मीडिया में दम है

मीडिया में दम है

नई दिल्ली। मीडिया पर तरह-तरह के आरोप लगाने वाले राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को एक बात तो समझ में आ ही जानी चाहिए कि मीडिया दबाव में आ सकती है लेकिन उसमें दम है। स्वाधीनता संग्राम से लेकर अब तक कलम की परीक्षा होती रही है। अब डिजिटल मीडिया आ गया तो और मजबूती मिली है। राजनेताओं को मुकरने का बहाना नहीं मिल पाता। इसके अलावा आमजनता को न्याय भी मिलता है। पाकिस्तान भटक कर पहुंची गीता का मामला हो अथवा किसी बीमार का इलाज कराने में आ रही समस्या मीडिया ने प्रमुखता दी तो उन पर मेहरबानी करने वाले सामने आने लगे। अभी कुछ दिन पहले ही बिहार के समस्तीपुर जिले के एक किसान को लेकर सोशल और प्रिंट मीडिया पर खबर प्रसारित हुई। किसानों का आंदोलन चल रहा है और एक किसान की समस्या थी। मीडिया में आते ही उसकी मदद की गयी।

बिहार के समस्तीपुर जिले के एक किसान ओमप्रकाश यादव ने कर्ज लेकर बड़े पैमाने पर फूल गोभी उगाई। फसल तैयार हुई तब उसकी कीमत बहुत गिर गयी। कई फसलों को लेकर ऐसा होता रहता है। सब्जियों और फलों को सड़क पर फेंकना पड़ता है। ओमप्रकाश यादव के खेत में लगी गोभी एक रुपये किलो बिक रही थी। इतनी कम कीमत में गोभी बेचने पर उसकी तुड़ाई की मजदूरी भी नहीं निकल पा रही थी। परेशान होकर ओमप्रकाश यादव ने गोभी के खेत में ट्रैक्टर चला दिया। ट्रैक्टर चलाते हुए उसका फोटो वायरल हुआ और समाचार पत्रों ने भी उसे प्रमुखता दी। बिहार में अभी ताजा-ताजा नीतीश कुमार की सरकार बनी है। सरकार में भाजपा भी शामिल है। उसके पास नीतीश कुमार से भी ज्यादा विधायक है। भाजपा का भी दायित्व बनता है। किसानों के हितैषी होने का दावा तो सभी राजनीतिक पार्टियां करती हैं। इसलिए बिहार के ओमप्रकाश यादव का गोभी की फसल पर ट्रैक्टर चलाना चर्चा का विषय बन गया।

इसके बाद बिहार की सरकार सक्रिय हुई। केन्द्रीय मंत्री ने इसे संज्ञान में लिया और तुरंत सीएससी को इसकी जानकारी दी गयी। मंत्री के पीए ने ओमप्रकाश यादव से सीधे बात की और पूछा कि क्या सीएमसी के लोगों ने सम्पर्क किया है अथवा नहीं किया। मंत्री के पीए ने कहा कि सीएससी जो पेपर मांग रहे हैं वे देकर रजिस्ट्रेशन करवा लो और बची हुई गोभी की फसल बेच दो। ओमप्रकाश ने इस पर अमल किया और उसकी बाकी फसल दस रूपये किलो के भाव बिक गयी। ओमप्रकाश चार टन गोभी 10 रुपये किलो के भाव बेंची। इसका फायदा दूसरे किसानों को भी मिलेगा। ओमप्रकाश ने मीडिया को धन्यवाद दिया है।

अब राजनेताओं की बात करें। मामला पश्चिम बंगाल का है जहां अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। सत्तारूढ़ तृण मूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने अपने राज्य में तैनात अधिकारियों को लेकर एक बड़ा बयान दे दिया। अब केन्द्र सरकार ने उनकी नकेल कस दी है। राज्य में कुछ दिनों पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पहुंचे थे। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चुनाव क्षेत्र भवानीपुर का दौरा किया। इसके साथ ही वह ममता बनर्जी के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी के लोकसभा क्षेत्र डायमंड हार्बर भी पहुंचे। डायमंड हार्बर जाते समय जेपी नड्डा के काफिले पर पथराव हुआ था। केन्द्र सरकार ने इसे गंभीरता से लिया। राज्यपाल ने भी ममता सरकार के प्रतिकूल रिपोर्ट दी। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इसी मामले में लापरवाही का आरोप लगाते हुए पश्चिम बंगाल पुलिस प्रमुख (डीजीपी) और मुख्य सचिव को दिल्ली बुलाया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने अफसरों को दिल्ली भेजने से मना कर दिया।

