नीतीश को उनके विधायक ने दिखाया आईना

नीतीश को उनके विधायक ने दिखाया आईना
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मुंबई। महामारी का दौर बहुत मुश्किल का होता है, इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन सरकार भी क्या अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रही है? यह, यक्षप्रश्न केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों तक के सामने हैं। आंकड़े प्रस्तुत करना अलग बात है लेकिन सच्चाई तो अपनी जगह कायम ही रहेगी। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सहयोगी पार्टी भाजपा कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने की तैयारियों का बखान कितना ही कर लें लेकिन नीतीश के विधायक ने ही उन्हें इस बारे में आईना दिखा दिया है। जद(यू) विधायक अचमित ऋषिदेव की पत्नी की मौत अस्पताल में अव्यवस्था के चलते हुई है। उन्होंने नीतीश के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय से जवाब मांगा है कि उनकी पत्नी की मौत का जिम्मेदार कौन है? वे यह भी कहते हैं कि सत्तारूढ़ दल के विधायक के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है तो आम जनता के साथ कैसा व्यवहार किया जाता होगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।

बिहार में अररिया जिले के रानीगंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक अचमित ऋषिदेव की पत्नी अररिया सदर अस्पताल में भर्ती थीं। उनकी हालत गंभीर हो गयी तो वेंटीलेटर की जरूरत पड़ी। बताया जाता है कि अस्पताल के सभी 6 वेंटीलेटर सक्रिय नहीं थे। आश्चर्य की बात यह कि अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों के बारे में मीडिया से अगर चेताया जाता है, तब भी किसी की कान पर जूं नहीं रेंगती। मीडिया में कुछ दिन पहले ही यह खबर दी गयी थी कि अररिया के सदर अस्पताल में पीएम केयर फंड के तहत जो 6 वेंटिलेटर अस्पताल को दिये गये थे, वे डाक्टर और टेक्नीशियन के अभाव के चलते काम ही नहीं कर पा रहे हैं। यह लापरवाही उस समय चर्चा में आयी जब विधायक अचमित ऋषिदेव की पत्नी को जरूरत पड़ने पर वेंटीलेटर नहीं मिल पाया। इस प्रकार विधायक की पत्नी को अररिया सदर अस्पताल में इलाज नहीं मिला और फोर्ब्सगंज अस्पताल रेफर कर दिया गया। विधायक कहते हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया लेकिन अस्पताल की अव्यवस्था के चलते उनकी पत्नी की जान चली गयी। विधायक कहते हैं कि जनता के प्रतिनिधि को जब इलाज नहीं मिल पा रहा है तो आम जनता को इलाज करवाने के लिए कितनी समस्याओं का सामना करना होता होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार कोरोना वायरस के मामलों में कमी देखी जा रही है। गत 23 मई को एक्टिव मरीजों की संख्या घट कर 40691 रह गयी थी। हालांकि कोरोना से मौत का सिलसिला जारी है। चैबीस घंटे के अंदर ही 107 लोगों की मौत हो गयी। राज्य में 23 मई तक कोरोना से 4549 लोगों ने दम तोड़ा। यह सरकारी रिकार्ड बताया जाता है। गांवों में और शहरों में भी बिना सूचना के कितने ही शव नदी में फेेंके गये या दफना दिये गये।

गत 3 मई को आरा से भी एक दिल कचोटने वाली खबर आयी थी। आरा के सदर अस्पताल में रामशंकर नामक व्यक्ति को भर्ती कराया गया था। उसका आक्सीजन का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा था। राम शंकर के बेटे के अनुसार सुबह से दोपहर हो गयी लेकिन कोई देखने नहीं आया। एक न्यूज चैनल का संवाददाता भी रामशंकर की मदद करने के लिए अस्पताल की डाक्टर के पास पहुंचा। रामशंकर की तबियत खराब होती जा रही थी और किसी डाक्टर को वहां तक आने की फुर्सत नहीं थी। कोविड वार्ड के बाहर डाक्टरों की सूची लगी थी और सभी को फोन किया गया लेकिन सभी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टालते रहे और मरीज की जान चली गयी। अस्पतालों मंे कितने ही लोग जिंदगी के लिए संघर्ष करते इसलिए हार जाते हैं कि हमारा सिस्टम नाकारा है। दुख यह कि इस कमी को हम स्वीकार भी नहीं करते। कोरोना वायरस का भय भी शायद इसके पीछे है।

