डॉल्फिन संवर्धन के लिए मोदी की वकालत
इटावा। राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन के संरक्षण की देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वकालत के बाद चंबल में एकाएक पर्यटको की आवाजाही बढ़ गई है।
इटावा के जिला वन अधिकारी राजेश वर्मा का कहना है कि चंबल सेंचुरी मे जब भी कभी-कभी अधिकारियो का दौरा होता है तब बड़ी तादात मे डॉल्फिन दिखाई देती है। जब से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉल्फिन के संरक्षण और संवर्धन की वकालत की है पर्यटको की आवाजाही चंबल की ओर रूख करना शुरू कर दिया है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 मे चंबल मे घडियालों पर आई दुनिया की सबसे बडी त्रासदी मे जब करीब सवा सौ के आसपास घडियालों की मौत हुई थी उसी समय दो डॉल्फिन की मौत हो गई थी, लेकिन इन मौत नदी में कम पानी होना माना गया था। यह पहला वाक्या माना गया जब चंबल मे डॉल्फिन जलचर की मौत का मामला सामने आया।
राजेश वर्मा ने बताया कि जलीय जीवों में दुनिया की सबसे बुद्धिमान जीव कही जाने वाली डॉल्फिनों का कुनबा उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की चंबल नदी में अब बढ़ रहा है। यहां पिछले करीब 40 सालों में डाॅल्फिन की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है।चंबल नदी मे वैसे तो सैकडाें जलचर पाये जाते है, लेकिन डाॅल्फिन का आकर्षण अपने आप में अदभुत है। हर कोई डाॅल्फिन को देखने के लिए लालायित रहता है और जिसने एक दफा डाॅल्फिन देख ली और आगे भी उसके देखने की चाहत रहती है ।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1979 में राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में घड़ियालों के साथ गंगा डाॅल्फिन के भी संरक्षण का काम शुरू किया गया था। तब यहां डाॅल्फिन के महज पांच जोड़े छोड़े गए थे। पिछले वर्ष दिसंबर में जब चंबल सेंचुरी की टीम ने इनकी की गणना की तो नतीजे काफी बेहतर मिले। इस समय चंबल में 150 वयस्क डाॅल्फिन अठखेलियां करती देखी जा सकती हैं। समुद्री लहरों के बीच अठखेलियों करने वाली डाॅफ्लिनों को चंबल का पानी रास आ रहा है। साफ पानी और आक्सीजन की अच्छी मात्रा मिलने से उनकी संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।
राजेश वर्मा के अनुसार चंबल नदी डाॅल्फिन के साथ-साथ घड़ियाल, मगरमच्छ, कछुए और विभिन्न प्रकार के जलचरों के लिए जानी जाती है। चंबल का पानी मीठा, साफ और शुद्ध होने के कारण यहां पिछले कुछ सालों में डाॅल्फिन्स का कुनबा बढ़ा है। डाॅल्फिन प्रदूषित पानी में कभी नहीं रहती। पानी में प्रदूषण बढ़ते ही डाॅल्फिन वह क्षेत्र छोड़ देती है। चंबल में ऐसा नहीं हुआ। यही वजह है कि बीते कुछ सालों में उनकी संख्या इतनी बढ़ गई। अगर ऐसे ही उनकी संख्या बढ़ती गई तो जल्द ही गंगा से ज्यादा यहां डाॅल्फिन पाईं जाने लगेंगी