इसके बाद केन्द्र सरकार ने अपना रुख सख्त कर लिया। केन्द्र सरकार ने लापरवाही बरतने के आरोप में पश्चिम बंगाल के तीन आईपीएस अफसरों को केन्द्र सरकार में प्रति नियुक्ति पर तैनात कर दिया। केन्द्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि यह कार्यवाही आईपीएस कैडर रूल 6 (1) के तहत की गयी है। पश्चिम बंगाल की सरकार ने इन तीनों आईपीएस अधिकारियों को प्रति नियुक्ति पर जाने से रोक दिया था। ये तीन अफसर हैं राजीव मिश्र, प्रवीण कुमार त्रिपाठी और भोलानाथ पांडेय। गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल के गृह सचिव और डीजीपी को चिट्ठी लिखकर सूचित कर दिया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे केन्द्र सरकार की अनाधिकार चेष्टा बता रही हैं लेकिन उन अफसरों के दर्द को शायद वे भी नहीं समझ पाएंगी जिनको राजनीति के मैदान में फुटबाल बनाया जा रहा है।

केन्द्र और राज्य सरकार के अधिकार अलग-अलग हैं लेकिन अधिकारों के साथ कुश्ती लड़ने का अधिकार तो किसी को नहीं होना चाहिए। देश भर में चल रहे किसान आंदोलन का समाधान भी संभवतः इसीलिए नहीं हो पा रहा है। केन्द्र सरकार विपक्षी दलों पर किसानों को बरगलाने का आरोप लगा रही है। अब तो यह मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहंुच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंदोलन करना किसानों का हक है। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि क्या कानूनों पर अमल रोका जा सकता है? इस मामले को लेकर राजनीतिकों में तमाशा भी खूब हो रहा है। गत 17 दिसम्बर को कृषि कानून को लेकर ही दिल्ली विधानसभा के अंदर तीनों कृषि कानूनों का विरोध किया गया। लोकसभा में जिस तरह भाजपा का प्रचण्ड बहुमत है उसी तरह दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी का बहुमत है। आम आदमी पार्टी के विधायकों ने सदन में ही कृषि कानून की कापी फाड़ दी। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल स्वयं यह शुभ कर रहे थे। कार्यसत्र की शुरुआत होने पर मंत्री कैलाश गहलोत ने एक संकल्प पत्र पेश किया, जिसमें तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की बात कही गयी। यहां तक तो बात ठीक थी लेकिन सदन में कानून की प्रतियां फाड़ना उस संविधान का मजाक उड़ाना है जिसकी 26 नवम्बर को सभी नेताओं ने जमकर वंदना की थी।

एक नेता जी का और जिक्र कर दूं। ये भी बिहार के हैं। भागलपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक अजीत शर्मा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग की है कि वे राज्य में शराब बंदी को खत्म कर दें क्योंकि इससे राजस्व का बहुत नुकसान हो रहा है। विधायक अजीत शर्मा कहते हैं कि शराब बंदी अच्छा सोचकर की गयी थी लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। ध्यान रहे कि राज्य में 2016 में जब शराब बंदी लागू की गयी थी तब नीतीश कुमार महागठबंधन के मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस पार्टी भी उस सरकार में शामिल थी। शराब बंदी को कठोरता से क्यों नहीं लागू किया गया? कांग्रेस विधायक को इसके बारे में बताना चाहिए था लेकिन वे शराब की बिक्री को ही खोलने की बात कह रहे हैं। राजनीति की बात करें तो विधायक अजीत शर्मा की बात का समर्थन उनकी पार्टी भी नहीं करेगी। (हिफी)

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