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे वैक्सीन को लेकर उतने चिंतित भी नहीं दिखाई पड़ते, जितने अन्य राज्य हैं। मंगल पांडे ने टीके मंगाने के लिए ग्लोबल टेंडर भी जारी करना जरूरी नहीं समझा है। कोरोनावायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच जब 8 से 44 आयु वर्ग के लिए वैक्सीन की खुराकें कम पड़ गई हैं, तब कई राज्यों ने टीकों के लिए वैश्विक निविदाएं मंगाई हैं, लेकिन बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने इसके खिलाफ फैसला लिया है। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने संकेत दिया कि राज्य द्वारा टीकों की खरीदारी किए जाने की संभावना नहीं है। मीडिया ने जब मंगल पांडे से पूछा कि बिहार ने सीधे टीके खरीदने के लिए कोई वैश्विक निविदा क्यों नहीं जारी की तो उन्होंने कहा, देख लीजिए, अन्य राज्यों ने वैश्विक निविदाएं कैसे जारी कीं और उसके क्या परिणाम निकले? उन्होंने कहा, हमें 1 करोड़ 1 लाख टीके मिले हैं। रविवार (23 मई) तक 98 लाख लोगों को टीका लगाया जा चुका है।

सूत्रों के अनुसार, बीजेपी शासित मध्य प्रदेश ने भी कथित तौर पर उस मार्ग (टीका खरीदने) को नहीं अपनाने का फैसला किया है। 1 मई से सभी वयस्कों के लिए खोले गए टीकाकरण अभियान के बाद वैक्सीन की खुराक की कमी के बाद कई राज्यों ने घोषणा की कि वे अंतरराष्ट्रीय निर्माताओं से सीधे टीके खरीदने की कोशिश करेंगे। हालांकि, अभी तक इस प्रक्रिया का कोई नतीजा नहीं निकल सका है।

वैक्सीन बनाने वाली फाइजर और मॉडर्ना ने कहा है कि यह पॉलिसी का मामला है, इसलिए राज्यों के बजाय केंद्र से ही इस मामले में डील करेंगे। मॉडर्ना ने पंजाब सरकार को बताया कि उनकी नीति भारत सरकार को टीका सप्लाई करने की है न कि किसी राज्य सरकार या निजी पार्टियों के साथ। पंजाब सरकार ने स्पुतनिक वी, फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन से वैक्सीन के लिए संपर्क किया था, लेकिन केवल मॉडर्ना ने जवाब दिया है, वह भी नकारात्मक।

तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश ने भी निविदाएं जारी की हैं, लेकिन पंजाब के प्रयासों की प्रतिक्रिया से संकेत मिलता है कि यह काफी हद तक एक प्रतीकात्मक और निष्फल कदम है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे अन्य राज्यों ने भी वैश्विक निविदाओं का विकल्प चुना है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि केंद्र को इसे राज्यों पर छोड़ने के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर कोविड-19 के टीके आयात करने चाहिए। बता दें कि केंद्र की नई नीति राज्यों और निजी अस्पतालों को सीधे निर्माताओं से टीके खरीदने की अनुमति देती है। हालांकि, कंपनियों का कहना है कि वे केंद्र सरकार को प्राथमिकता देंगे और उनके पास मौजूदा राष्ट्रव्यापी मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।

बहरहाल, बिहार के मामले में सत्तारूढ़ दल के विधायक की शिकायत को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। हमने पिछले दिनों एक लेख में बताया था कि मरीजों का एम्बुलेंस नहीं मिल पाती और ठेले पर लिटाकर मरीज को अस्पताल ले जाना पड़ता है। अब तो ऐसी तमाम खबरें आ रही है जिनसे पता चलता है कि स्वास्थ्य केन्द्रों में सुअर व बकरियां पल रही हैं। (हिफी)

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