प्रकृति हमें सिखाती है

प्रकृति हमें सिखाती है

नई दिल्ली। वृक्ष कबहुं नहि फल भखै, नदी न संचै नीर। अर्थात पेड़ अपने फल कभी नहीं खाते और नदी अपने लिए पानी नहीं इकट्ठा करती। प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यही है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे- नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, फूल अपनी खुशबू पूरे वातावरण में फैला देते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस्सा आता है। जिसे वह समय-समय पर सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है।

मानव द्वारा प्रकृति का इतना दोहन किया गया कि मानव के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है, जब भूमि ही नहीं रहेगी तो जीवन के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो जायेगा। इसी के चलते भूमि बंजर हो रही है, भूमि क्षरण के लिए

जिम्मेवार रासायनिक खादों का प्रयोग है। जीवन के लिए भूमि को बचाना अनिवार्य हो गया है। मानव द्वारा प्रकृति का इतना दोहन किया गया कि मानव के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है, जब भूमि ही नहीं रहेगी तो जीवन के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो जायेगा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रो.डा. विमला व्यास ने कभी कहा था कि महात्मा गांधी के आदर्शा पर चलते हुए प्रकृति का उतना ही दोहन करें जितनी आवश्यकता है, अन्यथा नुकसान होगा। प्रकृति को बचाने के लिए भाषण की नहीं अपितु अमल की आवश्यकता है। हम सभी एक-एक पेड़ लगाये तो क्लीन इण्डिया बनाने में मदद होगी। हमें रासायनिक खादों के प्रयोग से बचना चाहिए। भूमि को बचाने के लिए जन अभियान चलाना होगा। प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है।

मानव प्रकृति का हिस्सा है। प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रेकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती। प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है- प्र और कृति। प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ-उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूल तत्व जिसका परिणाम जगत है। कहने का तात्पर्य प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है। प्रकृति दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक प्रकृति और मानव निर्मित प्रकृति। प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व- पृथ्वी, जल अग्नि, वायु और आकाश शामिल हैं। इन्ही से हमारा भौतिक शरीर बना है। मानव प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थ श्रीमद् भगवद्गीता में वर्णित (सातवां अध्याय व चौथा श्लोक)- भुमिरापोनलो वायुः खं मनो बुद्धि रेव च। अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।। भगवान् श्री कृष्ण गीता में कहते हैं -पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश ये पञ्चमहाभूत और मन, बुद्धि तथा अहंकार- यह आठ प्रकार के भेदों वाली मेरी 'अपरा' प्रकृति है। हे महाबाहो! इस अपरा प्रकृति से भिन्न जीवरूप बनी हुई मेरी 'परा' प्रकृति को जान, जिसके द्वारा यह जगत् धारण किया जाता है। कहने का तात्पर्य- ये आठ प्रकार की प्रकृति समूचे ब्रह्माण्ड का निर्माण करती है। वेदों में वर्णित है कि मनुष्य का शरीर पंचभूतों यानी अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है। इन पंचतत्वों को विज्ञान भी मानता है। अर्थात मानव शरीर प्राकृतिक प्रकृति से बना है। प्रकृति के बगैर मानव अस्तित्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। मानव का मन, बुद्धि और अहंकार ये तीनों प्रकृति को संतुलित या संरक्षित करते हैं। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए धरती उसके घर का आंगन, आसमान छत, सूर्य-चांद-तारे दीपक, सागर-नदी पानी के मटके और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। इतना ही नहीं, मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। आज तक मनुष्य ने जो कुछ हासिल किया वह सब प्रकृति से सीखकर ही किया है। (हिफी)




















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