंने भीड़ पर पार्टी विशेष होने के आरोप भी लगाए हैं। इस प्रकार महानायक की जयंती भी राजनीति का शिकार हो गयी। इस कार्यक्रम का कवरेज कर रहे एक न्यूज चैनल को मैं देख रहा था। कार्यक्रम में दूर दूर से लोग आये धे। कोई बिहार का था तो कोई यूपी का। न्यूज चैनल की एंकर उनका परिचय कराते हुए बता रही थीं कि देखो प्रधानमंत्री मोदी को सुनने के लिए कितनी दूर दूर से लोग आए हैं। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर जो लोग आए, यह नेताजी के साथ उनका भी अपमान था।
अब, पश्चिम बांगाल की राजधानी कोलकाता स्थित विक्टोरिया मेमोरियल पर कार्यक्रम की बात करें। केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र सरकार की आमंत्रित सदस्य थीं। इस कार्यक्रम में जय श्रीराम का उद्घोष करने का कोई औचित्य भी समझ में नहीं आता। हर बात की समय और परिस्थिति के अनुसार प्रासंगिकता होती है। कल्पना कीजिए आप किसी शवयात्रा में जा रहे हैं। उस दौरान हिन्दू परम्परा के अनुसार एक व्यक्ति गंभीरता का स्वर लिये बोलता है- राम राम सत्य है। दूसरे लोग बोलते हैं- सत्य बोलो मुक्ति है। यहां भी राम का नाम लिया जा रहा है लेकिन कोई यदि जोर से बोल दे जय श्रीराम तो संभवतः सभी लोग उसे घूरने लगेंगे।
इसीलिए विक्टोरिया मेमोरियल में इस नारेबाजी का सीएम ममता बनर्जी ने जमकर विरोध किया है। उन्होंने कहा मुझे लगता है कि सरकार के कार्यक्रम की कुछ गरिमा होनी चाहिए। यह कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है। उन्होंने इस दौरान खुद को काफी अपमानित महसूस किया। उन्होंने कहा किसी को आमंत्रित करने के बाद अपमान करना आपको शोभा नहीं देता है। इसके साथ ही उन्होंने कार्यक्रम में कुछ भी बोलने से मना कर दिया है। उन्होंने कहा मैं विरोध के रूप में कुछ नहीं बोलूंगी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी नाराजगी पीएम मोदी के सामने ही जाहिर की थी। इस कार्यक्रम के दौरान कई कलाकारों ने प्रस्तुति दी। वहीं, पीएम ने एक पोस्टल स्टाम्प रिलीज किया। उसी दिन कोलकाता में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर 7 किमी लंबी एक रैली का भी आयोजन किया गया था। इस रैली के दौरान मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाए थे।
उन्होंने कहा हम नेताजी का जन्मदिन केवल उन सालों में नहीं मनाते, जब चुनाव होने हों। हम बड़े पैमाने पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। उन्होंने कहा नेताजी देश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक थे। वे एक महान दार्शनिक थे। बनर्जी ने ट्वीट के जरिए बोस और उनकी आजाद हिंद फौज के नाम पर कई विकास कार्यों की घोषणा भी की है।
उधर सीएम ममता बनर्जी ने कहा, मैं आज से पहले उनकी (नेताजी सुभाष चंद्र) की जयंती को मनाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ अपना असंतोष व्यक्त करना चाहूंगी। केंद्र पर हमला बोलते हुए
ममता ने कहा कि उन्होंने मूर्तियों के निर्माण और एक नए संसद परिसर में हजारों करोड़ रुपये खर्च किए हैं। हम आजाद हिंद स्मारक का निर्माण करेंगे। हम बताएंगे कि यह कैसे किया जाता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर कांग्रेस ने भी कार्यक्रम आयोजित किये थे। ऐसा ही एक कार्यक्रम मध्यप्रदेश में हुआ। इस कार्यक्रम में कोलकाता में इसबार मनाए गये नेताजी के जयंती कार्यक्रम की चर्चा हुई। कांग्रेस नेताओं ने भाजपा पर नेताजी के नाम को राजनीतिक रूप से चुनावी फायदे के लिए भुनाने के आरोप लगाए। नेताजी की जयंती पर भोपाल में प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय में पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन हुआ था, जिसमें मुख्य सचेतक डॉ. महेश जोशी समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर मीडिया से बातचीत करते हुए महेश जोशी ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम पश्चिम बंगाल के चुनाव में कैश कराना चाहती है, लेकिन इसमें भाजपा कितना कामयाब हो पाएगी ,इसका जवाब पश्चिम बंगाल की जनता देगी।
जोशी ने कहा कि सुभाष चन्द्र बोस और सरदार पटेल कांग्रेस के नेता हैं लेकिन भाजपा जितना हमारे नेताओं का गुणगान करने में जुटी है, उतना ध्यान तो उन्होंने कभी अपनी पार्टी के नेताओं पर भी नहीं दिया होगा। कांग्रेस को भी अपने ऐसे नेताओं से दूर रहना ही बेहतर है जो सुभाष चन्द्र बोस और सरदार पटेल को कांग्रेस पार्टी का नेता बता रहे है। इन महान नेताओं को पूरा देश अपना नेता मानता है। आज ये 130 करोड लोगों के महानायक हैं। राजनीतिक दल इन महानायकों को सीमित दायरे में क्यों रखना चाहते हैं। इसीलिए राजनीति को देखकर शर्म महसूस होती है।
जोशी ने कहा कि भाजपा में वे सब बातें मौजूद हैं, जिन्हें किसी भी दृष्टि से सकारात्मक नहीं कहा जा सकता है। भाजपा और संघ के लोगों ने कभी बड़ी चौपड़ पर स्वाधीनता दिवस नहीं मनाया, लेकिन सत्ता में आने के बाद यह परम्परा शुरू की है। कांग्रेस नेता की यह बात वैसी ही है जैसे बुरा जो देखन मैं चला।
याद करें जब द्वितीय विश्वयुद्ध अपने चरम पर था। वर्ष 1944 और स्थान था मिंगलाडॉन परेड ग्राउंड, रंगून। एक महान भारतीय नेता वहां एकत्रित जनसमूह को संबोधित कर रहे थे। उनके द्वारा बोला हर शब्द उस जनसमूह के दिल को छू रहा था, हर नारे की गूंज सारी सभा को आह्लादित कर रही थी। अचानक आसमान से धुआंधार गोलियों की बरसात होने लगी, लोगों में गहमा-गहमी मच गई, सब इधर उधर भागने लगे, लेकिन वो नेता एक योगी के समान शिला की तरह अपने स्थान पर खड़ा रहा, अडिग। ये महान नेता थे सुभाष चंद्र बोस। जब आजाद हिंद फौज के एक अफसर ने उनसे पूछा कि वो सुरक्षित स्थान की तरफ क्यूं नहीं गए, तो उनका जवाब था, मैने संकल्प कर लिया था कि यदि मुझे मृत्यु ही प्राप्त होनी है तो मैं इस तरह से वीरगति को प्राप्त करना चाहूंगा, न कि कहीं अपनी जान बचा के भागते हुए। ऐसे थे नेता जी, जिनका अक्श किसी राजनीतिक दल में नही दिखाई पड़ता। (हिफी)