मेरे शब्द मेरी कविता– मैं मानती हूं एक मर्द स्त्री से ज्यादा होता है

लिखती हूं दिल से और होती है कुछ सच्चाई माना बेटा बेटी बराबर मैं लेकिन कुछ बाते उनकी जो तली नहीं जा सकतीं।।
मैं मानती हूं एक मर्द स्त्री से ज्यादा होता है
शायद उस पर कर्ज स्त्रियो से ज्यादा होता है
वो अपने कामयाबी के पीछे सबसे पहले स्त्री का नाम रखता है
उसको जिम्मेदारियों का भान स्त्रियों से ज्यादा होता है
हां मैं मानती हूं मर्द स्त्री से ज्यादा होता है
वह एक अजनबी सी लड़की को अपने घर की नीव बनाता है
यदि निभाने वाला सही हो तो वह शादी के सातों वचनों को भी बहुत खूब निभाता है
जहां आज की दुनियां में खुद पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता वही वो किसी अजनबी लड़की को विश्वास कर अपने घर लाता है
हां मैं मानती हूं कि मर्द स्त्री से ज्यादा होता है
वह अपनी परेशानियों को दूर रखकर हमारी जिम्मेदारी पहले उठता है
वह अपने आंसुओं को छुपाकर हमारे आंसू पूछने आता है
दिन में पुरे दिन काम कर थककर अपनी थकावट नहीं दिखता है
वह अपना बचा हुआ थोड़ा सा समय भी हिस्सों में बांटकर परिवार को देने आता है
हां ये बोलने में कुछ गलत भी नहीं होगा कि वह अपने लिए कुछ भी बचाता है
जा मैं मानती हूं मर्द स्त्री से ज्यादा होता है
इस सब के बीच सास बहू के झगड़े में मर्द कई बार फंस जाता है जहां स्त्रियों को नहीं मर्द को गलत बताया जाता है
वह जो खुद को कभी बड़ा नहीं बताता है
वह जो कड़ी धूप में तपकर या आंधी तूफानों को झेलकर घर बैठे एक बड़े परिवार के लिए 2 पैसे कमाता है और महीने की पगार मिलने पर खुद के लिए एक सुई भी नहीं खरीद पाता है
हां वो एक मर्द होता है जो दुख में होने पर भी अपने अश्क तक नही बहा पता है
इसीलिए आज मैं मानती हूं कि मर्द स्त्री से ज्यादा होता है
रिपोर्टर/कवियित्री= मेघा गुप्ता