मोदी ने आंदोलनजीवियों को किया निरुत्तर

नई दिल्ली। संसद में कांग्रेस नेता रवनीत बिट्टू ने कहा था कि ये तीनों कृषि कानून अंसवैधानिक हैं और इन कानूनों की वजह से राज्यों में सरकारी मंडिया खत्म हो जाएंगी। रवनीत बिट्टू की इस टिप्पणी पर वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने विरोध जताया और उनसे पूछा कि कृषि कानूनों में ये सब कहां लिखा है? अनुराग ठाकुर के इस सवाल का जवाब कांग्रेस सांसद रवनीत बिट्टू के पास नहीं था और इससे पता चलता है कि इन कानूनों का विरोध कर रहे लोगों और नेताओं ने कृषि कानून के बारे में पढ़ा ही नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन आंदोलनजीवियों का अपने भाषण में जिक्र किया था, 9 फरवरी को उनकी पोल संसद में भी खुल गई।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ये बात हम आपसे लगातार कह रहे हैं कि किसान आंदोलन की आड़ में सरकार का विरोध कर रहे आंदोलनजीवियों को केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कनूनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इन लोगों ने कानूनों के बारे में पढ़ा ही नहीं है और ये बात संसद में भी खुलकर सामने आ गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 फरवरी को भावुक होकर देश को सकारात्मक राजनीति का रास्ता दिखाया था। राज्य सभा के नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद के लिए विदाई भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने बताया था कि राजनीतिक कड़वाहट के बावजूद विपक्षी नेताओं से सीखने का मौका नहीं खोना चाहिए। लेकिन गांधी परिवार को प्रधानमंत्री का ये संदेश बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। सबको साथ लेकर चलने वाली राजनीति के पाठ का मतलब शायद गांधी परिवार को समझ में नहीं आया। इसके अगले दिन 10 फरवरी को प्रधानमंत्री जब लोक सभा में बोल रहे थे, तो कांग्रेस को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। पहले कांग्रेस के सांसदों ने हंगामा किया, कई बार प्रधानमंत्री को टोका और फिर सदन का बायकॉट कर दिया। इसके 2 दिन पहले जब प्रधानमंत्री ने राज्य सभा में भाषण दिया था, तब हंगामा या नारेबाजी नहीं हुई थी। लेकिन लोकसभा में कांग्रेस के सांसदों ने कई बार हंगामा किया।
सोचिए, एक ही पार्टी है, लेकिन अलग-अलग सदनों में उसका व्यवहार अलग-अलग है। कभी वो चर्चा में हिस्सा लेती है और कभी वो सहूलियत के हिसाब से वॉक आउट भी कर जाती है। आप भी सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन सी राजनीति है, जिसके कारण कांग्रेस पार्टी अलग-अलग समय पर अलग-अलग नजर आती है। प्रधानमंत्री ने कल 10 फरवरी को संसद में इसका कारण देश को बताया। पिछले 7 वर्षों से कांग्रेस का लोक सभा में इतिहास रहा है कि वो पहले किसी मुद्दे पर जोरदार हंगामा करती है। संसद को ठप कर देती है। लेकिन जब सरकार इस पर चर्चा करती है, तो जवाब सुनने की जगह वो या तो हंगामा करती है या फिर सदन छोड़कर बाहर चली जाती है।
प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान कांग्रेस के सदस्यों ने पहले हंगामा किया, लेकिन जब उन्हें लगा कि कानून के विरोध पर उनकी पोल खुल रही है और खुद प्रधानमंत्री सीधे एक-एक मुद्दों का जवाब दे रहे हैं, तो उनके सांसदों ने वॉक आउट कर दिया। प्रधानमंत्री ने देश को कांग्रेस के इस वॉक आउट का कारण भी बताया। कांग्रेस पार्टी कृषि कानूनों पर किसानों में लगातार भ्रम फैला रही है। आंदोलनजीवियों की तरह वो भी किसानों में ये झूठ फैला रही है कि नए कानून से एमएसपी खत्म हो जाएगा, मंडियां बंद हो जाएंगी। लेकिन कांग्रेस पार्टी को न तो वास्तविक स्थिति का पता है और न ही वो इसे समझना चाहती है। प्रधानमंत्री ने किसानों से कहा कि वो उनकी हर बात सुनने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने विपक्षी पार्टियों की हंगामे की राजनीति से किसानों को सावधान भी किया।
ध्यान रहे केंद्र सरकार ने पार्लियामेंट में किसानों को लेकर तीन बिल पास कराए हैं। जिन पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए और अब यह तीनों बिल कानून बन चुके हैं। इन बिलों के विरोध में तमाम अपोजीशन पार्टियां और किसान विरोध कर रहे हैं। साथ ही पंजाब में किसानों रेल रोको आंदोलन किया हुआ है। हम आपको बताते हैं कि इन तीनों बिलों में ऐसा क्या है और क्यों किसान इसका विरोध कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने पहला बिल बनाया है। इस बिल में किसानों को अपनी फसल मुल्क में कहीं बेचने के लिए अजाद किया है। साथ ही एक राज्य के दूसरे राज्य के बीच कारोबार बढ़ाने की बात भी कही गई है। इसके अलावा मार्केटिंग और ट्रांस्पोर्टिशन पर भी खर्च कम करने की बात कही गई है। दूसरे बिल में सरकार ने कृषि करारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रोविजन किया है। यह बिल कृषि पैदावारों की बिक्री, फार्म सर्विसेज, कृषि बिजनेस फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और एक्सपोर्टर्स के साथ किसानों को जुड़ने के लिए मजबूत करता है। कांट्रेक्टेड किसानों को क्वॉलिटी वाले बीज की सप्लाई यकीनी करना, तकनीकी मदद और फसल की निगरानी, कर्ज की सहूलत और फसल बीमा की सहूलत मुहैया कराई गई है। इस प्रकार तीसरा बिल बनाया गया है। इस बिल में अनाज, दाल, तिलहन, खाने वाला तेल, आलू-प्याज को जरूरी चीजो की फेहरिस्त से हटाने का प्रोविजन है। माना जा रहा है कि बिल के प्रोविजन से किसानों को सही कीमत मिल सकेगी क्योंकि बाजार में मुकाबला बढ़ेगा।
इन बिलों का विरोध सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा में हो रहा है। हालांकि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कई और सूबों में प्रोटेस्ट होने लगे हैं। यहां तक कि भाजपा हिमायती पार्टी शिरोमणी पार्टी अकाली दल (शिअद) ने खुद इसका विरोध करते हुए एनडीए से पल्ला झाड़ लिया है। इससे पहले अकाली दल की जानिब से मोदी हुकूमत मोदी सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर हरसिमरत कौर ने भी इस्तीफा दे दिया था।
इन बिलों को लेकर किसान और अपोजीशन पार्टियों का कहना है कि वह मंडी व्यवस्था खत्म कर किसानों को एमएसपी से करना चाहती है। यानी किसानों को डर है कि उन्हें उनकी फसलों पर मिलने वाला एमएसपी खत्म किया जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने साफ कहा है कि किसानों का एमएसपी पूरी तरह से महफूज है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि एमएसपी खत्म नहीं होगी। किसानों तक यह संदेश जाना चाहिए। (हिफी)